माघ मेला में मिलेट्स पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

मिलेट्स विश्व के भविष्य के लिए समग्र समाधान : डॉ अशोक वार्ष्णेय

माघ मेला में मिलेट्स पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

प्रयागराज, 31 जनवरी। आरोग्य भारती के राष्ट्रीय संगठन सचिव एवं आयुष मंत्रालय भारत सरकार के सलाहकार समिति सदस्य डॉ अशोक कुमार वार्ष्णेय ने कहा कि पूरे विश्व में पोषण के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में मोटे अनाज की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। मिलेट्स विश्व के भविष्य के लिए समग्र समाधान है।

यह बातें माघ मेला काली मार्ग स्थित राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय में पौष्टिक मोटे अनाज के बारे में जागरूकता और जन भागीदारी की भावना पैदा करने के उद्देश्य से आयुर्वेद विभाग उत्तर प्रदेश, विश्व आयुर्वेद मिशन, आरोग्य भारती एवं पारि-पुनर्स्थापना वन अनुसंधान केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। डॉ वार्ष्णेय ने आगे कहा कि पोषक तत्वों से भरपूर मोटे अनाज से कुपोषण से मुक्ति पाई जा सकती है। इनमें मौजूद आयरन मैग्नीशियम विटामिन बी, लो ग्लाईसीमिक इंडेक्स, हाई फाइबर, न्यूट्रिएंट्स रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, पेट सम्बन्धी बीमारी से बचाव एवं भुखमरी की समस्याओं को दूर करने में मददगार हो सकते हैं।

विश्व आयुर्वेद मिशन के अध्यक्ष प्रो. (डॉ) जी.एस. तोमर ने कहा कि मोटा अनाज हमारी प्राचीन सभ्यता का अभिन्न अंग है। यह ग्रामीण स्वास्थ्य का रहस्य है। बाजरा, ज्वार, रागी, कुटकी, सांवा, कोदो, कुट्टू हमारे ग्राम्यांचल की रसोई का महत्वपूर्ण अंग हुआ करते थे। किसान एवं खेतिहर श्रमिकों का मुख्य भोजन मोटा अनाज ही रहा है। यही कारण है कि इस वर्ग में कैल्शियम आयरन की कमी कम देखने को मिलती है। फाइबर की मात्रा अधिक होने से इस वर्ग के लोगों में कब्ज कभी नहीं मिलता है। मोटा अनाज हमें मधुमेह उच्च रक्तचाप हृदय रोग एवं मोटापा जैसे विभिन्न रोगों से बचाता है।

क्षेत्रीय आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी डॉ शारदा प्रसाद ने कहा कि स्वस्थ राष्ट्र के लिए मोटे अनाज के प्रति जनजागरूकता समय की मांग है। विशिष्ट अतिथि अपर मेला अधिकारी डॉ विवेक चतुर्वेदी ने कहा कि हमारा पुराना खान-पान चिकित्सकीय गुणों से युक्त था, लेकिन लाइफस्टाइल बदलने से हमारा खान-पान भी बदल गया। आज लोग मिलेट की ओर बढ़ रहे हैं। मोटा अनाज पोषण का पावर हाउस है। मोटे अनाज को प्रोत्साहन समय की मांग है, यह बदली जीवन शैली से उत्पन्न बीमारियों को रोकने में सक्षम है।

एफआरसीईआर की वैज्ञानिक डॉ अनीता तोमर ने कृषि वानिकी में मिलेट लगाने और किसानों की आय बढ़ाने में मिलेट एवं वानिकी की भूमिका का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आज हर एक जनता की थाली तक मिलेट पहुंचाने का सरकार का प्रयास है, यह बात प्रधानमंत्री ने मन की बात में कही। बीडी सिंह ने हरित क्रांति के दुष्परिणाम पर चर्चा करते हुए कहा कि कभी हमारी उपज में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले मोटे अनाज आज 10 प्रतिशत से भी नीचे आ गए। मोटे अनाज सिमटते चले गए और गेहूं चावल और बीमारियों ने हर जगह कब्जा कर लिया। डाबर इंडिया के जनरल मैनेजर डॉ दुर्गा प्रसाद ने बताया कि मोटे अनाज का उत्पादन पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी सहज है।

जीबी पंत सामाजिक संस्थान के प्रो. केएन भट्ट ने कहा कि मिलेट्स यानी मोटे अनाज खेती किसानी के लिहाज से बेहद मुनाफे वाली फसल है। गेहूं एवं चावल की तुलना में मोटे अनाज 3 से 5 गुना अधिक पौष्टिक हैं। मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज की पूर्व शोध अधिकारी डॉ शांति चौधरी ने कहा कि मिड डे मिल एवं बच्चों के टिफिन में मोटे अनाज का प्रयोग करने से बच्चों में कुपोषण की समस्या से मुक्ति मिलेगी। डॉ भरत नायक, डॉ श्वेता सिंह, डॉ आशीष कुमार त्रिपाठी, डॉ राजेश मौर्य, डॉ अवनीश पाण्डेय, डॉ दीप्ती योगेश्वर ने अपने विचार रखे।



इस अवसर पर मोटे अनाज और इनसे संबंधित खाद्य पदार्थों की प्रदर्शनी भी लगाई गई। साथ ही मोटे अनाज को बढ़ावा देने में प्रयासरत किसानों को सम्मानित भी किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ अवनीश पाण्डेय ने किया। इस अवसर पर आरोग्य भारती पूर्वी क्षेत्र संयोजक गोविंद, संग्राम सिंह, डॉ अजय मिश्र, डॉ एस के राय, डॉ भरत नायक, डॉ अशोक कुशवाहा, डॉ राजेन्द्र कुमार सहित किसान एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।