प्रकृति का सम्बंध पंच तत्वों से, जल ही औषधियों का मूल - प्रो. रोहिणी

प्रकृति का सम्बंध पंच तत्वों से, जल ही औषधियों का मूल - प्रो. रोहिणी

प्रयागराज, 04 जुलाई । संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़ के पूर्व कुलपति प्रो. रोहिणी प्रसाद ने कहा कि प्रकृति का सम्बंध पंच तत्वों से है और इन्हीं तत्वों में से एक जल है। यदि इन तत्वों में संकट होगा तो सम्पूर्ण प्रकृति इससे अस्त व्यस्त होगी। वेदों में जल को देवता कहा गया है, जल ही औषधियों का मूल है।
भारत सरकार द्वारा चलाये जा रहे “कैच द रेन“ अभियान के अंतर्गत इलाहाबाद विश्वविद्यालय राष्ट्रीय सेवा योजना द्वारा आयोजित वेबीनार में रविवार को उन्होंने कहा कि दुःख की बात यह है कि अफगानिस्तान, कीनिया, इथोपिया जैसे देशों में 90 प्रतिशत से ऊपर लोग प्रदूषित जल पी रहे हैं। भारत में भी यह आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। आज मुम्बई में 10 हजार तो चेन्नई में 4000 से अधिक प्रत्येक परिवार की पेयजल लागत आ रही है। समुद्र के किनारे होते हुए भी मुम्बई प्यासा है। वाटर हार्वेस्टिंग तंत्र का सर्वत्र अभाव है। उन्होंने छोटे-छोटे बांधों और तालाबों को बढ़ाकर जल संग्रहण किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया। कहा कि गुजरात का नर्मदा मॉडल पूरे देश में अपनाया जा सकता है।
प्रो. रोहिणी प्रसाद ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने भी नदियों को जोड़ने का आंदोलन प्रारम्भ किया था, पर अभी वह अनेक कारणों से अपनी परिणति को नहीं प्राप्त हो पाया। उन्होंने कहा कि हमें जल का उपभोग भी समावेशी करना होगा। चेन्नई जैसे शहरों में होटलों में मांगने पर आधा गिलास पानी मिलना आज व्यवस्था बन चुकी है। यह स्थिति सारे भारत के भू-भाग में न हो जाए, इसकी चिंता हमें करनी होगी। उन्होंने ऐसे साबुनों के भी परिमार्जन पर बल दिया, जिनके प्रक्षालन में हमें अधिक से अधिक जल व्यर्थ करना पड़ता है।

श्रीगोविंद गुरु विश्वविद्यालय गुजरात के कुलपति प्रो. प्रताप सिंह चौहान ने पशु, पक्षियों, जड़, जंगम सभी के संवर्धन पर बल दिया। कहा कि बिना पानी के जीवन सम्भव नहीं है। देश में 1000 से अधिक विश्वविद्यालय एवं 16 लाख से अधिक शिक्षक हैं। क्या हम सब मिलकर बारिश के पानी के संग्रहण का दायित्व का निर्वाह नहीं कर सकते? उन्होंने पानी के बचाव के उपायों को दिनचर्या में अपनाने पर जोर देते हुए कहा कि ग्रीड का अंत नहीं है। हमें नीड बेस जीवन जीना होगा और इसके लिए पूरे समाज, विद्यार्थी और पूरी व्यवस्था को न केवल प्रशिक्षित करना होगा बल्कि स्वयं भी आदर्श प्रस्तुत करना होगा।

कार्यक्रम के संयोजक इविवि राष्ट्रीय सेवा योजना के समन्वयक डॉ. राजेश कुमार गर्ग ने कहा कि भारत के गांवों में स्वाभाविक जल रिचार्ज करने की व्यवस्था हुआ करती थी। हम अपने घर का पानी अपने ही घर के भीतर किसी गड्ढे, तालाब में इकट्ठा करके और उससे जलस्तर बनाए रखते थे। महानगरों में हम जल रिचार्ज की व्यवस्था नहीं कर पा रहे हैं। इसके लिए और अधिक प्रयास की आवश्यकता है। शहर में प्रत्येक मकान को वाटर हार्वेस्टिंग करना होगा, हमें तालाबों, पोखरों का संरक्षण और संवर्धन करना होगा और नए तालाबों के निर्माण की तरफ भी प्रयासरत रहना होगा। कार्यक्रम का संचालन इलाहाबाद डिग्री कॉलेज की दर्शनशास्त्र विभाग की विभागाध्यक्षा डॉ तनूजा तिवारी ने किया।