राजर्षि टंडन ने हिन्दी को स्थापित करने का भगीरथ प्रयास किया : प्रो. केबी पाण्डेय
मुक्त विवि करेगा राजर्षि टंडन से जुड़े दुर्लभ लेखों का संग्रह : कुलपति
प्रयागराज, 01 अगस्त । राजर्षि टंडन ने हिन्दी को स्थापित करने का भागीरथ प्रयास किया। उनका मानना था कि हिन्दी ही पूरे देश को एकता के सूत्र में बांध सकती है। हिन्दी को समृद्ध बनाने के साथ-साथ राजर्षि टंडन चाहते थे कि स्वतंत्र भारत के तरुण अपने को देश के प्राचीन गौरव तथा आदर्शों से जोड़ें। इसके लिए शिक्षा से बड़ा और कोई माध्यम नहीं हो सकता।
यह बातें मुख्य अतिथि लोक सेवा आयोग, उत्तर प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष प्रो. के बी पाण्डेय ने उप्र राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय में मंगलवार को भारत रत्न राजर्षि टंडन के जन्मदिवस पर स्मृति व्याख्यानमाला में कही। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में राजर्षि टंडन के नाम पर स्थापित यह मुक्त विवि राजर्षि की अपेक्षाओं पर निरंतर खरा उतर रहा है। राजर्षि टंडन के मन में गरीबों दलितों वंचितों तथा महिलाओं के उत्थान की बलवती आकांक्षा थी। उन्होंने बताया कि इस विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डी पी सिंह जहां उनके गुरू रहे, वहीं एक अन्य कुलपति प्रो. ए के बख्शी उनके शिष्य रहे।
इसी तरह उन्होंने राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन के पुत्र संत प्रसाद टंडन एवं उनके पौत्र दिनेश टंडन से अपने सम्बंधों को साझा किया। प्रोफेसर पांडेय ने कहा कि जिस प्रकार प्रयागराज को गंगा यमुना सरस्वती की त्रिवेणी के नाम से जाना जाता है। उसी तरह राजनीति के क्षेत्र में भी राजर्षि टंडन, महामना मदन मोहन मालवीय तथा पंडित जवाहरलाल नेहरू को प्रयागराज की आधुनिक त्रिवेणी कहा जाता था।
मुख्य वक्ता कवि एवं साहित्यकार उमेश चंद्र कक्कड़ ने कहा कि राजर्षि टंडन ने हिन्दी भाषा के प्रचार के लिए केवल वैचारिक योगदान ही नहीं किया बल्कि उसे व्यवहारिक रूप भी दिया। हिन्दी साहित्य सम्मेलन के जन्मदाताओं में उनकी भूमिका प्रमुख थी। उनका मानना था कि हिन्दी भारत की रीढ़ है, भारत की आत्मा है, हिन्दी के प्रति टंडन का अगाध प्रेम अभिनंदनीय है। उन्होंने कहा कि हमारी मातृभाषा जितनी समर्थ और विकसित होगी उतना ही वैश्विक स्तर पर हमारा राष्ट्र और नागरिक विकसित होंगे।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रोफ़ेसर सीमा सिंह ने कहा कि राजर्षि टंडन नियम और अनुशासन के बहुत पाबंद थे। उनका जीवन हम सबके लिए अनुकरणीय है। उन्होंने कहा कि मुक्त विवि ने अपने पुस्तकालय में राजर्षि टंडन से जुड़े दुर्लभ लेख एवं पांडुलिपियों के संग्रह का कार्य प्रारम्भ किया है। उन्होंने जन सामान्य से इस कार्य में सहयोग करने का आह्वान किया। जिससे आने वाली पीढ़ी राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन जैसे महामनीषी के बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त कर सके।
संचालन कौमुदी शुक्ला एवं धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव कर्नल विनय कुमार ने किया। अतिथियों का स्वागत निदेशक प्रोफेसर पी के पांडेय ने किया। संयोजक डॉ जी. के. द्विवेदी रहे तथा अतिथियों का परिचय आयोजन सचिव डॉ दिनेश सिंह ने दिया। इस अवसर पर राजर्षि टंडन के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आयोजित लेख प्रतियोगिता में शिक्षक, कर्मचारी एवं छात्र वर्ग में प्रथम तीन स्थान पर आए प्रतिभागियों को मुख्य अतिथि, कुलपति व मुख्य वक्ता ने स्मृति चिन्ह एवं प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया।