लोकसभा चुनाव से पहले एक-एक कर सपा से सरक गये सहयोगी दल
लोकसभा चुनाव से पहले एक-एक कर सपा से सरक गये सहयोगी दल
लखनऊ, 05 अप्रैल । उत्तर प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी (सपा) इन दिनों अन्तर्कलह से जूझ रही है। विधानसभा चुनाव 2022 में छोटे-छोटे दलों का गठबंधन बनाकर सपा लड़ी तो पार्टी की ताकत बढ़ी थी लेकिन लोकसभा चुनाव आते-आते पार्टी के कई बड़े नेता, विधायक व सयोगी दल सपा का साथ छोड़ गये।
स्वामी प्रसाद मौर्य, पल्लवी पटेल, चन्द्रशेखर और ओवैसी ने सपा से किनारा कर लिया है। यही नहीं सपा के सहयोगी दल भी जिनमें सुभासपा, अपना दल कमेरावादी व महानदल भी सपा से अलग हो गये। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले रालोद ने भाजपा गठबंधन का हिस्सा बनकर सपा के अरमानों पर पानी फेर दिया। जानकारों के मुताबिक मजबूरी में सपा ने यूपी में जनाधार विहीन हो चुकी कांग्रेस के साथ समझौता किया है। जबकि इससे पहले 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा व कांग्रेस के गठबंधन को जनता नकार चुकी है।
सपा का साथ छोड़ चुके हैं पार्टी के कई बड़े नेता
पूर्व मंत्री नरेन्द्र सिंह यादव, पूर्व मंत्री अवधपाल यादव, पूर्व सांसद देवेन्द्र सिंह यादव, एमएलसी आशु यादव व पूर्व विधायक शिशुपाल यादव समेत कई नेता सपा का हाथ छोड़ चुके हैं। आठ बार के विधायक व दो बार सांसद रहे कुंवर रेवती रमण सिंह भी समाजवादी पार्टी छोड़कर कांग्रेेस का हाथ थाम चुके हैं। फैजाबाद से तीन बार सांसद रहे मित्रसेन यादव के पुत्र अरविन्द सेन यादव सपा से नाराज होकर सीपीआई के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। सपा छोड़कर जाने वालों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लड़ाई से बाहर सपा
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता अवनीश त्यागी ने हिन्दुस्थान समाचार से कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी लड़ाई से बाहर हो चुकी है। रही बात अन्य चरणों की तो वहां भी भाजपा क्लीन स्वीप करेगी। उन्होंने कहा कि इस बार टिकट अदला बदली के मामले में सपा ने बसपा को भी पीछे छोड़ दिया है। सपा के इतिहास में शायद यह पहला अवसर होगा जब इतने बड़े पैमाने पर सपा ने उम्मीदवारों के नाम घोषित करने के बाद टिकट बदला हो। जिस तरह से सपा ने प्रथम व दूसरे चरण के प्रत्याशियों के टिकट नामांकन के अंतिम समय में काटे हैं, उससे तो यही प्रतीत होता है कि बाकी चरणों में भी सपा कई लोक सभाओं के टिकट में फेरबदल अवश्य करेगी।