बार्क और इसरो की मदद से स्वच्छ हो रहा गंगा जल, हर दिन लिए जा रहे सैंपल

बार्क और इसरो की मदद से स्वच्छ हो रहा गंगा जल, हर दिन लिए जा रहे सैंपल

बार्क और इसरो की मदद से स्वच्छ हो रहा गंगा जल, हर दिन लिए जा रहे सैंपल

-सीवेज ही नहीं, संगम क्षेत्र से निकलने वाले हर गंदे पानी को किया जा रहा साफ-1600 करोड़ रुपये से हो रहा कचरे और फीकल स्लज का प्रबंधन और ट्रीटमेंट -ग्रे वॉटर के लिए बनाए गए 75 कृत्रिम तालाब, बायो रेमेडिएशन से किया जा रहा ट्रीट

महाकुम्भ नगर, 24 फरवरी (हि.स.)। संगम तट पर करीब 10 हजार एकड़ में फैले इस महाकुम्भ मेले में प्रदेश सरकार द्वारा जहां एक ओर आए श्रद्धालुओं की सुविधा का पूरा खयाल रखा जा रहा है। वहीं, इस भव्य आयोजन को ’स्वच्छ कुंभ’ बनाने के लिए महाकुम्भ मेला क्षेत्र में 1.5 लाख से अधिक टॉयलेट और यूरिनल स्थापित किए गए और 1600 करोड़ रुपये खर्च कर फीकल स्लज के प्रबंधन और ट्रीटमेंट का इंतजाम किया गया है। इसके साथ ही पहली बार संगम क्षेत्र में निकलने वाले ग्रे वॉटर को भी 75 कृत्रिम तालाब बनाकर बायो रेमेडिएशन तकनीक से ट्रीट किया जा रहा है। इसके लिए बार्क (भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर) और इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) की मदद ली गई है।

-1600 करोड़ रुपये से किया जा रहा महाकुम्भ में कचरे और फीकल स्लज का प्रबंधन-ट्रीटमेंट

प्रदेश सरकार की ओर से पूरे महाकुम्भ के आयोजन पर 7 हजार करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। इसमें से 16 सौ करोड़ रुपए सिर्फ पानी और वेस्ट मैनेजमेंट पर लगाए गए हैं। इसमें से भी 316 करोड़ रुपये मेला क्षेत्र को खुले में शौच मुक्त बनाने पर खर्च किए गए हैं, जिसमें टॉयलेट और यूरिनल की स्थापना और उनकी निगरानी शामिल है। मेला क्षेत्र में 1.45 लाख शौचालय बनाए गए हैं। इनके अस्थायी सेप्टिक टैंकों में इकट्ठा होने वाले कचरे और स्लज के ट्रीटमेंट के लिए फेकल स्लज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित किए गए हैं। कचरे के ट्रीटमेंट में हाइब्रिड ग्रेन्युलर सीक्वेंसिंग बैच रिएक्टर जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह तकनीक बार्क और इसरो के साथ पार्टनरशिप में विकसित की गई है।

-तीन सेक्टरों में स्थापित की गई 5 एमएलडी के तीन अस्थायी एसटीपी

जल निगम नगरीय के सहायक अभियंता प्रफुल्ल कुमार सिंह ने बताया कि महाकुम्भ मेला क्षेत्र के सेक्टर 10, 15, 16 में 4.76 करोड़ की लागत से .5 एमएलडी के तीन अस्थायी एसटीपी स्थापित किए गए हैं। नैनी, झूसी और सलोरी में स्थापित प्री-फैब्रिकेटेड सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एफएसटीपी) और बार्क (भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर) के सहयोग से महाकुम्भ मेला क्षेत्र में बनाए गए हाइब्रिड ग्रैनुलर सीक्वेंसिंग बैच रिएक्टर तकनीकी पर आधारित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के माध्यम से निकलने वाले कचरे और मल का शोधन किया जा रहा है। यहां ट्रीटमेंट कर इसे झूंसी स्थित मनसैता नाला में छोड़ दिया जाता है। यह नाला टैप कर के सीवर लाइन के थ्रू एसपीएस में भेजा गया है, वहां से इस नाले का पानी एसटीपी भेजा जाता है। जहां इसे ट्रीट करने के बाद पानी गंगा जी में छोड़ा जाता है।

-बार्क द्वारा विकसित बैक्टीरिया कर रहा पानी को साफ

भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के डिपार्टमेंट ऑफ़ एटॉमिक एनर्जी के प्रतिनिधि अरुण कुमार ने बताया कि, फीकल स्लज का ट्रीटमेंट काफी कॉम्प्लिकेटेड है। अब तक कहीं भी फीकल स्लज को डायरेक्ट ट्रीट नहीं किया गया है। फीकल स्लज को एसटीपी में डायरेक्ट मिला दिया जाता है, ताकि वह डायल्यूट हो जाए, लेकिन इस बार हमने ऐसा नहीं किया। प्रयागराज जल निगम नगरीय को इसके ट्रीटमेंट के लिए बार्क की टेक्नोलॉजी का प्रपोजल दिया, जो स्वीकार कर लिया गया। हमने महाकुम्भ मेला क्षेत्र के तीन अलग-अलग सेक्टरों में एसटीपी स्थापित किए। इन एसटीपी में बैक्टीरिया वन टाइम फीड है, मतलब बार-बार बैक्टीरिया डालने की जरूरत नहीं है। इन तीनों प्लांट में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर, परमाणु ऊर्जा विभाग भारत सरकार द्वारा विकसित एक अन्य तकनीक, वाटर पॉलिशिंग का भी प्रयोग किया गया है। बैक्टीरिया और एटॉमिक ओजोन के अलावा पानी को साफ करने के लिए प्लांट में किसी भी तरह के केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। बैक्टीरिया के अलावा हमने एटॉमिक ओजोन का इस्तेमाल फीकल स्लज के ट्रीटमेंट के लिए किया है। जिसमें 2 टेक्नोलॉजी इस्तेमाल की गई है। इसमें ऑक्सीजन की टेक्नोलॉजी इसरो की है और वाटर पॉलिसिंग की टेक्नोलॉजी बार्क की है।

