बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के लिए निरुद्धि अवैध होना जरूरी : हाईकोर्ट

पिता के कब्जे से बेटे की मुक्ति की मांग में दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज

बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के लिए निरुद्धि अवैध होना जरूरी : हाईकोर्ट

प्रयागराज, 27 सितम्बर। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका विशेष स्थिति में ही जारी की जा सकती है। जिसके लिए अवैध निरुद्धि होना आवश्यक है। जब निरुद्धि वैध है या अवैध, जांच का विषय हो तो बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका जारी करने से इनकार किया जा सकता है।

कोर्ट ने कहा है कि आपसी सहमति से पति-पत्नी में तलाक हुआ। परिवार न्यायालय के आदेश से स्पष्ट नहीं कि बच्चा मां के साथ रहेगा। ऐसे में यदि पिता बच्चे को अपने साथ ले गया है तो गार्जियन एण्ड वार्ड एक्ट के तहत सिविल कोर्ट से अभिरक्षा की मांग की जा सकती है। इसके लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका जारी नहीं की जा सकती।

कोर्ट ने चार साल के बेटे पार्थ को उसके पिता की अवैध निरुद्धि से मुक्त कराने की मांग में मां द्वारा दाखिल याचिका खारिज कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति गौतम चौधरी ने दिया है।

याची का कहना था कि पति-पत्नी में विवाद के कारण आपसी सहमति से प्रधान न्यायाधीश परिवार न्यायालय फिरोजाबाद ने तलाक मंजूर कर लिया और सहमति बनी थी कि बेटा मां के साथ ही रहेगा। जब वह घर से बाहर थी तो पिता बेटे को जबरन उठा ले गया।

सरकारी वकील ने कहा कि अपहरण की एफआईआर दर्ज कराई गई है। याची ने स्वयं ही बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका तीन माह बाद दाखिल की है। वह बच्चे की अभिरक्षा के लिए सिविल कोर्ट जा सकती है। बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पोषणीय नहीं है। कोर्ट ने हस्तक्षेप से इंकार करते हुए याचिका खारिज कर दी है।