बदलाव की सुबह... हिंदू हृदय सम्राट 'कल्याण' सियासत के सबक

श्रीराम मंदिर निर्माण के प्रयासों के हनुमान थे 'कल्याण'

बदलाव की सुबह... हिंदू हृदय सम्राट 'कल्याण' सियासत के सबक

निष्ठावान स्वयंसेवक,आदर्श कार्यकर्ता,कर्मठ नेता,समर्पित संगठनकर्ता,आदर्श मुख्यमंत्री और राज्यपाल के रूप में कल्याण सिंह ने जो सोचा,वह कहा और उसे कर दिखाया। राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में कल्याण सिंह ने कहा था, सरकार रहे या जाए, मंदिर अवश्य बनेगा। राज्यपाल के रूप में उन्होंने अनेकानेक कदमों से बेहतरी और देशप्रेम के लिए प्रेरित किया।



श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के नायक बनकर उभरे रामभक्त कल्याण सिंह देश को यह एहसास दिला गए कि जो प्रारंभ है वह अंत है और लक्ष्य पवित्र हो तो अंत भी अनंत काल का एक्टेंशन ले लेता है। अब राम मंदिर के साथ कल्याण सिंह का नाम अमर रहेगा। वे हमेशा अयोध्या में राम मंदिर के इतिहास की भव्यता में जिंदा रहेंगे। उनके जीवन ने ये भी अभ्यास करा दिया कि जन्म,मृत्यु,आध्यात्म,जीवन के हर मोड़ और सृष्टि के कण-कण में ही नहीं सियासत और हुकुमत में भी राम का नाम होना जरूरी है। कांग्रेस, सपा,बसपा,आप इत्यादि गैर भाजपाई दलों के नेता राहुल गांधी,प्रियंका गांधी वाड्रा,अखिलेश यादव,अरविंद केजरीवाल इत्यादि को मंदिर-मंदिर जाते देखना भी 'कल्याण की राजनीतिक संस्कृति' का एक हिस्सा है।



उत्तर प्रदेश की शिक्षा पद्धति में सुधार के लिए नकल अध्यादेश लाने वाले कल्याण सिंह भले ही नकल के विरुद्ध थे,किंतु उनके जीवन की सियासी खुली किताब नकल करने लायक है। सियासत के किसी भी विद्यार्थी के लिए कल्याण की सियासत के सबक कल्याणकारी साबित हो सकते हैं। उन्होंने साबित कर दिया था कि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं। जिस उत्तर प्रदेश के चुनावों में भाजपा के लिए अपना खाता खोलने में पसीने आ जाते थे, उस प्रदेश में कल्याण सिंह ने भाजपा के पहले मुख्यमंत्री बनने का रिकार्ड बनाया। जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के बारे में धारणा थी कि यहां पिछड़ी जाति के चेहरों को उच्च पदों का लाभ नहीं मिलता, उस भाजपा में वह मुख्यमंत्री बने और पार्टी की प्रदेश कमान हाथ में ली। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के नायक बनकर उभरे। देश की आजादी के 5-6 दशकों से पराजय का मुंह देख रही भाजपा को उन्होंने बता दिया कि हिंदुत्व का मुद्दा और ओबीसी चेहरे का कॉम्बिनेशन सफलता का मूलमंत्र है। देश की केंद्रीय राजनीति में भाजपा इस फाॅर्मूले को अपनाकर सफलताओं की बुलंदियों को छू रही है। उत्तर प्रदेश की सियासत में 6-6 महीने के मुख्यमंत्री के अनोखे प्रयोग में भी वे शामिल हुए। हिंदुत्व के प्रचार-प्रसार में कल्याणकारी फैसलों में उन्होंने सन् 1992 में ये भी जाहिर किया था कि अपने मकसद के आगे सत्ता क़ुरबान करने का हौसला किसी भी पद या किसी भी सत्ता से बड़ा होता है। उनके राजनीतिक सफर में बगावत का कालखंड भी सियासी सिलेबस है। मोहब्बत और जंग की तरह राजनीति में सब जायज है और कुछ भी संभव है। पार्टी से उनकी नाराजगी इस हद तक पंहुच गई थी कि वो जिद और क्रोध में अंधे होकर समाजवादी पार्टी से हाथ मिला बैठे थे। राम मंदिर आंदोलन के इस महानायक ने उन मुलायम सिंह से दोस्ती का हाथ मिला लिया था जिन्हें भाजपाई रामभक्तों का हत्यारा कहते थे। राम मंदिर आंदोलन के नायक के तौर पर अपनी सबसे बड़ी पहचान को धूमिल करते हुए कल्याण सिंह ने समाजवादी पार्टी (सपा) के पाले में आने के बाद बाबरी ढांचा टूटने पर पछतावा भी जाहिर किया। उनकी जनक्रांति पार्टी और सपा की सरकार जब बनी तो उनके पुत्र राजवीर सिंह और खासमखास कुसुम राय कैबिनेट मंत्री बनीं थीं। इसके बाद फिर बदलाव की सुबह हुई। कल्याण सिंह ने फिर साबित किया कि राजनीति में सबकुछ संभव है। उन्होंने पुनः हिंदुत्व की रक्षा का प्रहरी बनकर घर वापसी की। इस बीच नरेन्द्र मोदी युग की आहट सुनाई देने लगी थी। इस बार उन्होंने घर वापसी के बाद एक जनसभा में संकल्प लिया कि वे अब कहीं नहीं जाएंगे। जिएंगे भाजपा में और मरेंगे तो भाजपा में। अपने राजनीतिक अवतार की इस नई पारी में उन्होंने बहुत कोमल तेवरों के साथ दूरदर्शिता का परिचय दिया।



