महाकुम्भ में डिजिटल पेमेंट का जलवा, निचले पायदान पर भी दिख रहा प्रभाव
महाकुम्भ में डिजिटल पेमेंट का जलवा, निचले पायदान पर भी दिख रहा प्रभाव
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महाकुम्भ नगर, 16 फरवरी । डिजिटल पेमेंट की देश में जब शुरूआत हुई तो विपक्ष के राजनीतिक दलों ने इसकी आलोचना यह कहकर कि गरीब, अनपढ़ और आम आदमी इसका इस्तेमाल कैसे करेगा। तीर्थराज प्रयाग में सजे दुनिया के सबसे बड़े समागम महाकुम्भ में डिजिटल पेमेंट सिस्टम का प्रभाव निचले पायदान पर साफ तौर पर दिख रहा है। लइया चना, चाय पकौड़ी बेचने वाले से लेकर पंडितजी और नाव वाले मुस्कराकर डिजिटल पेमेंट स्वीकारते हैं। हर छोटी बड़ी दुकान के सामने क्यूआर कोड का स्टीकर या बोलने वाली मशीन आपको दिख जाएगी। जिनके पास मशीन नहीं है, वो मोबाइल नम्बर से पेमेंट लेते हैं। महाकुम्भ मेले में 2 लाख करोड़ की कमाई का अनुमान है। इसमें बड़ी हिस्सेदारी डिजिटल पेमेंट की होगी।
महाकुम्भ क्षेत्र के केंद्रीय अस्पताल के सामने लइया, चूड़ा, गट्टा बेचने वाली जया कुमारी बताती है, ''मैं नहीं जानती कि ये कैसे होता है, लेकिन जब पेमेंट वाला डिब्बा बोलता है कि इतने पैसे मिले तो सौदा दे देती हूं। कोई दिक्कत होती है तो बेटा देख लेता है।'' जया का बेटा समर अभी नौ साल का है और वो मोबाइल पर दिनभर का हिसाब किताब आसानी से समझ लेता है।
सेक्टर 2 में श्रद्धालुओं का हुजूम रस्सी पर चलती छोटी बच्ची के कारनामे देखकर हैरान है। कोई उसकी फोटो खींच रहा है तो कोई उसका वीडिया बना रहा है। नीचे बिछी चादर पर श्रद्धालु पैसे डालते हैं। पेमेंट के लिये डिजिटल पेमेंट का विकल्प भी है। श्रद्धालु यूपीआई के माध्यम से भी पैसे देते हैं। पूछने पर रजनी बताती है कि,'आजकल बाजार में खुले पैसों की दिक्कत रहती है। इसलिये हमने भी मोबाइल से पैसा लेने की सोची।' उसके मुताबिक, जिन लोगों की जेब में खुले पैसे नहीं होते वो मोबाइल से पैसे डाल देते हैं।'
सेक्टर 2 त्रिवेणी बाजार के निकट चाय बेचने वाले पंकज बताते हैं कि, ''पिछले डेढ़ महीने से चाय की दुकान लगा रहा हूं। अस्सी परसेंट से ज्यादा पेमेंट ऑनलाइन ही आ रही है।'' पंकज के मुताबिक, ''मेला क्षेत्र में पैसा निकालने की मशीनें ज्यादा नहीं है, ऐसे में यात्री नगद पैसा खर्च करने की बजाय ऑनलाइन पेमेंट करना चाहते हैं। इसमें हमें भी सुविधा रहती है, कैश लेन-देन में समय लगता है, जिससे कस्टमर डीलिंग में परेशानी आती है।''
बड़े हनुमान मंदिर क्षेत्र में लइया चने बेचने वाले राजकुमार कहते हैं, ''आजकल लोगों के पास ज्यादा पैसे नहीं होते। ज्यादातर ग्राहक ऑनलाइन पेमेंट देते हैं।'' वो कहते हैं, ''ऑनलाइन की वजह से हमें भी आसानी है, छुट्टा पैसा वापस करने का झंझट नहीं रहता। पैसे भी पूरे खाते में आ जाते हैं।''
