सम्मन तामीले में देरी की तय हो जवाबदेही 

सम्मन तामीले में देरी की तय हो जवाबदेही 

सम्मन तामीले में देरी की तय हो जवाबदेही 

-डीजीपी को दिशा निर्देश जारी करने का आदेश -अदालतों से कहा सम्मन की तामील होने या न होने की स्थिति पत्रावली पर दर्ज करें

प्रयागराज, 21 जनवरी (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सम्मन आदेश को तामील करने में देरी करने वाले पुलिस अधिकारियों की जवाबदेही तय करने तथा न्यायिक अधिकारियों को सम्मन आदेश की तामील होने या न होने की स्थिति पत्रावली पर दर्ज करने का निर्देश दिया है।

कोर्ट ने डीजीपी को कोर्ट से जारी सम्मन आदेश का समय से तामील करने को लेकर परिपत्र जारी करने के लिए आदेश की प्रति उन्हें भेजने का आदेश दिया है। साथ ही महानिबंधक को सभी जिला जजों को भी आदेश भेजने का निर्देश दिया है।

कोर्ट ने कहा सम्मन तामील करने में देरी से न्याय मिलने में देरी होती है। न्यायिक कार्य प्रणाली में इससे अनिश्चितता आती है और न्यायिक तंत्र पर जन विश्वास कमजोर होता है। साथ ही अदालतों पर मुकदमों का बोझ बढ़ता है। सम्मन का समय से तामील किये जाने से न्यायिक कार्य प्रणाली की पवित्रता व निष्पक्षता कायम रहती है। कोर्ट ने प्रश्नगत मामले को मध्यस्थता केंद्र भेजने का आदेश देते हुए याची को 35 हजार रूपए का डिमांड ड्राफ्ट महानिबंधक कार्यालय में जमा करने तथा याचिका की अगली सुनवाई के लिए 31 जनवरी को पेश करने का आदेश दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति मंजूरानी चौहान ने विजय कुमार कुशवाहा व तीन अन्य की याचिका पर दिया है। हाईकोर्ट ने कोर्ट से जारी सम्मन तामील न होने की सरकारी वकील से जानकारी मांगी तो बताया कि पते पर तीन बार पुलिस गई किन्तु कोई नहीं मिला। 15 जनवरी 25 को सम्मन तामील कर दिया गया है।

कोर्ट ने कहा अक्सर संज्ञान में आया है कि सम्मन तामील करने में अधिकारियों की लापरवाही के कारण न्याय देने में देरी होती है। यह कमी उचित न्याय देने की प्रक्रिया में बाधक है। समय से सम्मन तामील न होने से कोर्ट के कीमती समय की बर्बादी होती है और वादकारी पर अनुचित दबाव पड़ता है। इसलिए इसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए।

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