इलाहाबाद सीट पर फिर खिलेगा कमल या कांग्रेस करेगी वापसी!

इलाहाबाद सीट पर फिर खिलेगा कमल या कांग्रेस करेगी वापसी!

इलाहाबाद सीट पर फिर खिलेगा कमल या कांग्रेस करेगी वापसी!

21 मई । प्रयागराज जिला गंगा,यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर बसा हुआ है। ऐसी मान्यता है कि सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि का काम पूरा होने पर अपना पहला यज्ञ यहीं पर किया था। कुंभ नगरी प्रयागराज जिले की इलाहाबाद लोकसभा सीट सियासत के लिहाज से हाई प्रोफाइल मानी जाती रही है। पिछले एक दशक से इस सीट पर भाजपा का कब्जा है। उप्र की संसदीय सीट संख्या 52 इलाहाबाद में छठे चरण के तहत 25 मई को मतदान होगा।

इलाहाबाद संसदीय सीट का इतिहास

इलाहाबाद लोकसभा सीट की खासियत यह है कि यहां से हमेशा से राजनीति के दिग्गजों में चुनावी भिड़ंत होती रही। हेमवती नंदन बहुगुणा, छोटे लोहिया के नाम से मशहूर जनेश्वर मिश्र, मंडल के मसीहा विश्वनाथ प्रताप सिंह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे मुरली मनोहर जोशी प्रयागराज सीट से सांसद रहे। 1984 में राजीव गांधी ने अपने मित्र अभिनेता अमिताभ बच्चन को चुनाव मैदान में उतारा था। उस चुनाव में अमिताभ बच्चन के फिल्मी करिश्मे के सामने हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे दिग्गज नहीं टिक सके। हालांकि बोफोर्स विवाद में नाम आने के बाद अमिताभ बच्चन ने कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया। 1988 के उपचुनाव में विश्वनाथ प्रताप सिंह जीत गए।

1989 में यह सीट कांग्रेस से दूर छिटक गई,फिर उसके खाते में कभी नहीं लौटी। 1989 में जनता दल के जनेश्वर मिश्र इलाहाबाद से सांसद बने। 1991 में भी यह सीट जनता दल के पास रही। सरोज दुबे 1996 तक सांसद रहीं। 1996 से लेकर 1999 तक लगातार तीन बार भाजपा के मुरली मनोहर जोशी ने यहां से जीत दर्ज की। मगर 2004 में समाजवादी पार्टी के कुंवर रेवती रमण सिंह ने उन्हें हरा दिया। 2009 तक सपा का प्रयागराज लोकसभा सीट पर कब्जा रहा। 2014 के मोदी लहर में यह सीट फिर भाजपा के खाते में आई और श्याम चरण गुप्ता सांसद बने। 2019 में भाजपा ने दिग्गज नेता हेमवती नंदन बहुगुणा की बेटी और कांग्रेस की पूर्व नेता रीता बहुगुणा जोशी को प्रयागराज से उतारा। रीता ने यहां जीत का कमल खिलाया। इस बार भाजपा हैट्रिक लगाने की कोशिश में है। कांग्रेस आखिरी बार 40 साल पहले 1984 के चुनाव में यहां से जीती थी।

पिछले दो चुनावों का हाल

2019 के लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद संसदीय सीट के चुनावी परिणाम को देखें तो यहां पर भाजपा और सपा के बीच मुख्य मुकाबला था। भाजपा प्रत्याशी डॉ.रीता बहुगुणा जोशी को चुनाव में 494,454 (55.58 प्रतिशत) वोट मिले तो सपा के राजेन्द्र सिंह पटेल के खाते में 310,179 (34.87 प्रतिशत) वोट आए थे। रीता बहुगुणा जोशी को चुनाव में 184,275 मतों के अंतर से जीत मिली।

बात 2014 के चुनाव की कि जाए तो इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी श्याम चरण गुप्ता ने 62 हजार से वोटों के अंतर से जीत हासिल की। श्याम चरण के खाते में 313,772 (35.19 प्रतिशत) वोट आए। सपा के प्रत्याशी कुंवर रेवती रमण सिंह 251,763 (28.24 प्रतिशत) वोट मिले। बसपा और कांग्रेस प्रत्याशी तीसरे और चौथे स्थान पर रहे।