संगम अपर मार्ग पर गंगाजली बेचने वाली 65 साल की रामरत्ती कहती हैं, ''मैं तो मोबाइल ज्यादा नहीं चला पाती, लेकिन पैसे वाली मशीन से पता चल जाता है कि पैसे आ गये हैं।'' वो कहती है, 'मोबाइल से पैसे लेने से पैसा संभालने की चिंता नहीं रहती, यहां कोई पक्की दुकान तो है नहीं। थोड़े पैसे नगद आते हैं, ज्यादातर लोग मोबाइल से ही पैसे देते हैं।''
संगम क्षेत्र में घूम-घूमकर नीम की दातुन बेचने वाला शंकर कहता है, ''यात्री पांच दस रुपये का भुगतान भी ऑनलाइन करते हैं। बिजनेस करना है तो ऑनलाइन पेमेंट लेनी पड़ती है। वो कहते हैं, ''ऑनलाइन पेमेंट न लें तो बिजनेस आधा रह जाएगा।''
तीर्थ पुरोहित अमित पाण्डेय कहते हैं, ''अब लोग ज्यादा पैसा लेकर यात्रा करना पसंद नहीं करते हैं। हमारे बहुत से यजमान ऑनलाइन पेमेंट करते हैं। बदलते समय के साथ चलने में ही समझदारी है।''
डिजिटल पेमेंट से जुड़ी कंपनी पेटीएम के प्रतिनिधि अभिषेक मिश्रा ने बताया कि, ''कुम्भ मेले में एक महीने से कम समय में हमारी टीम ने 5 हजार से ज्यादा नये एकाउंट खोले।'' वो कहते हैं कि, ''मेला खत्म होने वाला है, इसलिए एकाउंट खुलने की रफ्तार कम है।'' पेटीएम के अलावा फोन-पे और दूसरी कंपनियों ने भी एकाउंट खोले हैं।
त्रिवेणी में पवित्र डुबकी लगाकर परिवार सहित घर वापिस जा रहे दिल्ली निवासी नीतेश ने बताया कि, 'हमने अपने साथ न तो कैश पैसा रखा और ना ही क्रेडिट कार्ड। हमारे पास केवल अपने फोन थे लेकिन हमें पैसे देने में कोई दिक्कत नहीं हुई और हमने डिजिटल पेमेंट का इस्तेमाल किया, यहां तक कि पंडित जी और नाव वाले का भुगतान भी इसी माध्यम से किया।''
रेल यात्रियों के लिये डिजिटल भुगतान की सुविधा : कुम्भ में आने वालों यात्रियों की सुविधा के लिये रेलवे भी टिकट वितरण, एटीवीएम, जेटीबीएस, यूटीएस ऐप एवं स्टेशन टिकट काउंटर के माध्यम से कर रहा है। वरिष्ठ मण्डल वाणिज्य प्रबंधक कोचिंग हिमांशु शुक्ला ने बताया कि, वर्तमान में प्रयागराज मण्डल में 174 यूटीएस काउंटर, 25 पीआरएस टिकट काउंटर एवं 27 यूटीएस कम पीआरएस टिकट काउंटर सहित कुल 226 टिकट काउंटर कार्यरत हैं।
यूनिफ़ाइड पेमेंट्स इंटरफ़ेस (यूपीआई) को भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीवीआई ) की ओर से भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और भारतीय बैंकों के सहयोग से विकसित किया गया है। इसे 2016 में लॉन्च किया गया था। इसने बिल भुगतान समेत विभिन्न वित्तीय सेवाओं के एकीकरण की भी सुविधा प्रदान की है। 2016 में 21 बैंकों से शुरू होकर यूपीआई सिस्टम में आज 381 से ज्यादा बैंक शामिल हैं, जिससे हर महीने अरबों डिजिटल लेन-देन होते हैं। एक अनुमान के मुताबिक 2028-29 तक यूपीआई से होने वाला भुगतान बढ़कर 439 अरब रुपये हो जाएगा। यह कुल खुदरा डिजिटल भुगतान का 91 फीसदी होगा। अभी खुदरा भुगतान में यूपीआई का योगदान करीब 80 फीसदी का है।