अमर क्रांतिकारी उधम सिंह को उनके बलिदान दिवस पर किया गया याद
उधम सिंह से 21 साल बाद डायर को मारकर दी मौत की सजा
लखनऊ, 31 जुलाई। अमर क्रांतिकारी शहीद उधम सिंह के शहीदी दिवस पर रविवार को लखनऊ के ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री गुरू नानक देव जी में उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए। शहीदी दिवस पर विशेष दीवान सजाया गया।
सुखमनी साहिब के पाठ के उपरांत रागी जत्था भाई राजिन्दर सिंह ने मधुर वाणी में पवित्र आसा की वार का अमृतमयी शबद कीर्तन गायन किया। मुख्य ग्रंथी ज्ञानी सुखदेव सिंह ने गुरमति कथा विचार व्यक्त किए।
लखनऊ गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह बग्गा क्रांतिकारी उधम सिंह के जीवन के बारे में बताया कि उनका का जन्म पंजाब के संगरूर जिले में हुआ था, उस समय लोग इन्हें शेर सिंह के नाम से जानते थे। दुर्भाग्यवश उनके सिर से माता-पिता का साया शीघ्र ही हट गया था। ऐसी दुखद परिस्थिति में अमृतसर के खालसा अनाथालय में बालक उधम ने आगे का जीवन व्यतीत किया।
उस समय पंजाब में तीव्र राजनीतिक उथल-पुथल मची हुई थी। उधम सिंह ने अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। वह अमर शहीद भगत सिंह क्रांतिकारी के कार्यों से काफी प्रभावित थे। कश्मीर में जब उनको शहीद भगत सिंह के तस्वीर के साथ पकड़ा गया तो उन्हें उनका सहयोगी मान गया।
जलियां वाले बाग में अंग्रेजों ने अकारण निर्दाेष लोगों को गोलियों से छलनी कर मृत्यु के घाट उतार दिया था। इसमें बुजुर्ग, बच्चे , महिलाएं और नौजवान सभी शामिल थे। इस दिल दहला देने वाली घटना को उधम सिंह ने अपने आंखों से देख लिया था, जिसका उन्हें गहरा दुख हुआ और उसी समय ठान लिया कि यह सब कुछ जिसके इशारे पर हुआ है उसको सजा जरूर देकर रहेंगे। उन्होंने उसी समय प्रण कर अपने संकल्प को पूरा करने के लिए अपने नाम को अलग-अलग जगहों पर बदला और कई देशों में यात्राएं की।
उन्होंने एक पार्टी का निर्माण किया और इससे जुड़़ भी गए। उनको बिना लाइसेंस हथियार रखने पर गिरफ्तार कर लिया गया । वह चार साल जेल में सिर्फ यही सोच कर रहे कि बाहर निकल कर हत्याारें जनरल डायर को मारेंगे। जेल से रिहा होने के बाद वह अपने संकल्प को पूरा करने के लिए कश्मीर गए फिर वह भागकर जर्मनी चले गए। 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंच गए और वहां अपने कार्य को अंजाम देने के लिए सही समय का इंतजार करना शुरू कर दिया।
लंदन के रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी के कास्टन हाल में बैठक थी, जहां माइकल ओ’ डायर को आना था। उधम सिंह भी वहां जाकर बैठ गए थे। जैसे ही वह बैठक में समीप आया वैसे ही उन्होंने जनरल डायर पर दो गोलियां चलाई । घटना स्थल पर ही उसकी मृत्यु हो गई और उधम सिंह उसी जगह पर वह शांत खड़े रहे और अपना आत्मसमर्पण कर दिया। देश के इस वीर सपूत ने जलिया वाले बाग के 21 साल बाद 13 मार्च, 1940 को डायर को उसके किए की सजा दी। उन्हें डायर की मृत्यु का दोषी घोषित कर 31 जुलाई,1940 को लंदन में फांसी की सजा दी गई। उनके मृत शरीर के अवशेषों को उनकी पुण्यतिथि 31 जुलाई, 1974 के दिन भारत को सौंप दिए गए थे।
सिमरन साधना परिवार के सदस्यों और बच्चों ने बारी -बारी से गुरबाणी का कीर्तन गायन करके संगतों को भावविभोर किया। छोटी उम्र के बच्चे और बच्चियां बड़े पारंगत ढंग से राग में ही आधारित गुरबाणी का कीर्तन किया। दीवान की समाप्ति उपरांत दशमेश सेवा सोसायटी के सदस्यों ने समूह संगत में गुरु का लंगर वितरित किया।