संयुक्त परिवार की शक्ति का केंद्र बिंदु हैं महिलाएं: डॉ. शंकर सुवन सिंह
प्राचीन भारतीय सभ्यता में संयुक्त परिवार हुआ करते थे।परिवार को सम्बल प्रदान करने की विशेषता सिर्फ संयुक्त परिवार में हुआ करती है। परिवार की एकता ही उसकी शक्ति की परिचायक होती है।जैसा कहा भी गया है - यूनिटी इज़ स्ट्रेंथ अर्थात एकता में ही शक्ति निहित है।जो भी परिवार संयुक्त हैं वहाँ एकता(यूनिटी) है।संयुक्त-परिवार ही विषम परिस्थितियों में शक्ति का परिचायक हुआ करती है।कोरोना की दूसरी लहर ने देश में त्राहिमाम मचा दिया।आंकड़े बताते हैं की दूसरी लहर में होम आइसोलेशन कितना जरुरी हो गया।होम-आइसोलेशन संयुक्त परिवार के लिए राम बाण दवाई साबित हुई।संयुक्त परिवार में मरीज की देखभाल, खान पान,और उचित व्यवस्था परिवार के लोग ही कर लेते हैं।जिसका परिणाम यह हुआ की होम आइसोलेशन में संयुक्त परिवार में रहने वाले मरीज ज्यादा तर ठीक हो गए और अस्पतालों के चक्कर से बच गए। जो परिवार संयुक्त नहीं थे और उसमे कोई कोरोना पॉजिटिव आया तो उसके पास हॉस्पिटल के अलावा कोई विकल्प नहीं रहा।परिणामतः ऐसे परिवारों को कोरोना की दूसरी लहर ने तोड़ कर रख दिया|परिवार दिवस के उपलक्ष्य में मैं एक ही बात कहूंगा की संयुक्त परिवार ही श्रेष्ठ परिवार है ।कोरोना की दूसरी लहर ने प्राचीन भारतीय सभ्यता की याद दिला दी और परिवारों को सबक दे गई की प्राचीन भारतीय सभ्यता को अपनाएं न की पाश्चात्य सभ्यता को।संयुक्त परिवार में व्यक्ति अकेला नहीं होता।जो परिवार संयुक्त नहीं हैं वहाँ अकेलापन का अहसास होता है।अकेलेपन में तनाव है। तनाव में ऋणात्मक ऊर्जा काम करती है।जहां अकेलापन नहीं है वहां सकारात्मक ऊर्जा काम करती है।अर्थात वहां तनाव नहीं है। सकारात्मकता से कोरोना को हराया जा सकता है और लोगों ने हराया। कहने का तात्पर्य है की संयुक्त परिवार ही तनाव रहित है। तनाव ही सारी बीमारी की जड़ है।संयुक्त परिवार में महिलाओं की अहम् भूमिका होती है।महिलाएं संयुक्त परिवार की शक्ति का केंद्र होती हैं। बिना महिलाओं के संयुक्त परिवार की कल्पना व्यर्थ है।संस्कृत में एक श्लोक है-‘यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:।अर्थात्,जहां नारी की पूजा होती है,वहां देवता निवास करते हैं। भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। जैसे हिन्दू धर्म में वेद नारी को अत्यंत महत्वपूर्ण,गरिमामय,उच्च स्थान प्रदान करते हैं।वेदों में स्त्रियों की शिक्षा-दीक्षा, शील,गुण,कर्तव्य,अधिकार और सामाजिक भूमिका का सुन्दर वर्णन पाया जाता है।वेद उन्हें घर की सम्राज्ञी कहते हैं और देश की शासक,पृथ्वी की सम्राज्ञी तक बनने का अधिकार देते हैं।वेदों में स्त्री यज्ञीय है अर्थात् यज्ञ समान पूजनीय।वेदों में नारी को ज्ञान देने वाली,सुख–समृद्धि लाने वाली,विशेष तेज वाली,देवी, विदुषी,सरस्वती,इन्द्राणी,उषा- जो सबको जगाती है इत्यादि अनेक आदर सूचक नाम दिए गए हैं।वेदों में स्त्रियों पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं है–उसे सदा विजयिनी कहा गया है और उन के हर काम में सहयोग और प्रोत्साहन की बात कही गई है। वैदिक काल में नारी अध्यन- अध्यापन से लेकर रणक्षेत्र में भी जाती थी। जैसे कैकयी महाराज दशरथ के साथ युद्ध में गई थी। कन्या को अपना पति स्वयं चुनने का अधिकार देकर वेद पुरुष से एक कदम आगे ही रखते हैं।अनेक ऋषिकाएं वेद मंत्रों की द्रष्टा हैं–अपाला,घोषा,सरस्वती,सर्पराज्ञी,सूर्या,सावित्री,अदितिदाक्षायनी,लोपामुद्रा,विश्ववारा,आत्रेयी आदि।वेदों में नारी के स्वरुप की झलक इन मंत्रों में देखें जा सकते हैं-यजुर्वेद 20:9(स्त्री और पुरुष दोनों को शासक चुने जाने का समान अधिकार है)।यजुर्वेद 17:45(स्त्रियों की भी सेना हो। स्त्रियों को युद्ध में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें)।यजुर्वेद 10:26(शासकों की स्त्रियां अन्यों को राजनीति की शिक्षा दें।जैसे राजा,लोगों का न्याय करते हैं वैसे ही रानी भी न्याय करने वाली हों)।अथर्ववेद 11:5:18(ब्रह्मचर्य सूक्त के इस मंत्र में कन्याओं के लिए भी ब्रह्मचर्य और विद्या ग्रहण करने के बाद ही विवाह करने के लिए कहा गया है।यह सूक्त लड़कों के समान ही कन्याओं की शिक्षा को भी विशेष महत्त्व देता है)कन्याएं ब्रह्मचर्य के सेवन से पूर्ण विदुषी और युवती होकर ही विवाह करें ।अथर्ववेद 14:1:6(माता- पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धीमत्ता और विद्याबल का उपहार दें। वे उसे ज्ञान का दहेज़ दें)।जब कन्याएं बाहरी उपकरणों को छोड़ कर,भीतरी विद्या बल से चैतन्य स्वभाव और पदार्थों को दिव्य दृष्टि से देखने वाली और आकाश और भूमि से सुवर्ण आदि प्राप्त करने–कराने वाली हो तब सुयोग्य पति से विवाह करे।ऋग्वेद 10.85.7(माता- पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धिमत्ता और विद्याबल उपहार में दें। माता- पिता को चाहिए कि वे अपनी कन्या को दहेज़ भी दें तो वह ज्ञान का दहेज़ हो) ।ऋग्वेद 3.31.1 (पुत्रों की ही भांति पुत्री भी अपने पिता की संपत्ति में समान रूप से उत्तराधिकारी है)। देवी अहिल्याबाई होलकर,मदर टेरेसा,इला भट्ट,महादेवी वर्मा,राजकुमारी अमृत कौर,अरुणा आसफ अली,सुचेता कृपलानी और कस्तूरबा गांधी आदि जैसी कुछ प्रसिद्ध महिलाओं ने अपने मन-वचन व कर्म से सारे जग-संसार में अपना नाम रोशन किया था। कस्तूरबा गांधी ने महात्मा गांधी का बायां हाथ बनकर उनके कंधे से कंधा मिलाकर देश को आजाद करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इंदिरा गांधी ने अपने दृढ़-संकल्प के बल पर भारत व विश्व राजनीति को प्रभावित किया था। उन्हें लौह-महिला यूं ही नहीं कहा जाता है। इंदिरा गांधी ने पिता,पति व एक पुत्र के निधन के बावजूद हौसला नहीं खोया। दृढ़ चट्टान की तरह वे अपने कर्मक्षेत्र में कार्यरत रहीं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन तो उन्हें ‘चतुर महिला’ तक कहते थे, क्योंकि इंदिराजी राजनीति के साथ वाक्-चातुर्य में भी माहिर थीं। कोरोना संकट का सबसे ज्यादा भार परिवार में महिलाओं पर आ पड़ा। कोरोना के भारी संकट में पूरे परिवार में यदि किसी पर सबसे ज्यादा संकट आया तो वह घर की महिला ही है जिसकी भूमिका अचानक बहुत बढ़ गई और घर में न केवल उसके काम बढ़े बल्कि उसके अधिकार क्षेत्र में दूसरे लोगों का अनधिकृत प्रवेश भी बढ़ गया। हर कोई उस पर हुक्म चलाया या फिर उससे काम करवाया। लॉकडाउन में बाहर सब कुछ बंद था तो सबको घर पर ही रहने की मजबूरी थी। लॉकडाउन ने महिलाओं के काम के बोझ को बढ़ा दिया था। बच्चे स्कूल में जा नहीं रहे उन्हें या तो घर पर पढ़ाओ या नई−नई चीजें खिलाते रहो या मनोरंजन करो नहीं तो वे उधम मचायेंगे। जो बुर्जग हैं उन्हें कोरोना का सबसे ज्यादा खतरा था,उनकी देखभाल अलग। बड़े आराम से घर में कोरोना से बचाव के लिए घर वालों ने तय कर दिया कि हाउस हैल्प और काम करने वाली बाई को मत आने दो। फिर खाना बनाने,बर्तन मांजने, झाडू चौका, कपड़े धोने का काम सब महिला पर ही आ गया। महिलायें पुरुषों की तुलना में किसी भी संकट में ज्यादा सतर्क और सक्रिय होती हैं। बेहतर प्रबंधक और बुरे हालात में भी बड़ी हिम्मत से परिवार और समाज को संभाले रहती हैं ये अलग बात है जब संकट नहीं रहता तब वे परिवार और समाज दोनों में ही फिर से उपेक्षित हो जाती हैं। कोरोना के इस संकट में उन्होंने कुछ अतिरिक्त जिम्मेवारियों का वहन किया।भारतीय संस्कृति में महिलाओं की अत्यंत गौरवशाली व महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत एकमात्र देश है जहां महिलाओं के नाम के साथ देवी शब्द का प्रयोग किया जाता है।यहां नारी को शक्ति स्वरूपा, भारतीय संस्कृति की संवाहक,जीवन मूल्यों की संरक्षक,त्याग,दया,क्षमा,प्रेम,वीरता और बलिदान के प्रतीक के रूप में स्थापित किया गया है। उसे गृहलक्ष्मी की मान्यता दी गई।
अतएव हम कह सकते हैं महिलाएं,संयुक्त परिवार की शक्ति का केंद्र बिंदु हैं।
लेखक
डॉ. शंकर सुवन सिंह
वरिष्ठ स्तम्भकार एवं विचारक
असिस्टेंट प्रोफेसर,शुएट्स,नैनी,प्रयागराज (यू.पी.)
shanranu80@gmail.com