मां के साथ रह रहे बच्चे की अभिरक्षा पिता को नहीं सौंपी जा सकती : हाईकोर्ट
पिता की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पोषणीय न मानते हुए खारिज
प्रयागराज, 30 मई । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि बच्चे की अभिरक्षा विधि विरूद्ध नहीं है तो बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल नहीं की जा सकती। कोर्ट ने कहा कि बच्चा मां के साथ है तो पिता द्वारा दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पोषणीय नहीं है।
वह अपने विजिटर अधिकार की मांग उचित फोरम में कर सकता है। मां के साथ रह रहे बच्चे की अभिरक्षा पिता को नहीं सौंपी जा सकती। क्योंकि मां बच्चे की नैसर्गिक संरक्षक होती है। इसे अवैध अभिरक्षा नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा केवल बच्चे की अवैध अभिरक्षा की दशा में हस्तक्षेप कर बच्चे के हित में अभिरक्षा में बदलाव किया जा सकता है।
कोर्ट ने पिता द्वारा मां के साथ जन्म से रह रहे बच्चे की अभिरक्षा को अवैध बताते हुए दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति डॉ वाई के श्रीवास्तव ने मास्टर शिव सिंह व अन्य की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर दिया है। याची कहना था कि 13 मई 18 को शादी हुई और गर्भवती पत्नी 10 अगस्त 18 को मायके चली गई। वहीं बच्चे का 11 जनवरी 19 को जन्म हुआ। पति के ससुर ने उसे बच्चे से मिलने नहीं दिया। जिस पर यह याचिका दायर की गई थी।