राम दूत अतुलित बल धामा, अंजनि पुत्र पवन सुतनामा

चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाई जाती है हनुमान जयंती

राम दूत अतुलित बल धामा, अंजनि पुत्र पवन सुतनामा

लखनऊ, 05 अप्रैल। पवनपुत्र हनुमान जी की जयंती गुरुवार को हर्षोल्लास से मनाई जाएगी। हिन्दी पंचांग से चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हनुमान जी जयंती मनाते हैं। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस तिथि में माता अंजना के गर्भ से हनुमान जी ने जन्म लिया था।

उप्र संस्कृत संस्थान के पूर्व कर्मकाण्डी प्रशिक्षक रहे पं. अनिल कुमार पाण्डेय ने बताया कि इस तिथि में हनुमानजी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा कर षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। पूजन के बाद श्रीमम वाल्मीकि रामायण अथवा गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीरामचरित् मानस के सुन्दरकाण्ड़ या श्रीहनुमान चालीसा के अखण्ड पाठ करना पुण्यदायक माना जाता है। भजन एवं कीर्तन करना चाहिये। श्रीहनुमानजी के विग्रह का सिन्दूर से श्रृंगार करना चाहिये। बेसन का लड्ड़ुओं का भोग अर्पित करना चाहिए।

हनुमान जी जन्म कथा इस प्रकार है। पौराणिक आख्यान है कि श्रीरामवतार के समय ब्रह्याजी ने देवताओं को वानर और भालुओं के रूप में पृथ्वी पर प्रकट होकर श्रीरामजी की सेवा करने का आदेश दिया था। इससे आदेश से सभी देवता अपने-अपने अंश से पृथ्वी पर अवतरित हुए। वायुदेव के अंश से स्वयं रूद्रावतार महावीर हनुमानजी ने जन्म लिया ।


उनके पिता वानरराज केसरी और माता अन्जना देवी थी। जन्म के समय इन्हें क्षुधापीड़ित देखकर माता अन्जना वन से फल लाने चली गई, उधर सूर्योदय के लालरंग के बिम्ब को फल समझकर बालक हनुमान ने छलॉग लगा दी। पवन वेग से वह सूर्यमण्ड़ल जा पहुॅचे । उस दिन राहु भी सूर्य को ग्रसने के लिए सूर्य के समीप पहुंचा हुआ था। हनुमानजी ने फल प्राप्ति में उसे अवरोध समझकर धक्का दिया तो वह घबराकर देवताओं के राजा इन्द्र के पास पहुंचा।



इन्द्र ने सृष्टि की व्यवस्था में विघ्न समझकर बालक हनुमान पर वज्र से प्रहार किया, जिससे हनुमानजी की बार्यी ओर से ठुड्डी टूट गयी। अपने पुत्र पर वज्र के प्रहार से वायुदेव अत्यन्त क्षुब्ध हो गये और उन्होने अपना संचार बंद कर दिया। वायु ही प्राण का आधार है, वायु के संचरण के अभाव में समस्त प्रजा व्याकुल हो उठी। समस्त प्रजा को व्याकुल देख प्रजापति पितामह ब्रह्या सभी देवताओ को लेकर वहां गये, जहां अपने मूचर््िछत शिशु हनुमान को लिये वायुदेव बैठे थे। ब्रह्याजी ने अपने हाथ के स्पर्श शिशु हनुमान को सचेत कर दिया। सभी देवताओ ने उन्हें अपने अस्त्र-शस्त्रों से अवध्य कर दिया। पितामह ने वरदान देते हुए कहा-मारूत। तुम्हारा यह पुत्र शत्रुओं के लिये भयंकर होगा। युद्ध में इसे कोई जीत नहीं सकेगा। राक्षस राज रावण के साथ युद्ध में अद्धुत पराक्रम दिखाकर यह बालक भगवान श्रीराम की प्रसन्नता को प्राप्त करेगा।