रायसीना हिल्स के करीब द्रौपदी मुर्मू
प्रो. श्याम सुंदर भाटिया
मायावती जब पहली बार यूपी की मुख्यमंत्री बनीं तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव विदेश दौरे पर थे। किसी पत्रकार ने राव से पूछा कि दलित की बेटी मुख्यमंत्री बन गई है, कैसे संभव हुआ? सियासी पुरोधा राव ने अपनी हाजिर जवाबी में कहा, यह लोकतंत्र का चमत्कार है। बरसों पुरानी यह सारगर्भित टिप्पणी आज द्रौपदी मुर्मू पर सौ फीसदी खरी उतरती है। यह बात दीगर है, जिंदगी ने मुर्मू को गहरे जख्म दिए हैं। ओडिशा के यह परिचित आदिवासी चेहरा अब रायसीना हिल्स के बेहद करीब है। देश का प्रथम नागरिक बनना महज औपचारिकता दिख रहा है। भाजपा नीत राजग गठबंधन ने देश के सर्वोच्च संवैधानिक राष्ट्रपति पद के चुनाव में उन्हें सर्वसम्मति से अपना उम्मीदवार घोषित कर सियासी गलियारों को चौंका दिया है। प्रतिद्वंद्वी के रूप में यशवन्त सिन्हा विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार हैं। लगभग-लगभग चुनाव नतीजे मुर्मू के पक्ष में हैं। रही-सही कसर ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समर्थन ने पूरी कर दी है। झारखंड की पूर्व राज्यपाल मुर्मू वहां के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सजातीय हैं। सियासी पंडितों का मानना है, समर्थन के सामने राजनीतिक समीकरण घुटने टेक देगा। दीगर दलों का सर्मथन भी मुर्मू को मिलने की भी प्रबल संभावना है। मुर्मू की सादगी इस छोटे से वाकये से झलकती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें बधाई फोन किया तो वह निःशब्द रहीं। आंखों में बस आंसू थे। गला रुंध गया। मुर्मू ने अपनी बेटी इतिश्री से यह कहकर अपनी खुशी जाहिर की, बेटा- किसी आदिवासी के लिए यह सपने जैसा है।
सियासी सफर: ओडिशा के आदिवासी जिले मयूरभंज के कुसुमी ब्लॉक में 20 जून, 1958 को जन्मीं आर्ट ग्रेजुएट द्रौपदी मुर्मू ने अपने करियर की शुरुआत एक क्लर्क के रूप में की। फिर वह टीचर बन गईं। 1997 में पहली बार निगम पार्षद बनीं। ओडिशा के रायरंगपुर से दो बार भाजपा के टिकट पर विधायक चुनी गईं। 2000 से 2004 के बीच नवीन पटनायक सरकार में मंत्री बनीं। 2010 और 2013 में वह मयूरभंज की जिलाध्यक्ष भी रहीं। उन्हें 2015 में झारखंड का राज्यपाल बना दिया गया। 18 मई, 2015 से 12 जुलाई, 2021 तक वह इस पद पर काबिज रहीं। मुर्मू को ओडिशा विधानसभा ने सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ अवार्ड से भी सम्मानित किया।
20 को बर्थ-डे, 21 को भाजपा का गिफ्ट: आदिवासी हितों की पुरोधा कही जाने वालीं कद्दावर महिला शख्सिय में मुर्मू भी शुमार हैं। लेकिन उनकी सादगी भी बेमिसाल है। बतौर गवर्नर अंतिम दिन 12 जुलाई, 2021 को वह झारखंड के राजभवन से सीधे ओडिशा के अपने पैतृक गांव रवाना हो गईं। इस साल उन्होंने 20 जून को अपनी बेटी और दामाद के संग सादगी से दिल्ली से सोलह सौ किलोमीटर गांव में जन्मदिन मनाया। 21 जून को सूचना मिली कि एनडीए उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाना चाहता है। एक तरह से भाजपा ने मुर्मू को 64वें बर्थ-डे से अगले दिन बड़ा तोहफा दिया। फर्श से अर्श तक पहुंचने में उन्हें करीब-करीब 25 साल लग गए। मुर्मू की छवि सख्त प्रशासक की तो है, लेकिन एकदम बेदाग है। राज्यपाल के तौर पर मुर्मू झारखंड सरकार को समय-समय पर आईना दिखाने में कभी नहीं हिचकीं।
दुखों का पहाड़: मुर्मू ने जीवन में दो बेटों और पति को खोने के बाद हर बाधा का डटकर मुकाबला किया। 2009 उनके जीवन में बड़ा क्रूर बनकर आया। उनके पुत्र की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई। वह इस सदमे से निकलने में जुटी ही थीं, लेकिन ईश्वर को कुछ और मंजूर था। महज तीन साल के अंतराल में उनके दूसरे बेटे को 2012 में सड़क हादसे ने लील लिया। दोनों पुत्रों की मृत्यु से अरसा पहले उनके पति श्याम चरण मुर्मू की हर्ट अटैक से मौत हो गई। द्रौपदी मुर्मू की पुत्री इतिश्री अपने पति के साथ जमशेदपुर में रहती हैं। संथाल परिवार से ताल्लुक रखने वालीं मुर्मू को घर चलाने और बेटी को पढ़ाने के लिए बेहद दिक्कतों का सामना करना पड़ा। टीचर बनीं। बाबू बनीं। बैंक में नौकरी की। किसी तरह से अपनी बेटी इतिश्री को पढ़ाया-लिखाया। द्रौपदी मुर्मू अब आद्याश्री की नानी बन चुकी हैं।
अरे...,सुनो: द्रौपदी मुर्मू का कहना है कि टीवी न्यूज चैनल देखते समय ही उन्हें राजग के फैसले की जानकारी मिली। यह संवैधानिक पद है। यदि मैं इस पद के लिए चुन ली गई तो संवैधानिक प्रावधानों और अधिकारों के अनुसार काम करूंगी। उधर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उम्मीद जताई है कि वह महान राष्ट्रपति साबित होंगी। बतौर झारखंड की फर्स्ट लेडी विशेषकर विश्वविद्यालयों के कुलपति के रूप में उनकी पारी यादगार रही है। झारखंड में उन्होंने 2016 में उच्च शिक्षा से जुड़े मुद्दों पर खुद लोक अदालत लगवाई थी, जिसमें विवि शिक्षकों और कर्मचारियों के पांच हजार मामलों का निपटारा किया गया था। वह जनजातीय मामलों, शिक्षा, कानून व्यवस्था, स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर वह हमेशा सजग रहीं। उन्होंने राज्य सरकार के निर्णयों में हमेशा संवैधानिक गरिमा और शालीनता के साथ हस्तक्षेप किया है।(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)