पेट्रोल-डीजल की कीमतों में 40 पैसे की बढ़ोतरी, दिल्ली में पेट्रोल 104 रुपये के करीब
पेट्रोल-डीजल की कीमतों में 40 पैसे की बढ़ोतरी, दिल्ली में पेट्रोल 104 रुपये के करीब
नई दिल्ली, 4 अप्रैल । पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी का सिलसिला जारी है। सरकारी ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने आज एक बार फिर पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी कर दी है। दिल्ली में पेट्रोल और डीजल की कीमत में आज प्रति लीटर 40 पैसे की बढ़ोतरी की गई है। इस बढ़ोतरी के बाद राजधानी दिल्ली में पेट्रोल की कीमत प्रति लीटर 103.81 रुपये हो गई है, जबकि डीजल की कीमत नई बढ़ोतरी के बाद 95 रुपये का दायरा पार करके 95.07 रुपये हो गई है।
आज की गई बढ़ोतरी के बाद देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में पेट्रोल 118.83 रुपये प्रति लीटर और डीजल 103 रुपये का स्तर पार कर 103.07 रुपये प्रति लीटर की दर से बिक रहा है। कोलकाता में पेट्रोल की नई कीमत 113.45 रुपये और डीजल की नई कीमत 98 रुपये का स्तर पार करके 98.22 रुपये हो गई है। जबकि चेन्नई में आज पेट्रोल 109 रुपये का स्तर पार करके 109.34 रुपये प्रति लीटर और डीजल 99.42 रुपये प्रति लीटर की कीमत पर बिक रहा है।
राज्य सरकार के भारी भरकम टैक्स (वैट) की वजह से राजस्थान के गंगानगर में पेट्रोल 120.74 रुपये प्रति लीटर और डीजल 103.32 रुपये प्रति लीटर की कीमत पर बिक रहा है। इसी तरह मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में भी पेट्रोल ऑल टाइम हाई 118.19 रुपये प्रति लीटर और डीजल 101.18 रुपये प्रति लीटर के भाव पर बिक रहा है।
आपको बता दें कि कच्चे तेल का उत्पादन करने वाले देशों द्वारा कच्चे तेल का उत्पादन कम कर दिए जाने और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में आई उछाल की वजह से 2022 में भारतीय तेल कंपनियों का संचित घाटा काफी विशाल हो गया है। ऐसे में मौजूदा परिस्थितियों में इन तेल कंपनियों को पेट्रोल और डीजल की कीमत में लगातार बढ़ोतरी करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
हालांकि कच्चे तेल का उत्पादन करने वाले देशों के संगठन ओपेक ने पिछले सप्ताह ही कच्चे तेल के उत्पादन में बढ़ोतरी करने का ऐलान किया है, जिसकी वजह से कच्चे तेल की कीमत अपने ऑल टाइम हाई 139 डॉलर प्रति बैरल से काफी नीचे आ गई हैं। माना जा रहा है कि अगर ओपेक के सदस्य देश कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ा देते हैं तो आने वाले दिनों में कच्चे तेल की कीमत गिरकर 70 डॉलर प्रति बैरल तक भी जा सकती है। ऐसा होने पर अपनी जरूरत का 80 प्रतिशत से भी ज्यादा आयात करने वाले भारत जैसे देश को काफी राहत मिल सकती है।