...जब कल्याण ने की थी राम मंदिर निर्माण की भविष्यवाणी



तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व संभालें और प्रधानमंत्री का चेहरा प्रोजेक्ट हो, इस बात पर बल देने वाले भाजपाइयों में वह अग्रणी थे। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लक्ष्यपूर्ति के लिए भी वे कहते रहे कि हिंदुओं का यह सपना तब ही साकार हो सकेगा जब उत्तर प्रदेश के साथ केंद्र में भी भाजपा की मजबूत सरकार होगी। नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की रणनीति में कल्याण सिंह का ही मशवरा था कि लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश को सफलता का केंद्र माना जाए और इसके लिए मोदी वाराणसी से चुनाव लड़ें। सियासत दांव-पेंच में माहिर हिंदू हृदय सम्राट कल्याण सिंह कोई आम नेता नहीं थे। त्रेतायुग में श्रीराम के सबसे बड़े भक्त हनुमान थे तो वर्तमान युग में राम जन्म भूमि पर राम मंदिर निर्माण के प्रयासों के हनुमान कल्याण थे। भगवान श्रीरामचंद्र ने लंका दहन से लेकर हर पवित्र अनुष्ठान में मानव, पशु-पक्षियों और हर वर्ग-समुदाय के लोगों को सम्मानित कर समानता के अधिकारों और सामाजिक न्याय का संदेश दिया था। रामभक्त कल्याण सिंह ने न केवल पिछड़ों,दलितों,वंचितों के अधिकारों के लिए राजनीतिक संघर्ष किया, बल्कि भाजपा और अन्य दलों को संदेश दे गए कि राजनीति में पिछड़ों को अगड़ी पंक्ति में रखना बेहद जरूरी है और लाभकारी भी।



आडवाणी, जोशी और उमा भारती जैसे अग्रणी नेताओं में से एक थे कल्याण



5 जनवरी, 1932 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के अतरौली कस्बे में जन्मे कल्याण सिंह कई बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और जनसंघ, जनता पार्टी और भाजपा से विधानसभा के सदस्य रहे। वह 2009 और 2014 के बीच एटा से लोकसभा सदस्य भी रहे। उन्होंने 2015 में हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल के रूप में कार्य किया। इसके बाद के वर्षों में सिंह को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिग्गज नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती जैसे अग्रणी हिंदू नेताओं में से एक माना जाने लगा। अगस्त 2020 के पहले सप्ताह में, जब अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन (भूमि पूजन समारोह) की व्यवस्था की जा रही थी, कल्याण सिंह ने लखनऊ में कहा था कि अब वह शांति से मर सकते हैं क्योंकि मंदिर निर्माण उनका सपना था। अंततः साकार हो रहा था। 21 अगस्त 2021 को उनका निधन हो गया। 28 साल पहले जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहाई गई थी, तब वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक कल्याण सिंह का पार्टी के साथ ही भारतीय राजनीति में कद काफी विशाल था। अयोध्या में विवादित ढांचे के विध्वंस के समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह भाजपा के कद्दावर नेताओं में से एक थे।