हाथरस दुष्कर्म कांड में आरोपित इंस्पेक्टर की सीबीआई कोर्ट केस रद्द करने से इंकार, याचिका खारिज

-हाईकोर्ट ने कहा, ऐसा नहीं कहा जा सकता कि पुलिस इंस्पेक्टर के खिलाफ केस नहीं बनता

हाथरस दुष्कर्म कांड में आरोपित इंस्पेक्टर की सीबीआई कोर्ट केस रद्द करने से इंकार, याचिका खारिज

प्रयागराज, 28 अप्रैल (हि.स)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाथरस दलित दुष्कर्म कांड के समय चंदपा थाना इंचार्ज रहे इंस्पेक्टर दिनेश कुमार वर्मा के खिलाफ सीबीआई कोर्ट में चल रहे आपराधिक केस को रद्द करने से इंकार करते हुए याचिका खारिज कर दी है।

कोर्ट ने कहा कि थाने की सीसीटीवी फुटेज व जीडी की फर्जी इंट्री व कर्तव्य पालन में लापरवाही को देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि प्रथम दृष्टया याची के खिलाफ केस नहीं बनता है।

कोर्ट ने कहा कि थाने में आई पीड़िता का थाना प्रभारी ने अपने मोबाइल से वीडियो बनाया किंतु उसका बयान दर्ज करने की कोशिश नहीं की। यहां तक कि थाने में दो वाहन मौजूद थे, किंतु परिवार द्वारा उसे अस्पताल आटो से ले जाया गया। पुलिस ने एम्बुलेंस या वाहन की व्यवस्था नहीं की। गाइड लाइंस का उल्लंघन किया। पीड़िता अस्पताल में थी तो लेडी पुलिस ने थाने में बयान दर्ज कर जीडी में झूठी इंट्री दर्ज की कि चोट नहीं पाई गई। कोर्ट ने कहा कि थाना इंचार्ज जीडी के कस्टोडियन होते हैं। उनकी जवाबदेही है और सीबीआई कोर्ट गाजियाबाद ने डिस्चार्ज अर्जी निरस्त कर दी है।

कोर्ट ने कहा हाईकोर्ट मिनी ट्रायल नहीं कर सकती। आरोप सबूतों के आधार पर ट्रायल कोर्ट में तय होंगे। केस रद्द करने का कोई आधार नहीं है और याचिका खारिज कर दी। यह आदेश न्यायमूर्ति राजबीर सिंह की एकलपीठ ने थाना इंचार्ज रहे दिनेश कुमार वर्मा की याचिका पर दिया है। सीबीआई की तरफ से डिप्टी सालिसिटर जनरल वरिष्ठ अधिवक्ता ज्ञान प्रकाश ने प्रतिवाद किया।

मालूम हो कि 14 सितम्बर 20 को सुबह 9.30 बजे अनुसूचित जाति की पीड़िता अपनी मां के साथ चारा इकट्ठा करने गई थी। जिसे संदीप खेत में साथियों के साथ घसीट कर ले गया और दुराचार करने और गला दबाकर मारने की कोशिश की। शोर मचाने पर भाग गये। शोर सुनकर पीड़िता का भाई, दादी व अन्य घटनास्थल पर पहुंचे और उसे अर्द्ध विक्षिप्त हालत में थाने लाये और शिकायत की। पुलिस ने कोई मदद नहीं की। पीड़िता का मेडिकल नहीं कराया गया और न ही पुलिस ने अस्पताल भेजने का इंतजाम किया। भाई ही ऑटाे से जिला अस्पताल हाथरस ले गया। वहां से अलीगढ़ अस्पताल रिफर किया गया। जहां पीड़िता व शिकायतकर्ता का मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान दर्ज हुआ।

मामला मीडिया में छाने के कारण राजनीति होने लगी थी। 29 सितम्बर को पीड़िता की इलाज के दौरान मौत हो गई। पुलिस आधी रात लाश ले आई और परिवार की मर्जी के खिलाफ रात 12 बजे अंतिम संस्कार कर दिया। मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई। गाजियाबाद में एफआईआर दर्ज हुई। सीबीआई ने संदीप, रामू, रवि व लवकुश के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की और विवेचना जारी रखी। बाद में थाना प्रभारी याची व अन्य के खिलाफ भी चार्जशीट दाखिल की गई।

याची का कहना था कि घटना में उसकी कोई भूमिका नहीं है। उसे झूठा फंसाया गया है। उसने हर कार्यवाही की। भीड़ बहुत थी। मीडिया कवरेज हो रहा था। कोर्ट ने याची को मीडिया कवरेज न रोकने के लिए लापरवाही का जिम्मेदार माना। कहा रेप पीड़िता का फोटो या वीडियो बनाकर सार्वजनिक करने पर मनाही है। गरिमा व निजता का उल्लंघन होता है। याची ने अपनी ड्यूटी नहीं निभाई। इसलिए कोर्ट ने केस कार्यवाही में हस्तक्षेप से इंकार कर दिया।