भारत में रामराज्य लाने के लिए हनुमान जी की उपासना अनिवार्य : विश्वनाथ कुलकर्णी
अनेक प्रसंगों में सुग्रीव आदि वानरों के साथ भगवान श्रीराम ने भी हनुमान जी का परामर्श माना
वाराणसी, 05 अप्रैल। भारत में रामराज्य लाने के लिए हनुमान जी की आराधना अनिवार्य है। शक्ति, भक्ति, कला, चतुराई और बुद्धिमता इनमें श्रेष्ठ होकर भी भगवान रामचंद्र की चरणों में हमेशा समर्पित रहनेवाले मारुति की उपासना रामराज्य लाने के लिए कार्यरत सभी धर्म वीरों को करना चाहिए। ये उद्गार हिंदू जनजागृति समिति के विश्वनाथ कुलकर्णी के है।
श्री हनुमत जन्मोत्सव के पूर्व संध्या पर विश्वनाथ कुलकर्णी ने कहा कि चैत्र पूर्णिमा के दिन हनुमान जयंती के अवसर पर गदा पूजन कर वीर हनुमान का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है। मनोजवम् मारुत तुल्य वेगम्, जितेंद्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ॥ श्लोक का उल्लेख कर कहा कि मारुति जी के अतुलनीय गुण विशेषताओं का परिचय होता है। उन्होंने कहा कि राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए 'पुत्रकामेष्टी' यज्ञ किया। तब उस यज्ञ से अग्नि देव ने प्रकट होकर दशरथ के रानियों के लिए पायस (खीर) प्रदान की। अंजनी को भी दशरथ की रानियों के समान तपश्चर्य द्वारा पायस प्राप्त हुआ था। इसी प्रसाद के प्रभाव से मारुति का जन्म हुआ। उस दिन चैत्र पूर्णिमा थी। इस दिन को 'हनुमान जयंती' के रूप में मनाया जाता है। वाल्मीकि रामायण के (किष्किंधा कांड 66वे सर्ग) में हनुमान जी की जन्म कथा इस प्रकार वर्णित है।
हनुमान जी के कार्य और विशेषताएं
सर्वशक्तिमान, सभी देवताओं में केवल मारुति जी ही ऐसे देवता हैं जिनको अनिष्ट शक्तियां कष्ट नहीं पहुंचा सकती। लंका में लाखों राक्षस थे फिर भी वह मारुति को कोई कष्ट नहीं पहुंचा पाए । दास्य भक्ति के सर्व उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में आज भी मारुति की राम भक्ति का ही उदाहरण दिया जाता है । वे अपने प्रभु के लिए प्राणों को अर्पण करने के लिए भी सदैव तत्पर रहते थे। उनकी सेवा के आगे उनको शिव तत्व और ब्रह्म तत्व की इच्छा भी कौडी के मोल लगती थी। हनुमान अर्थात सेवक और सैनिक इन दोनों का सम मिश्रण ही है। व्याकरण सूत्र, सूत्र वृत्ति, वार्तिक, भाष्य और संग्रह इन सब में मारुति की बराबरी करनेवाला कोई भी नहीं था । (उत्तम राम चरित्र में (36.44.46) मारुति जी को 11वां व्याकरणकार मानते हैं । अनेक प्रसंगों में सुग्रीव आदि वानरों के साथ ही साथ भगवान श्रीराम ने भी उनका परामर्श माना है । रावण को छोड़कर आए विभीषण को अपने पक्ष में नहीं लेना चाहिए, ऐसा अन्य सैनिकों का विचार था परंतु मारुति ने ''उन्हें अपने पक्ष" में लेना चाहिए ऐसा बताया और वह भगवान श्रीराम ने इसे मान्य किया । लंका में माता सीता से प्रथम भेंट के समय उनके मन में स्वयं के विषय में विश्वास निर्माण करने, शत्रु पक्ष के पराभव के लिए लंका दहन करने, राम जी के आगमन को लेकर भरत की भावना जानने के लिए, राम जी ने उन्हीं को भेजा इससे उनकी बुद्धिमत्ता और मानसशास्त्र में निपुणता का पता चलता है । लंका दहन के द्वारा उन्होंने रावण की प्रजा का रावण के बल पर जो विश्वास था उसको डगमगा दिया । साहित्य, तत्वज्ञान और अभिव्यक्ति कला में निपुण हनुमान जी का रावण के दरबार में भाषण अभिव्यक्ति का उत्कृष्ट नमूना है । हर समय प्रभु श्री राम अवतार लेते हैं तो उनका स्वरूप वही होता है । परंतु मारुति हर अवतार में अलग होते हैं । मारुति शब्द सप्त चिरंजीव में से एक होने पर भी सप्त चिरंजीव चार युगों के समाप्त होने पर मोक्ष को जाते हैं और उनकी जगह अत्यंत उन्नत ऐसे सात लोग लेते हैं ।
उन्होंने कहा कि पंचमुखी मारुति मारुति की मूर्ति अत्यधिक मात्रा में दिखाई देती है । गरुड़, वराह, हयग्रीव, सिंह और कपि मुख यह पांच मुख होते हैं । इन 10 भुजी मूर्तियों के हाथ में ध्वज ,खड्ग, पाश इत्यादि शस्त्र होते हैं । उन्होंने कहा कि जैसे हनुमान जी राम काज के लिए पूर्ण रूप से समर्पित रहे, वैसे ही राष्ट्र और धर्म के लिए हम सभी को प्रतिदिन न्यूनतम 1 घंटे देना चाहिए।