महाकुम्भ में पहली बार श्रद्धालु करेंगे माँ कामख्या का दर्शन, मिलेगा प्रसाद

महाकुम्भ में पहली बार श्रद्धालु करेंगे माँ कामख्या का दर्शन, मिलेगा प्रसाद

महाकुम्भ में पहली बार श्रद्धालु करेंगे माँ कामख्या का दर्शन, मिलेगा प्रसाद

महाकुम्भनगर, 24 जनवरी (हि.स.)। महाकुम्भ में पहली बार श्रद्धालुओं को गुवाहाटी की माँ कामख्या देवी का दर्शन मिलेगा। कुम्भ क्षेत्र में एक भव्य मंदिर में वह विराजित होंगी। उनकी भव्य प्रतिकृति कुम्भ क्षेत्र में बनायी जा रही है। यहां पर भक्तों को वही प्रसाद मिलेगा, जो माँ कामख्या के दरबार ​में जल के रूप में मिलता है। यह बातें महामण्डलेश्वर स्वामी केशवदास महाराज ने हिन्दुस्थान समाचार को एक विशेष वार्ता के दौरान बतायी। उन्होंने बताया कि माँ कामख्या का जल व मिट्टी सभी भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जायेगा। उनकी प्रतिकृति बजरंग दास मार्ग स्थित सेक्टर—7 में प्राग्ज्योतिष क्षेत्र शिविर में बनायी जा रही है। उन्होंने बताया कि महाकुम्भ में आए हुए भक्त माँ कामख्या का दर्शन 25 जनवरी से 26 फरवरी तक कर सकेंगे।उल्लेखनीय है कि माँ कामाख्या देवी का मंदिर असम के गुवाहाटी शहर से करीब 7 किलोमीटर दूरी पर है। यह देवी माँ के 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल माना जाता है।महामण्डलेश्वर स्वामी केशवदास महाराज ने बताया कि पूर्वोत्तर क्षेत्र धार्मिक, आध्यात्मिक व सांस्कृतिक रूप से बहुत समृद्ध क्षेत्र है और उसकी जो विरासत व परम्परा है,उसका विश्व के सम्मुख आना संभव नहीं हो पाया है। यह प्रथम अवसर है कि सांस्कृतिक धरातल के साथ आध्यात्मिक व कर्मकांडी पद्धतियों का यहां प्रचार-प्रसार होगा। उन्होंने बताया कि माँ कामख्या का जिस कर्मकांडी विधि से पूजा होती​ है, वैसी ही पूजा यहां पर हो,ऐसा प्रयास है। यहां पर माँ कामख्या की प्रतिकृति रहेगी। उसका अंतिम चरण का काम चल रहा है। उस प्रतिकृति में वही जल भक्तों को प्रसाद के रूप में मिलेगा जो माँ कामख्या का दर्शन करने पर मिलता है। उन्होंने बताया कि इस शिविर में प्रज्ञा फाउंडेशन की ओर से पूरे पूर्वोत्तर भारत की विरासत,परम्परा व संस्कृति से जुड़ी प्रदर्शनी लगायी गई है। जिसे महाकुम्भ में आए श्रद्धालु अवलोकन कर पूर्वोत्तर भारत को विरासत को अपने हृदय में संजो सकेंगे। उन्होंने बताया कि पूर्वोत्तर भारत के नामघर से जुड़े कुछ कर्मकांडी संत भी आए हैं। उनके नेतृत्व में इस शिविर में अखण्ड श्रीमद्भागवत कथा का सस्वर पाठ चल रहा है। अखण्ड श्री मद्भागवत असम में जिस प्रकार से होती है, वैसी ही यहां पर चल रही है। उन्होंने बताया कि जिस दिन श्रीमद्भागवत प्रारम्भ होती है,उस दिन से लेकर अगले सात दिनों तक अहर्निश चलता रहता है। उसके बाद उसका समापन होता है। वहां पर सुन्दर भाव को लेकर श्रीमद्भागवत होती है। उन्होंने बताया​ कि इस शिविर में पूर्वोत्तर से जुड़े सांस्कृतिक कार्यक्रम में भी होंगे। असमिया संस्कृति की जो बहुलता और विराटता है वह सांस्कृतिक कार्यक्रम में परिलक्षित होगी। मणीपुड़ी रास,अप्सरा नृत्य, सत्रीय नृत्य, माटी अखाड़ा समेत अन्य कार्यक्रम होंगे। उन्होंने बताया कि सत्राधिकार प्रभु यानी महंत की भावना का भी प्रदर्शन होगा। जिसे हम रामविजय कहते हैं। स्वामी जी ने बताया कि इस पूरे महाकुम्भ के ज्ञात में इतिहास में पूर्वोत्तर भारत के धर्मगुरू शाही स्नान में पहली बार शामिल होंगे। अपने यहां परम्परा में महामण्डलेश्वर छत्र शाही के साथ स्नान में शामिल होते हैं। पूर्वोत्तर में महामण्डलेश्वर परम्परा नहीं है। उन्होंने बताया कि इस अद्भुत संयोग है पूर्वोत्तर भारत के सारे जन​जा​तियों से जुड़े 125 संतों को बुलाया गया है। इन संतों में वैष्णव, शैव, शाक्त, बौद्ध, जैन समेत भारतीय धर्मधारा की जितने भी धाराएं हैं, उससे संबंधित संत आए हुए हैं। हमलोग पूरे विश्व को एक साकारात्मक संदेश देने का प्रयास करेंगे। उत्तर पूर्वी भारत की जो संस्कृति है उसका ज्ञान पूरे विश्व को हो,ऐसा प्रयास किया जायेगा। उन्होंने बताया कि इस महाकुम्भ के बाद भारत एक मजबूत राष्ट्र की तरफ बढ़ेगा।