रेलवे भर्ती प्रकोष्ठ को ग्रुप डी के पदों पर भर्ती करने का आदेश

रेलवे भर्ती प्रकोष्ठ को ग्रुप डी के पदों पर भर्ती करने का आदेश

रेलवे भर्ती प्रकोष्ठ को ग्रुप डी के पदों पर भर्ती करने का आदेश

प्रयागराज, 16 मई (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रेलवे भर्ती प्रकोष्ठ इलाहाबाद, प्रयागराज को ग्रुप डी के पदों पर याचियों को भर्ती करने का आदेश दिया है।

कोर्ट ने कहा कि रेलवे भर्ती प्रकोष्ठ ने एक अनुमानित राय के आधार पर याचियों का चयन निरस्त कर दिया था, जो सही नहीं था। रेलवे का निर्णय प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ था। लिहाजा, रेलवे भर्ती प्रकोष्ठ तुरंत याचियों को ग्रुप डी के पदों पर भर्ती करे। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार चतुर्थ ने विजय पाल व 22 अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।

कोर्ट ने कहा कि रेलवे भर्ती प्रकोष्ठ द्वारा परीक्षा के दौरान अभ्यर्थियों के अंगूठे का निशान लिए गए थे। हस्ताक्षर कराया गया और वीडियोग्राफी कराई थी। यह दायित्व भर्ती प्रकोष्ठ का था कि वह अभ्यर्थियों की पहचान के लिए उनसे कोई परिचय पत्र लेता। वह यह नहीं कह सकता कि अभ्यर्थियों ने परीक्षा में हिस्सा नहीं लिया। क्योंकि, उसके पास अनुमानित राय के अलावा कोई अन्य प्रमाण नहीं है, जो उसके दावे को संदेह से परे साबित करें।

मामले में उत्तर मध्य रेलवे भर्ती प्रकोष्ठ ने 27 जुलाई 2013 को ग्रुप डी (खलासी, हेल्पर, ट्रैकमैन, चपरासी, सफाईवाला व अन्य) के 2609 पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला था। याचियों ने भी आवेदन किया और वह चयन सूची में आ गए। बाद में भर्ती प्रकोष्ठ ने अभ्यर्थियों का डॉक्यूमेंट्स का सत्यापन कराया तो 339 अभ्यर्थियों के अंगूठे के निशान मैच नहीं हुए। इस आधार पर प्रकोष्ठ ने अभ्यर्थियों के चयन को रद्द कर दिया और उन पर रेलवे भर्ती प्रकोष्ठ की सभी भर्तियों में शामिल होने से आजीवन प्रतिबंध लगा दिया। इसके साथ उनके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई करने के सम्बंध में नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांग लिया।

याचियों ने रेलवे भर्ती प्रकोष्ठ के इस आदेश को केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) के समक्ष चुनौती दी। अधिकरण ने याचियों की याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए भर्ती परीक्षाओं में शामिल होने पर आजीवन प्रतिबंध और आपराधिक कार्रवाई करने के लिए जारी नोटिस को रद्द कर दिया। लेकिन उनके चयन पर रेलवे भर्ती प्रकोष्ठ के निर्णय को बरकरार रखा। याचियों ने कैट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने कैट के आदेश को सही नहीं माना और याचियों को तुरंत भर्ती का आदेश दिया।