सबसे खास बात इस प्लांट में ट्रीट किया हुआ पानी प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के मानकों के अनुरूप है। एसटीपी की बात करें, तो इस प्लांट को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि यह मेले के बाद भी कहीं भी स्थापित किया जा सकता है, फिर से इसे इसी रूप में बैक्टीरिया के साथ चालू किया जा सकता है।

-मेला क्षेत्र में बने 75 कृत्रिम तालाब, ग्रे वाटर को भी किया जाता है ट्रीट

सहायक अभियंता ने बताया कि मेला क्षेत्र में नहाने, कपड़े धोने, बर्तन धोने जैसे रोजमर्रा के कार्यों से निकलने वाला ग्रे वाटर भी सीधे नदी में प्रवाहित न हो इसकी भी व्यवस्था की गई है। मेला क्षेत्र में बने 75 कृत्रिम तालाबों में मेला क्षेत्र का सारा ग्रे वाटर ड्रेनेज लाइनों के माध्यम से लाया जाता है और बायो रेमेडिएशन के माध्यम से ट्रीट करने के बाद ही इसको नदी में प्रवाहित किया जाता है।

प्रयागराज में स्थापित 10 एसटीपी की जांच यूपीपीसीबी, सीपीसीबी और थर्ड पार्टी इन्सपेक्शन के माध्यम से करवाई गई। जिसमें सभी पैरामीटर एनजीटी द्वारा निर्धारित मानकों के तहत पाए गए हैं। इसके अलावा जियो ट्यूब से किए जा रहे जल शोधन की गुणवत्ता की जांच यूपीपीसीबी और आईआईटी मद्रास की टीम कर रही है, जो सभी निर्धारित मानकों के अन्तर्गत पाए गए हैं।

-एक जनवरी से जियो ट्यूब पूरी क्षमता से कर रहा काम

सहायक अभियंता ने बताया कि पूरे शहर में लगभग 400 एमएलडी सीवेज निकलता है। इसमें से लगभग 330 एमएलडी सीवेज 10 एसटीपी के माध्यम से शोधित किया जा रहा है। इसके अलावा टैप नालों का 70 एमएलडी सीवेज जियो ट्यूब और एडवांस ऑक्सीडेशन तकनीकि से शोधित किया जा रहा है। जिले में कुल 81 नालों का सीवेज नदी में डाला जाता था। इसमें से कुल 41 नाले पूर्व से टैप्ड थे, और सीवेज का पानी एसटीपी के माध्यम से शोधित किया जाता था। महाकुम्भ की तैयारियों के दौरान स्वीकृत कुल 125 करोड़ की परियोजनाओं के माध्यम से 17 नाले रिकॉर्ड टाइम में टैप्ड करके पूर्व स्थापित एसटीपी (कोडरा और नैनी) में ले जाकर सीवेज वाटर ट्रीटमेंट शुरू किया गया। इसके साथ ही बचे 23 नालों को भी जियो ट्यूब और एडवांस ऑक्सीडेशन की तकनीकी का उपयोग कर सीवेज वाटर ट्रीटमेंट करने की करीब 50 करोड़ की परियोजना की स्वीकृति दी गई। 14 दिन ट्रायल रन के बाद 1 जनवरी से यह ट्रीटमेंट प्लांट पूरी क्षमता से काम कर रहा है।

-हर दिन किया जाता है टेस्ट, हर दो घंटे में घाटों की सफाई

मेले के अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट विवेक चतुर्वेदी ने बताया कि महाकुम्भ में हर दिन संगम के पानी का टेस्ट किया जा रहा है। इससे पता लगाया जाता है कि किस घाट पर गंदगी ज्यादा है और कहां सफाई करनी है। महाकुम्भ में श्रद्धालु पानी में जो फूल या नारियल फेंकते हैं, उसे निकालने के लिए भी टीम बनाई गई है जो हर दो घंटे में मशीन की मदद से इन्हें बाहर निकाल लेती है।

डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी बार्क प्रतिनिधि अरुण कुमार ने बताया कि हमने फीकल स्लज ट्रीटमेंट के लिए महाकुम्भ मेला क्षेत्र में तीन अलग अलग जगह प्लांट लगाए हैं। सभी एसटीपी अलग-अलग आकार में लगाए गए हैं। एक पहाड़ी के रूप में तो दूसरा प्लांट रेत पर स्थापित एवं तीसरा प्लांट गड्ढे में इनस्टॉल किया गया है। ये सभी अस्थायी हैं, जो मेले के बाद आवश्यकतानुसार कहीं भी स्थापित किए जा सकते हैं।