महामारी बनाम मानवता :डॉ. शंकर सुवन सिंह

महामारी पर भारी पड़ती मानवता

महामारी बनाम मानवता :डॉ. शंकर सुवन सिंह

प्रकृति और मानवता एक दूसरे के पूरक हैं|मानवता प्रकृति की पोषक है|प्रकृति में बड़ी से बड़ी बीमारी से लड़ने की क्षमता है|मानव की अमानवीयता प्रकृति का दोहन करती है|प्रकृति के दोहन से मानव पूरी सृष्टि के लिए काल बना हुआ है|बीमारी को मानव ही पैदा करता है और प्रकृति के साथ खिलवाड़ भी मानव ही करता है|प्रकृति का प्रकोप पूरी सृष्टि के लिए विनाशकारी है|जब मानव शुद्ध होगा तब हमारा पर्यावरण शुद्ध होगा| मानव शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है-पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु और आकाश|मानव जाती को इस पृथ्वी  पर रहने वाले प्रत्येक जीव जंतुओं का आदर करना चाहिए|मानव जाती को जल ,अग्नि वायु और आकाश के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए|जल का आदर करें - जल है तो कल है|वायु अर्थात पेड़ पौधों को संरक्षित करें जिससे सृष्टि में वायु(ऑक्सीजन) का स्तर बढ़े|अग्नि का आदर करें अर्थात हवन इत्यादि कर हम अग्नि का आदर कर सकते हैं|आकाश को अवकाश दें|बार-बार मिसाइल परीक्षण,अंतरिक्ष यान आदि द्वारा आकाश का दोहन होता है|कोरोना जैसी महामारी,मानव जाती के लिए सबक है|मानव को इसके लिए प्रकृति प्रेम और मानवीयता दोनों का विकास करना होगा|मानवीयता का विकास प्राकृतिक-संसाधनों से है न की भौतिक-संसाधनों से|वैश्विक महामारी हमें अपनी पुरानी संस्कृति और सभ्यता की याद दिलाती है|भारतीय संस्कृति में प्रकृति की पूजा की गई है|प्रकृति ही जीवन देती है|प्रकृति प्रदत्त चीजों से मानव को खिलवाड़ नहीं करना चाहिए|शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है-पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु और आकाश |ये तत्व मनुष्य के शरीर में एक विशिष्ट स्थान पर स्थित हैं।हडडी,मांस,त्वचा,रंध्र,नाखून में पृथ्वी का वास है|खून,लार,पसीना,मूत्र,वीर्य में जल का वास है|भूख,आलस्य,निंद्रा,जंभाई में अग्नि का वास है|बोलना,सुनना,सिकुडना,फैलना,बल लगाना में वायु का वास है|शब्द, आविर्भाव,रस,गंध,स्पर्श में आकाश का वास है|अर्थात मानव शरीर में पृथ्वी का केंद्र बिंदु गुदा,जल का केंद्र बिंदु लिंग,अग्नि का केंद्र बिंदु मुख,वायु का केंद्र बिंदु नाभि और आकाश का केंद्र बिंदु सुषमना नाड़ी है|ये पांच तत्व पर्यावरण से मिलकर बने हैं|पर्यावरण का सम्बन्ध प्रकृति से है|प्रकृति का सम्बन्ध संस्कृति से है|अतएव जीवन जीने के लिए प्रकृति से खिलवाड़ को रोकना होगा|संस्कृति संस्कार से बनती है और सभ्यता नागरिकता से|भारतीय संस्कृति एक सतत संगीत है|आधुनिक काल में मनुष्य अपने ज्ञान का दुरुपयोग कर रहा है|उसने अपनी सभ्यता तथा प्राचीन संस्कृति को खो दिया है|यूँ तो भारतीय संस्कृति ने देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी अपना नाम कमाया है|संस्कृति का एक उदाहरण यह भी है कि यहां के रहन सहन,खान पान,वैदिकक्रिया-कलाप(आयुर्वेद)आदि को विदेशों ने भी अपनाया है|संस्कृति का दर्शन से घनिष्ठ सम्बन्ध है|दर्शन जीवन का आधार है|संस्कृति बौद्धिक व मानसिक विकास में सहायक है|कवि रामधारी सिंह "दिनकर" के अनुसार संस्कृति जीवन जीने का तरीका है|भारत का संस्कृति शब्द,संस्कृत से आया|संस्कृति शब्द का उल्लेख एतरेय ब्राह्मण में मिलता है|एतरेय,ऋग्वेद का ब्राह्मण ग्रन्थ है|ऋग्वेद सम्पूर्ण ज्ञान व ऋचाओं का कोष है|ऋग्वेद मानव ऊर्जा का स्रोत है|ऋग्वेद भारतीय संस्कृति व सभ्यता का कोष है|ऋग्वेद हिंदुत्व का मूल है|इस सम्बन्ध में महात्मा गाँधी ने एक बार कहा था कि हिंदुत्व सत्य के अनवरत शोध का ही दूसरा नाम है|संस्कृति ही मानव की आधारशिला है|यह भारत कि राष्ट्रीयता का मुख्य आधार है|यही कारण है कि भारत विकासशील होते हुए भी अन्य देशों के बीच अपनी पहचान बनाए हुए है |इस समय भारत  कोरोना (कोविड-19) के नए स्ट्रेन वाली  महामारी से परेशान है|इतिहास हमेशा हमें सचेत करता रहा कि विकास उतना ही करें जिससे प्रकृति का दोहन या विनाश न हो|ऐसा विकास जिससे मानव की जीवन प्रत्याशा (जीने की इच्छा) बढ़े अर्थात मानव की उम्र बढ़े,विकास कहलाता है|अन्यथा किसी भी प्रकार का विकाश विनाश की श्रेणी में ही आएगा|गौतम बुद्ध ने कहा था की वीणा का तार उतना ही कसो जितने में मधुर ध्वनि निकले|इतना ज्यादा भी वीणा के तार को मत कस दो की वो टूट जाए|अर्थात विकास के तार को भी उतना ही कसिये जितना जरुरत हो अन्यथा ज्यादा विकास के चक्कर में विकास का तार टूट जाएगा|कोरोना महामारी की वजह से लोग हाथ नहीं मिला रहे,गले नहीं मिल रहे ,साफ़ सफाई का ध्यान रख रहे,और नमस्ते (प्रणाम) को अपना रहे हैं|प्रत्येक धर्म के लोगों का अपने अपने ईश्वर के प्रति आस्था बढ़ी है|कहने का तात्पर्य प्रत्येक धर्म के लोगों ने इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए ईश्वर से प्रार्थना शुरू कर दी है|ऐसा लगता है इस बीमारी ने लोगो को भारतीय संस्कृति और सभ्यता की याद दिला दी है|अब लोग संस्कारित हो गए हैं| यही भारतीय संस्कृति थी जिसको हमने पाश्चात्य सभ्यता से खो दिया था|तनाव नकारात्मकता का प्रतीक है|तनाव अंधकार का कारक है|समाज की अवनति का कारण है तनाव |सकारात्मकता से तनाव पर विजय पाई जा सकती है|सकारात्मकता से कोरोना से जंग जीती जा सकती है|सकारात्मकता, प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है|नकारात्मकता. प्रतिरोधक क्षमता को घटाती है| हिन्दुओ के पवित्र ग्रन्थ उपनिषद में  कहा गया है – असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतं गमय ॥ –(बृहदारण्यकोपनिषद् 1.3.28)।

