प्रो. राजेंद्र सिंह “रज्जू भैया“ के तत्वावधान में हुई “नागरिक संगोष्ठी“

समान नागरिक संहिता : आवश्यकता और अवसर पर की गई चर्चा

प्रो. राजेंद्र सिंह “रज्जू भैया“ के तत्वावधान में हुई “नागरिक संगोष्ठी“

प्रयागराज, 24 सितम्बर । प्रो. राजेंद्र सिंह रज्जू भैया स्वाध्याय मण्डल के तत्वावधान में “समान नागरिक संहिता : आवश्यकता और अवसर“ विषय पर मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के प्रो. प्रीतमदास प्रेक्षागृह में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि फिक्की लीडर फोरम, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष एवं भारत-तिब्बत समन्वयक संघ (युवा) के अध्यक्ष नीरज सिंह ने कहा कि यूनिफॉर्म और कामन शब्द में अंतर है। नागरिक संहिता सभी नागरिकों के लिए समान होनी चाहिए, जो भारत की उन्नति के लिए आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि समान नागरिक संहिता के विरोध में मुस्लिम समुदाय सबसे मुखर है। जबकि अन्य अल्पसंख्यक समुदाय इसके विरोध में नहीं हैं। क्रिश्चियन बहुल गोआ में समान नागरिक संहिता लागू है और किसी समुदाय ने अब तक कोई पीड़ा व्यक्त नहीं की। मुस्लिम महिलाएं तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने के अधिकार के मामले में अन्य समुदाय की महिलाओं से अपने को कमतर पाती हैं। पीड़ित हैं, पर अपनी पीड़ा मुखर रूप से व्यक्त नहीं कर पातीं। यह भारतीय युवाओं का कर्तव्य है कि वे पीड़ितों के स्वर बनें और लोगों को जागरूक कर समान नागरिक संहिता की स्वीकार्यता के लिए वातावरण तैयार करें।



विशिष्ट वक्ता राकेश पाण्डेय, पूर्व अध्यक्ष हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने कहा कि संविधान के भाग 4 में नीति निर्देशक सिद्धांत हैं। जिनमें अनुच्छेद-44 में कहा गया है कि विधायिका उचित समय पर समान नागरिक संहिता का निर्माण करेगी। मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को अपनी हिन्दू बहनों के बराबर विवाह, उत्तराधिकार आदि के कानून नहीं हैं। ट्राइब्स के कस्टमरी कानून भी अलग अलग हैं। पिछले लॉ कमीशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि अभी समान कानून का समय नहीं है, पर मैं कहता हूं कि यही समय है।

सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि किसी भी देश की आर्थिक उन्नति के लिए समाज में भी सुधार आवश्यक है। भारत की 80 प्रतिशत आबादी पर आज समान नागरिक संहिता लागू है। 1955 में हिन्दू कोड बिल पास हो जाने के बाद हिंदुओं में जागरूकता आई और एक तरह से जाति की दीवार गिरी। हिंदू कानून में धीरे-धीरे बहुत सुधार हुए। 14 फीसदी आबादी जो आज समान नागरिक संहिता का विरोध करती है, 1937 के पहले इन पर भी हिंदुओं के कानून ही लागू होते थे।

उन्होंने कहा कि एक साज़िश के तहत 1937 में शरियत कानून लागू किया गया। इसके पीछे उलेमा थे, इस्लामिक स्कॉलर और मुस्लिम जमींदार थे। उस समय कई मुस्लिम समुदायों ने शरिया का विरोध किया था। जिनमें मालाबार के मुस्लिम एवं खोजा आदि थे। उन्होंने कहा कि अगर समान नागरिक संहिता लागू हो जाय तो विवाह के लिए होने वाले धर्मांतरण बंद हो जाएंगे और सांप्रदायिक दीवार ढहने लगेगी। तीन चौथाई मुस्लिम आबादी शरिया की वजह से पसमांदा (पिछड़ा) है, यदि समान नागरिक संहिता लागू हुई तो यह भी समाज की मुख्य धारा में आ जाएगी।

प्रांत मीडिया संयोजक, काशी प्रांत अभिनव मिश्र ने बताया कि इस दौरान विशिष्ट अथिति मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ एसपी सिंह भी उपस्थित रहे। विषय प्रवर्तन इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य विनम्र सेन सिंह ने एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ मृत्युंजय राव परमार ने संचालन तथा गोष्ठी के संयोजक सुजीत सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

इस अवसर पर डॉ बी.बी. अग्रवाल, अरुणेंद्र सिंह अन्नू, डॉ सुजीत सिंह (इविवि), अभिषेक राय सूर्या, अमित सिंह विकाश, डॉ सर्वेश सिंह, शैलेंद्र मौर्या, वेद दुबे सहित अन्य लोग उपस्थित रहे।