हाईकोर्ट ने 1984 के कानपुर सिख दंगे में 37 साल बाद दाखिल चार्जशीट पर मजिस्ट्रेट की कार्रवाई पर लगाई रो
हाईकोर्ट ने 1984 के कानपुर सिख दंगे में 37 साल बाद दाखिल चार्जशीट पर मजिस्ट्रेट की कार्रवाई पर लगाई रो
प्रयागराज, 21 जनवरी (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कानपुर में हुए 1984 के सिख दंगे में लगभग 37 साल बाद एसआईटी के चार्जशीट दाखिल करने तथा उस पर कानपुर के चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लेकर याचियों को सम्मन कर आपराधिक प्रक्रिया शुरू करने की कार्रवाई पर अग्रिम आदेशों तक रोक लगा दी है। इस घटना की प्राथमिकी वर्ष 1984 में अरमापुर, कानपुर नगर में दर्ज कराई गई थी।
यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा ने याची ब्रजेश दूबे व दो अन्य की तरफ से दाखिल धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता की अर्जी पर दिया है। 29 अगस्त 2022 को दाखिल चार्जशीट तथा उस पर कानपुर के चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा 14 सितम्बर 2022 को संज्ञान लेकर सम्मन करने के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है।
अधिवक्ता अतुल शर्मा का कहना था कि मृतक वजीर सिंह के पुत्र ने अपने तीन बार के बयान में याचियों का नाम नहीं लिया है। उसने अपने चौथे बयान में नाम लिया जिस कारण मामला पैदा हुआ है। अधिवक्ता ने कहा कि याचियों के घटना में संलिप्तता का कोई साक्ष्य नहीं है तथा बेटे मंजीत के बयान पर विश्वास नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने फिलहाल मजिस्ट्रेट के समक्ष केस सुनवाई की प्रक्रिया पर रोक लगा दी है।
ज्ञात हो कि, वर्ष 1984 में हुए सिख दंगे की प्राथमिकी दर्ज होने के बाद पुलिस ने जांच की थी तथा 1996 में फाइनल रिपोर्ट लगा दिया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर एसआईटी ने फिर से विवेचना शुरू की। 37 साल बाद इस मामले में चार्जशीट दाखिल की गई है।