शरद पूर्णिमा 19 अक्टूबर को, इस दिन चन्द्रमा से होती है अमृत वर्षा

शरद पूर्णिमा 19 अक्टूबर को, इस दिन चन्द्रमा से होती है अमृत वर्षा

शरद पूर्णिमा 19 अक्टूबर को, इस दिन चन्द्रमा से होती है अमृत वर्षा

शरद पूर्णिमा त्योहार 19 को अक्टूबर को मनाया जाएगा। लोक मान्यता है कि इस तिथि चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है और उसकी किरणों से अमृत वर्षा वर्षा होती है। हिन्दी महीने की आाश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा कहते हैं। शरद पूर्णिमा को कौमुदी व्रत, कोजागरी पूर्णिमा’ और ‘रास पूर्णिमा’ के नाम से भी जाना जाता है।

पौराणिक मान्यतानुसार इस दिन चन्द्रमा अपनी पूरी 16 कलाओं से युक्त होता है। इस दिन चन्द्रमा की चांदनी अमृत से युक्त होती है। लखनऊ के ज्योतिषाचार्य एस.एस.नागपाल ने बजाया कि पंचांग के अनुसार पूर्णिमा तिथि 19 अक्टूबर को सांयकाल 7:40 मिनट से प्रारम्भ होकर दूसरे दिन 20 अक्टूबर को सांयकाल 8:26 मिनट तक रहेगी। 19 अक्टूबर शरद पूर्णिमा, मंगलवार को रेवती नक्षत्र और चन्द्रमा मीन राशि में संयोग बना रहे हैं।

पौराणिक आख्यान है इस तिथि में भगवान श्री कृष्ण ने ‘रास लीला’ की थी, इसलिए इसे रास पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन प्रातः स्नान करके भगवान श्री कृष्ण या श्री विष्णु जी या अपने इष्ट देव का पूजन अर्चना करना चाहिए। उपवास रखना चाहिए।

पंडित जी बताते हैं रात में गाय के दूध में घी और चीनी मिलाकर खीर बनानी चाहिए। अर्ध रात्रि को खीर का भगवान को भोग लगाना चाहिए। चन्द्रमा को भी अर्ध्य देना चाहिए। खीर को चांदनी रात में रखना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से चन्द्रमा की किरणों से अमृत प्राप्त होता है। पूर्णिमा की चांदनी औषधि गुणों से युक्त होती है। इसमें रखी खीर का सेवन करने से हमारे चन्द्र ग्रह संबंधी दोष जैसे कि कफ, सर्दी छाती के रोग और हार्माेस संबंधी रोगों में लाभकारी है। इस तिथि में चांदनी रात में बैठने से और सुई में धागा पिरोने की भी परम्परा है। ऐसा माना जाता है कि इससे आंखों की रोशनी तेज होती है। प्रातःकाल सूर्य उदय से पूर्व इस खीर का प्रसाद के रूप में सेवन करना चाहिए जिससे वर्ष भर आरोग्यता होती है।

बंगाली परिवारों में मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करने आती हैं। वह देखती है इस रात कौन जाग रहा है। जो लोग रात्रि में भजन कीर्तन करते हुए मां लक्ष्मी का आह्वान करते हैं, धन की देवी उनके घर में वास करती है। बंगाली परिवारों में इसे को जागरी व्रत कहा जाता है। पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, असम में विशेष रूप से लक्ष्मी पूजन किया जाता है। माता लक्ष्मी, कुबेर और इन्द्र देव का पूजन और श्री सूक्त, लक्ष्मी स्तोत्र और लक्ष्मी मंत्रों का जाप करना चाहिए।