एक बार मुकदमा शुरू होने और गवाहों की जांच बाद, संवैधानिक अदालतों को जांच को फिर से खोलने या ट्रांसफर करने से बचना चाहिए: हाईकोर्ट

एक बार मुकदमा शुरू होने और गवाहों की जांच बाद, संवैधानिक अदालतों को जांच को फिर से खोलने या ट्रांसफर करने से बचना चाहिए: हाईकोर्ट

एक बार मुकदमा शुरू होने और गवाहों की जांच बाद, संवैधानिक अदालतों को जांच को फिर से खोलने या ट्रांसफर करने से बचना चाहिए: हाईकोर्ट

प्रयागराज, 12 अप्रैल ()। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा कि एक बार जांच पूरी हो जाने, आरोप पत्र दाखिल हो जाने और मुकदमा शुरू होने के बाद, हाईकोर्ट को आमतौर पर जांच को फिर से खोलने या इसे किसी अन्य जांच एजेंसी को सौंपने से बचना चाहिए। इसके बजाय, आरोप पत्र प्राप्त करने वाले मजिस्ट्रेट या अपराधों की सुनवाई करने वाली अदालत को कानून के अनुसार मामले को आगे बढ़ाने की अनुमति दी जानी चाहिए।

न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की पीठ ने उस्मान अली द्वारा दायर आपराधिक रिट याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश दिया है। इस मामले में अपने भाई की हत्या मामले की जांच अपराध शाखा आपराधिक जांच विभाग (सीबीसीआईडी) से राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए)/केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को स्थानांतरित करने की मांग की गई थी।

याची ने अपने भाई इम्तियाज अहमद, टोपन टाउन एरिया, सोनभद्र के चेयरमैन की हत्या के मामले में 25 अक्टूबर 2018 को एफआईआर दर्ज कराई थी। शुरुआत में सोनभद्र पुलिस ने मामले की जांच की, लेकिन बाद में आरोपी पक्षों के अनुरोध पर जांच सीबी-सीआईडी को सौंप दी गई।

फरवरी 2020 में विवेचना अधिकारी ने सीजेएम की अदालत के समक्ष आठ लोगों पर आरोप लगाते हुए एक पुलिस रिपोर्ट दायर की और नामजद आरोपियों राकेश जायसवाल और रवि जालान को दोषमुक्त कर दिया, जिनका नाम मृत्यु पूर्व बयान में भी था। मजिस्ट्रेट ने अगले दिन आरोपपत्र का संज्ञान लिया।

याची ने आरोप लगाया कि मामला जायसवाल और जालान के कहने पर सीबीसीआईडी को सौंप दिया गया और उनके आदेश के अनुसार सीबीसीआईडी ने उन्हें दोषमुक्त कर दिया। कहा गया कि एक विरोध अर्जी दायर की, जिसे अगस्त 2020 में खारिज कर दिया गया। इसे सत्र न्यायालय में चुनौती दी गई। जिसमें उनकी पुनरीक्षण याचिका को अनुमति दी गई और जांच की कई कमियों को इंगित किया गया और मामले को मजिस्ट्रेट के पास वापस भेज दिया गया। जहां मजिस्ट्रेट की अदालत ने जांच में खामियों और अनियमितताओं को देखते हुए विरोध अर्जी की अनुमति दे दी और मई 2022 में मामले की आगे की जांच का निर्देश दिया। इस आदेश में डीजीपी को आईओ के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए भी कहा गया।

इसके बाद मामला सीबी-सीआईडी वाराणसी से सीबी-सीआईडी प्रयागराज को स्थानांतरित कर दिया गया और एक नया आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया, जिसमें नामित आरोपी जायसवाल और जालान का नाम भी शामिल था, लेकिन यह रिकॉर्ड में नहीं है।

इस दौरान याची ने इस चार्जशीट को केस रिकॉर्ड का हिस्सा बनाने के लिए एक और आवेदन दायर किया, जिसे सितंबर 2024 में सीजेएम, सोनभद्र ने खारिज कर दिया। इसके बाद उन्होंने धारा 482 सीआरपीसी के तहत हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की वह मामला अभी भी लंबित है। इस बीच, सोनभद्र के सत्र न्यायालय में मुकदमा शुरू हो चुका है और अभियोजन पक्ष के आठ गवाहों की जांच हो चुकी है।

इस मामले में न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर विचार किया कि क्या मुकदमा शुरू होने और कई गवाहों के बयान के बाद जांच को सीबीआई/एनआईए को हस्तांतरित किया जा सकता है ? याची के वकील ने दलील दी कि संवैधानिक अदालतें नए सिरे से या पुनः जांच का आदेश दे सकती हैं, भले ही मुकदमा शुरू हो गया हो या कुछ गवाहों की जांच हो चुकी हो।

हालांकि, न्यायालय ने माना कि आरोप-पत्र दाखिल होने और मुकदमा शुरू होने के बाद भी “आगे की जांच” करने का निर्देश कानून में स्वीकार्य है, लेकिन हाईकोर्ट को आमतौर पर जांच को “फिर से खोलने” का निर्देश देने से बचना चाहिए।

न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में, जहां आरोप पत्र दाखिल हो चुका है और मुकदमा शुरू हो चुका है, मामले को ट्रायल कोर्ट पर छोड़ दिया जाना चाहिए, जो धारा 311 सीआरपीसी (धारा 348 बीएनएसएस) के मद्देनजर किसी भी गवाह या पहले से ही जांच किए गए गवाह को वापस बुलाने या किसी भी गवाह को बुलाने के लिए सक्षम है, भले ही दोनों पक्षों के साक्ष्य बंद हो गए हों। इस निर्णय के साथ कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और इसे खारिज कर दी।

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