किस पार्टी ने किसको बनाया उम्मीदवार

भाजपा ने फूलपुर के मौजूदा सांसद रीता बहुगुणा जोशी का टिकट काटकर नीरज त्रिपाठी को मैदान में उतारा है। बसपा से रमेश कुमार पटेल और कांग्रेस से उज्ज्वल रमण सिंह चुनाव मैदान में हैं।

इलाहाबाद सीट का जातीय समीकरण

इलाहाबाद लोकसभा क्षेत्र के जातीय समीकरण को देखें तो यहां कुल मतदाताओं की संख्या सवा अठारह लाख से अधिक हैं। इस सीट पर ब्राह्मण मतदाता हमेशा निर्णायक रहे हैं। इसके बाद पटेल, बनिया, कायस्थ और मुस्लिम मतदाता प्रत्याशी की जीत तय करते हैं।

विधानसभा सीटों का हाल

इलाहाबाद लोकसभा सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें शामिल है। इसमें मेजा, करछना, प्रयागराज दक्षिण, बारा और कोरांव विधानसभा सीटें आती हैं। मेजा सीट सपा और बाकी चार सीटों पर भाजपा काबिज है।

जीत का गणित और चुनौतियां

ब्राह्मणों और मल्लाहों का गठजोड़ पिछले दो चुनावों में भाजपा को काफी रास आया। इलाहाबाद में इन दोनों बिरादरी के छह लाख से अधिक मतदाता हैं और इन्हें भाजपा अपना परंपरागत वोट बैंक मानती रही है। इनके अलावा करीब दो लाख पटेल मतदाताओं को भी भाजपा अपना परंपरागत वोटर मानती रही है। पार्टी उम्मीदवार नीरज त्रिपाठी की मजबूत दावेदारी के पीछे इन आठ लाख लाख से अधिक मतदाताओं के झुकाव को ही मुख्य वजह माना जा रहा है लेकिन मेजा से सपा विधायक संदीप पटेल तथा इन तीनों बिरादरी के कई अन्य नेता कांग्रेस के उज्ज्वल के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। इसके अलावा बसपा ने भी रमेश पटेल को मैदान में उतारा है। ऐसे में भाजपा इन मतों का बिखराव कितना रोक पाती है देखना होगा। भाजपा के सामने अनुसूचित जाति के मतदाताओं को अपने पक्ष में रोकने की भी चुनौती होगी। इस चुनाव में भाजपा एवं इंडिया गठबंधन के पिछड़ी जाति के नेताओं की परीक्षा भी होगी।

इलाहाबाद लोकसभा सीट इस बार विरासत की लड़ाई का चश्मदीद बनेगा। भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार बड़े सियासी रसूख वाले परिवारों से हैं। इस बार लड़ाई कांटे की हैं, जीत का कांटा किसी ओर भी झुक सकता है।

इलाहाबाद से कौन कब बना सांसद



1952 श्रीप्रकाश (कांग्रेस)



1952 पुरूषोत्तम दास टंडन (कांग्रेस) उपचुनाव



1957 लाल बहादुर शास्त्री (कांग्रेस)



1962 लाल बहादुर शास्त्री (कांग्रेस)



1967 हरि कृष्ण शास्त्री (कांग्रेस)



1971 हेमवती नंदन बहुगुणा (कांग्रेस)



1977 जनेश्वर मिश्र (भारतीय लोकदल)



1980 विश्वनाथ प्रताप सिंह (कांग्रेस)



1980 कृष्ण प्रकाश तिवारी (कांग्रेस) उपचुनाव



1984 अमिताभ बच्चन (कांग्रेस)



1988 विश्वनाथ प्रताप सिंह (निर्दलीय) उपचुनाव



1989 जनेश्वर मिश्र (जनता दल)



1991 सरोज दुबे (जनता दल)



1996 मुरली मनोहर जोशी (भाजपा)



1998 मुरली मनोहर जोशी (भाजपा)



1999 मुरली मनोहर जोशी (भाजपा)



2004 रेवती रमण सिंह (सपा)



2009 रेवती रमण सिंह (सपा)



2014 श्याम चरण गुप्ता (भाजपा)



2019 रीता बहुगुणा जोशी (भाजपा)