माँ के दिए संस्कारों ने आध्यात्मिक परंपरा के शिखर तक पहुंचाया : आचार्य कैलाशानंद

माँ के दिए संस्कारों ने आध्यात्मिक परंपरा के शिखर तक पहुंचाया : आचार्य कैलाशानंद

माँ के दिए संस्कारों ने आध्यात्मिक परंपरा के शिखर तक पहुंचाया : आचार्य कैलाशानंद

युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत आचार्य कैलाशानंद महाराज का जीवन संघर्ष

महाकुंभनगर, 12 जनवरी (हि.स.)। आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद महाराज का जीवन संघर्ष और दृढ़ संकल्प की एक अद्भुत मिसाल है। एक साधारण पृष्ठभूमि से शुरू हुआ उनका अध्‍यात्मिक सफर आज लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया है। अपने शुरुआती जीवन में, उन्होंने न केवल आर्थिक तंगी का सामना किया बल्कि समाज और परिस्थितियों के अनेक उतार-चढ़ाव झेले।

आचार्य कैलाशानंद से रमेश मिश्र ने उनकी आध्यात्मिक यात्रा के संबंध में बातचीत की। प्रस्तुत है साक्षात्कार के अंश।

कैलाशानंद महाराज ने बताया कि माँ के दिए संस्कारों और संतों की सेवा ने मुझे आध्यात्मिक परंपरा के शिखर तक पहुंचाया। मैं बचपन से ही पूजा-पाठ में रुचि रखता था, जो मेरी मां के दिए गए संस्कार हैं।"

साधुओं और संतों की संगत में रहकर हमने शास्त्रों का गहन अध्ययन किया । इस दौरान उन्हें कई प्रकार के अभावों का सामना करना पड़ा, लेकिन साधुओं की संगति ने आगे बढ़ने का हौसला दिया।

साधारण परिवार में हुआ जन्म

कैलाशानंद का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ। बचपन से ही आध्यात्मिकता की ओर उनका झुकाव था, लेकिन उनके पास जीवन की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए भी संसाधन नहीं थे। कभी-कभी तो उनके पास खाने तक के पैसे नहीं होते थे, लेकिन उन्होंने अपने मन और आत्मा को कमजोर नहीं होने दिया। उन्होंने ठान लिया कि वे अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हर कठिनाई का सामना करेंगे।

अध्यात्मिक यात्रा का प्रारंभ अग्नि अखाड़े से हुआ।

उन्होंने इस यात्रा में एक ऐसा मार्ग अपनाया, जो संघर्ष, समर्पण और सेवा से परिपूर्ण था। अग्नि अखाड़ा, जो कि सनातन परंपराओं और वैदिक संस्कृति का प्रतीक है, वहां कैलाशानंद ने सबसे छोटे पद से शुरुआत की। यह यात्रा उनकी सादगी और कर्मठता की मिसाल है।

कैलाशानंद ने अखाड़े में कोठारी, भंडारी और यहां तक कि रसोइए का दायित्व भी संभाला। उन्‍होंने कहा कि मैं छह वर्षों तक अग्नि अखाड़े का रसोइया रहा। दाल और चावल बनाना मेरा कार्य था। इसके बाद मैंने कोठारी का काम किया और तीन वर्षों तक अग्नि अखाड़े का कोतवाल रहा। इन वर्षों में मैंने अपनी जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभाया।

उनकी यह सेवा और समर्पण सिर्फ बाहरी कार्यों तक सीमित नहीं रही। उन्होंने पूजा-अर्चना, नियमों और परंपराओं का पालन करते हुए अपने अराध्य के प्रति अपनी आस्था को अटूट बनाए रखा। कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने अपनी पूजा और भजन का त्याग नहीं किया। लहसुन-प्याज जैसे खाद्य पदार्थों से परहेज करते हुए, उन्होंने अपनी आध्यात्मिक शुद्धता को बरकरार रखा।

14 फरवरी 2013 को तीर्थराज प्रयाग में गंगा मैया की अनुकंपा से कैलाशानंद को अग्नि अखाड़े का अध्यक्ष बनाए जाने का प्रस्ताव मिला। यह उनके लिए सम्मान की बात थी, लेकिन उन्होंने विनम्रता से इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। उनका झुकाव पूजा-पाठ और भजन में अधिक था। वे अपनी आध्यात्मिक साधना और भक्ति के मार्ग पर अडिग रहना चाहते थे।

