प्रयागराज: मैथिलीशरण गुप्त परम्परा एवं पुनरूत्थान के कवि : प्रो नरेन्द्र
हिन्दी क्षेत्र की मध्यकालीन कविता का विस्तार गुजरात तक : प्रो दीपेन्द्र
प्रयागराज, 09 अक्टूबर । हिन्दी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित व्याख्यानमाला में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली हिन्दी विभाग के प्रो. नरेन्द्र मिश्र ने कहा कि मैथिलीशरण गुप्त मानवतावादी, नैतिकता वादी, समन्वयवादी, व्यष्टि और समष्टि एवं नर और नारायण का समन्वय करने वाले तथा नारी मुक्ति के कवि हैं। वे परम्परा और पुनरुत्थान के कवि हैं।
उन्होंने उनकी “अर्जन और विसर्जन“ कविता का संदर्भ उठाते हुए स्वाधीनता और देशप्रेम को उनका सबसे बड़ा मूल्य घोषित किया। “जयद्रथ वध“ काव्य का संदर्भ उठाते हुए कर्तव्यपथ दृढ़ता को मैथिलीशरण गुप्त के काव्यमूल्य के रूप में स्थापित किया। उन्होंने मैथिलीशरण गुप्त को परिवर्तन को सहज स्वीकार करने वाला मनस्वी कवि बताया।
दूसरे सत्र में महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, गुजरात हिन्दी विभाग के प्रो. दीपेन्द्र सिंह जाडेजा ने कहा कि पूर्व में गुजरात और राजस्थान में एक ही भाषा थी। मालवा और गुजरात का अभिन्न सम्बंध है। हिन्दी क्षेत्र की मध्यकालीन कविता का विस्तार गुजरात तक है। उन्होंने कहा कि हेमचंद्र का शब्दानुशासन गुजरात का गौरवशाली ग्रंथ है। नरसी मेहता गुजरात में तुलसी की तरह महान संत और भक्त कवि हैं। “दयाराम सतसई“ “बिहारी सतसई“ की तरह गुजरात का प्रसिद्ध सतसई महाग्रंथ है। महाकवि ब्रह्मानंद और स्वामी प्राणनाथ गुजरात के मध्यकालीन कविता के महान कवि हैं।
विभागाध्यक्ष प्रो. कृपाशंकर पाण्डेय ने कहा कि हिन्दी की मध्यकालीन कविता एवं गुजरात की मध्यकालीन कविता का संवेदना स्तर पर महत्वपूर्ण अंतर्सम्बन्ध है। उन्होंने मैथिलीशरण गुप्त को महान राष्ट्रकवि कहते हुए उनकी राष्ट्रीय कविता को आज भी प्रासंगिक और महत्वपूर्ण बताया।
व्याख्यानमाला के संयोजक हिन्दी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के डॉ. राजेश कुमार गर्ग ने कहा कि परम्परा और आधुनिकता दोनों दो पैरों की तरह हैं, उनमें आपस में कोई वैर नहीं है। दोनों के साथ चलने के भाव और निरन्तर आधुनिक होने के भाव बोध से ही कवि कर्म को पूर्णता प्राप्त होती है। धन्यवाद ज्ञापन डॉ अंशुमान कुशवाहा ने किया।