प्रयागराज: भारतेन्दु ने जीवन भर स्वयंसेवक की तरह कार्य किया : प्रो हितेंद्र मिश्र

आजादी के अमृत महोत्सव में भारतेंदु का भी स्मरण करना चाहिए

प्रयागराज: भारतेन्दु ने जीवन भर स्वयंसेवक की तरह कार्य किया : प्रो हितेंद्र मिश्र

प्रयागराज, 18 सितम्बर। हिन्दी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा शनिवार को आयोजित व्याख्यानमाला में पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय, मेघालय के प्रोफेसर हितेंद्र कुमार मिश्र ने कहा कि भारतेंदु हरिश्चंद्र ईश्वर चंद्र विद्यासागर से गहरे प्रभावित थे। भारतेंदु ने अनेक संस्थाएं बनाईं। बहुत सारी पत्र पत्रिकाएं निकाली और जीवन भर एक स्वयंसेवक की तरह कार्य किया। आज जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, ऐसे में भारतेंदु हरिश्चंद्र का भी स्मरण किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हम बलिया के मेले के भाषण के लिए उन्हें याद करते हैं लेकिन उन्होंने केवल बलिया ही नहीं लाहौर, जयपुर, सहारनपुर, कोलकाता, पटना, प्रयाग सहित अनेक स्थानों पर इसी प्रकार के परिवर्तनकारी भाषण दिए थे। हिन्दी के नई चाल में ढलने की दृष्टि से कोलकाता के फोर्ट विलियम कॉलेज का भी स्मरण महत्वपूर्ण है। हम परिवर्तनकारी समाज हैं, मध्यकालीन जड़ता से मुक्ति का जैसा प्रयास भाषा की दृष्टि से और समाज की दृष्टि से भारतेंदु हरिश्चंद्र ने किया वह अक्षुण्ण महत्व का है। भारतेंदु ने जिस हिन्दी के नई चाल में ढलने की बात कही थी, यह नई चाल केवल साहित्य की नई चाल नहीं है। बल्कि देश की नई चाल है, संस्कृति की नई चाल है और बौद्धिक चेतना की नई चाल है।

दूसरे सत्र में मगध विश्वविद्यालय, बोधगया, बिहार के प्रोफेसर भरत सिंह ने कहा की शिष्ट साहित्य और लोक साहित्य का अंतर अत्यंत महत्वपूर्ण है। बुंदेली, अवधी, राजस्थानी, मगही, मैथिली, भोजपुरी, असमिया, बांग्ला का साहित्य लोक साहित्य की पृष्ठभूमि रचता है। उन्होंने भारतीय संस्कृति को बचाने की दृष्टि से लोक साहित्य के अध्ययन, अध्यापन, मनन और अनुशीलन को महत्वपूर्ण बताया। कहा कि सरहपा, कन्हपा, लुइपा, कबीर आदि ने जिस लोक साहित्य के सहारे सामाजिक क्रांति का बिगुल फूंका था उसका अध्ययन न केवल महत्वपूर्ण है बल्कि आवश्यक भी है। नौ खंडों में प्रकाशित ’भारतीय लोक साहित्य’ और दो खंडों में प्रकाशित ’लोरी कोश’ का उदाहरण देते हुए उन्होंने लोक साहित्य के संग्रह और प्रकाशन की आवश्यकता पर भी बल दिया।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. कृपा शंकर पाण्डेय ने लोकगीतों का भारतीय घरों में प्रयोग कम होने पर चिंता जताई। कहा भारतीय जनता की चित्तवृत्तियों को नई चाल में ढालने की चिंता के कवि हैं भारतेंदु। व्याख्यानमाला के संयोजक हिन्दी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के डॉ. राजेश कुमार गर्ग ने कहा कि बालाबोधिनी आदि पत्रिकाओं के सहारे स्त्री शिक्षा की चिंता करते हुए मध्यकालीन जड़ता से मुक्ति की पक्षधरता के महान विद्वान हैं भारतेंदु हरिश्चंद्र। 1873 में ’कालचक्र’ में की गई हिन्दी के नई चाल में ढलने की उनकी घोषणा, आजादी के अमृत महोत्सव मनाने के अवसर पर महत्वपूर्ण और उपयोगी है। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. वीरेंद्र कुमार मीणा ने किया।