पितृपक्ष 11 सितम्बर से, अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा अर्पित करने का है पक्ष
आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक की अवधि को पितृपक्ष कहा जाता है
09 सितम्बर। पितृपक्ष 11 सितम्बर से शुरू होगा। आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक के 15 दिन की अवधि को पितृपक्ष कहते हैं। इस पक्ष में लोग अपने पूर्वजों या पितरों के निमित्त श्राद्ध व तर्पण करके अपनी श्रद्धा अर्पित करते है।
उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान में कर्मकाण्ड के शिक्षक रहे पं. अनिल कुमार पाण्डेय बताते हैं कि धर्मग्रन्थों में ऐसा कहा गया कि इस पक्ष में पितर इस आशा के साथ पृथ्वी लोक में आते हैं कि उनके वंशज उनके प्रति श्राद्ध -तर्पण करेंगे। श्राद्ध-तर्पण से संतुष्ट होकर पितर अमावस्या को आशीर्वाद देते हुए पुनः अपने धाम लौट जाते हैं और अगर उनका श्राद्ध -तर्पण नहीं किया जाता है तो वह असंतुष्ट होकर शाप देकर जाते हैं, जिससे व्यक्ति की कुण्डली में पितृदोष उत्पन्न हो जाता है, और जीवन में अनेक कष्टों का सामना करना पड़ सकता है। अतः पितृपक्ष में अपने पितरों का श्राद्ध-तर्पण करके अपने पितृदोष से मुक्ति पाया सकता है।
कोई भी अपने मातृ पक्ष से तीन पीढ़ी व पितृपक्ष से तीन पीढ़ी तर्पण कर सकता है। इसके अलावा दिवगंत भाई, रिश्तेदार या भूले-बिसरे किसी को भी जल दे सकते हैं। उन्होंने बताया कि तर्पण मध्यान्ह काल में करना बताया गया है। सुबह 11ः 30 बजे से दोपहर 3ः15 बजे तक करना चाहिए।
उन्होंने बताया कि तर्पण करके कोई पितृऋण से मुक्ति पा सकता है। देवताओं का अक्षत और जल से पूर्व की ओर मुख करके, ऋषियों का तर्पण जौं से पश्चिमी की ओर व पितरों का तर्पण काले तिल से दक्षिण दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए।
पंडित अनिल कुमार पाण्डेय ने बताया कि हिन्दी कैलेण्डर से जिस तिथि में पूर्वजों की मृत्यु हुई होती है, पितृपक्ष की उसी तिथि में श्राद्ध करना चाहिए। तर्पण तो पूरे पितृपक्ष में रोज कर सकते है और अगर तिथि ज्ञात नहीं है तो अमावस्या पर श्राद्ध कर देना चाहिए। इसके अलावा मृत्यु को प्राप्त महिलाओं को श्राद्ध बुढ़िया नवमी को करना चाहिए।