अर्थ- मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो। मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो॥ यही अवधारणा समाज को चिंतामुक्त और तनाव मुक्त  बनाती है|चीन जैसा देश अमानवीय चेहरा का द्योतक है|चीन ने ही अपनी लैब में प्रकृति के साथ खिलवाड़ करके कोरोना जैसी महामारी को जन्म दिया|अतएव हम कह सकते हैं अमानवीयता महामारी की जड़ है|अमानवीय चेहरा कोरोना को पसंद है|मानवता द्वारा कोरोना से जंग जीती जा सकती है|संस्कृति और सभ्यता के द्वारा ही मानवता का निर्माण होता है| अतएव अपनी प्राचीन संस्कृति व सभ्यता को न भूलें|कोरोना सेक्युलर है|यह अपने चंगुल में लेने से पहले जाती, धर्म, पद, प्रतिष्ठा आदि नहीं पूछता है|कोरोना को वो सारी चीजें पसंद हैं जो अमानवीय हैं|मानवता को हथियार बनाकर कोरोना से जंग जीती जा सकती है|मानवीय होइए और कोरोना से जंग जीतिये|विश्व का कोई भी देश अब संक्रामक बीमारी को हल्के में ना ले|वैक्सीन से ही हारेगा कोरोना|वैक्सीन लगवाना राष्ट्र धर्म है|

हमारी मानवता इसी में है कि हम लोग अधिक से अधिक संख्या में टीकाकरण का हिस्सा बने|टीकाकरण को तनाव का हिस्सा न समझे|टीकाकरण को टीका उत्सव की भांति मनाए|जिससे तनाव नहीं होगा और  हर एक व्यक्ति तनावरहित होकर टीका करण करवाएगा|टीकाकरण से हारेगा कोरोना,भागेगा कोरोना|टीकाकरण भी मानवता का ही हिस्सा है|अतएव मानवता का धर्म अपनाइये और राष्ट्र धर्म निभाइये|  

लेखक

डॉ. शंकर सुवन सिंह

वरिष्ठ स्तम्भकार एवं विचारक

असिस्टेंट प्रोफेसर

सैम हिग्गिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज

नैनी,प्रयागराज (यू.पी.)