उन्होंने कहा, "अध्यक्ष की जिम्मेदारी बड़ी होती है। मैं बचपन से ही पूजा-पाठ में रुचि रखता था, जो मेरी मां के दिए गए संस्कार हैं।" इस तरह उन्होंने अखाड़े के प्रति अपनी सेवा भावना को बनाए रखा, लेकिन नेतृत्व की भूमिका से दूर रहकर साधना के मार्ग को प्राथमिकता दी। 2020 तक मैं अग्नि अखाड़े का महामंडलेश्‍वर रहा। इस भूमिका ने मुझे आध्यात्मिक सेवा के क्षेत्र में एक नई दिशा दी।

संघर्ष और साधना, जब साथ मिलते हैं, तो इंसान का जीवन अद्वितीय प्रेरणा का स्रोत बन जाता है। मेरी कहानी भी ऐसे ही संघर्ष और साधना की यात्रा है, जिसमें छोटे-छोटे पदों से लेकर परंपरा के सर्वोच्च शिखर तक का सफर शामिल है। मैंने हमेशा अपनी परंपराओं का पालन किया। चाहे परिस्थितियां कैसी भी रही हों, मैंने कभी अपने ईष्ट देवी-देवताओं का त्याग नहीं किया। दुर्गा मैया, शंकर भगवान, हनुमान जी, मां गायत्री और मां भगवती - इन सभी की आराधना मेरे जीवन का मूलमंत्र रही है।

2016 में निरंजनी अखाड़े ने मुझको आचार्य बनने की इच्छा जताई, लेकिन गुरु बापू गोपालानंद ब्रह्मचारी के आदेश का पालन करते हुए मैंने प्रतीक्षा की। यह प्रतीक्षा 2020 तक चली, जब अखाड़े ने यह निर्णय लिया कि आचार्य कैलाशानंद ही इस पद पर रहेंगे। 31 दिसंबर 2020 को पूज्य गुरुदेव राजेश्वरराज से मैंने संन्यास की दीक्षा ली। अगले दिन, 1 जनवरी 2021 को प्रातःकाल 5 बजे परंपरा अनुसार जल में खड़े होकर दीक्षा ग्रहण की। इसके बाद 14 फरवरी 2021 को मुझे निरंजनी अखाड़े का आचार्य बनाया गया।

संघर्ष से भरा रहा आध्यात्मिक जीवन

पिछले 25 वर्षों का मेरा आध्यात्मिक जीवन संघर्ष से भरा रहा। खाने-रहने, पैसे और अन्य सुविधाओं की कमी ने कई बार कठिनाइयां पैदा कीं, लेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी। हनुमान जी, मां गायत्री, मां भगवती और महादेव की कृपा ने मुझे हर परिस्थिति में शक्ति दी। महादेव की सेवा और परंपरा को शिखर पर पहुंचाना मेरा उद्देश्य रहा है। आज, मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि मेरी साधना और संघर्ष ने इस उद्देश्य को पूरा करने में सफलता दिलाई। महादेव ने मेरी यात्रा को एक ऐसी दिशा दी, जिसने मुझे आध्यात्मिक परंपरा के सर्वोच्च शिखर तक पहुंचाया।

यह 25 वर्षों की साधना, सेवा और संघर्ष की कहानी है। यह दर्शाती है कि ईमानदारी और निष्ठा से किए गए प्रयास कैसे जीवन को एक नई ऊंचाई पर ले जाते हैं। कैलाशानंद महाराज का जीवन इस बात का प्रमाण है कि कड़ी मेहनत, अडिग विश्वास और ईश्वर की कृपा से कोई भी अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। उन्होंने यह संदेश दिया कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयां क्यों न आएं, अगर आप अपने मार्ग पर अडिग हैं, तो सफलता अवश्य मिलेगी। उनकी यह कहानी न केवल एक संत की साधारण से असाधारण बनने की यात्रा है, बल्कि यह हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो अपने जीवन में बदलाव लाना चाहता है। कैलाशानंद का संघर्ष और साधना यह सिखाता है कि असंभव कुछ भी नहीं है।