बिना शोध और जांच के दाखिल की जा रही जनहित याचिकाएं

बिना शोध और जांच के दाखिल की जा रही जनहित याचिकाएं

बिना शोध और जांच के दाखिल की जा रही जनहित याचिकाएं

बिना शोध और जांच के दाखिल की जा रही जनहित याचिकाएं 

-हाईकोर्ट ने आधी अधूरी जानकारी के साथ दाखिल जनहित याचिका 75 हज़ार रुपए हर्जाने के साथ खारिज की

प्रयागराज, 04 दिसम्बर (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आधी अधूरी जानकारी और बिना शोध के जनहित याचिका दाखिल करने के बढ़ते चलन पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि इन दिनों बिना रिसर्च और जांच के जनहित याचिका दाखिल करने का चलन तेजी से बढ़ा है। जो आधी अधूरी जानकारी और तथ्यों के साथ दाखिल की जाती है। ऐसी याचिका जनहित याचिकाएं नहीं है।

यह याचिकाएं किसी निजी हित की पूर्ति या व्यक्तिगत विवाद के समाधान के लिए जनहित याचिका के रूप में दाखिल की जाती है। विशेष कर सर्विस मामलों में। कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ प्रयागराज के आशीष कुमार की ओर से दाखिल जनहित याचिका खारिज कर दी। साथ ही एकल न्याय पीठ द्वारा लगाए गए 75 हज़ार रुपए हर्जाने के आदेश को भी बरकरार रखा है। यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने दिया।

जनहित याचिका एकल न्याय पीठ के आदेश के खिलाफ दाखिल की गई थी। इससे पूर्व इसी याचिका पर न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने सुनवाई की थी। याचिका में मांग की गई थी की एक तालाब की भूमि से अतिक्रमण हटाया जाए। विपक्षी ने कोर्ट में बताया कि याचिका में जिस आदेश को चुनौती दी गई है उस आदेश को हाईकोर्ट द्वारा पहले ही रद्द किया जा चुका है। कोर्ट ने कहा याची ने इस तथ्य की जानकारी करने का कोई प्रयास नहीं किया और बिना पूरी जानकारी के याचिका दाखिल कर दी। एकल पीठ ने 75 हज़ार रुपए हर्जाने के साथ याचिका खारिज कर दी। इसके खिलाफ याची ने खंडपीठ में अपील की थी।

याची का कहना था कि उसे हाईकोर्ट द्वारा आदेश रद्द किए जाने की जानकारी नहीं थी। इस पर खंडपीठ ने कहा कि याची का यह कहना यह साबित करता है कि उसने कोई रिसर्च नहीं किया और ना ही याचिका दाखिल करने से पूर्व कोई जांच की। जबकि वह खुद को एक समाचार पत्र का संपादक और सामाजिक कार्यकर्ता बताता है। कोर्ट ने कहा कि एक बार यह साबित हो गया कि याचिका उस आदेश के खिलाफ दाखिल की गई है जिसे हाईकोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है तो एकल पीठ द्वारा हर्जाना लगाए जाने का आदेश सही है।


-हाईकोर्ट ने आधी अधूरी जानकारी के साथ दाखिल जनहित याचिका 75 हज़ार रुपए हर्जाने के साथ खारिज की

प्रयागराज, 04 दिसम्बर (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आधी अधूरी जानकारी और बिना शोध के जनहित याचिका दाखिल करने के बढ़ते चलन पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि इन दिनों बिना रिसर्च और जांच के जनहित याचिका दाखिल करने का चलन तेजी से बढ़ा है। जो आधी अधूरी जानकारी और तथ्यों के साथ दाखिल की जाती है। ऐसी याचिका जनहित याचिकाएं नहीं है।

यह याचिकाएं किसी निजी हित की पूर्ति या व्यक्तिगत विवाद के समाधान के लिए जनहित याचिका के रूप में दाखिल की जाती है। विशेष कर सर्विस मामलों में। कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ प्रयागराज के आशीष कुमार की ओर से दाखिल जनहित याचिका खारिज कर दी। साथ ही एकल न्याय पीठ द्वारा लगाए गए 75 हज़ार रुपए हर्जाने के आदेश को भी बरकरार रखा है। यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने दिया।

जनहित याचिका एकल न्याय पीठ के आदेश के खिलाफ दाखिल की गई थी। इससे पूर्व इसी याचिका पर न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने सुनवाई की थी। याचिका में मांग की गई थी की एक तालाब की भूमि से अतिक्रमण हटाया जाए। विपक्षी ने कोर्ट में बताया कि याचिका में जिस आदेश को चुनौती दी गई है उस आदेश को हाईकोर्ट द्वारा पहले ही रद्द किया जा चुका है। कोर्ट ने कहा याची ने इस तथ्य की जानकारी करने का कोई प्रयास नहीं किया और बिना पूरी जानकारी के याचिका दाखिल कर दी। एकल पीठ ने 75 हज़ार रुपए हर्जाने के साथ याचिका खारिज कर दी। इसके खिलाफ याची ने खंडपीठ में अपील की थी।

याची का कहना था कि उसे हाईकोर्ट द्वारा आदेश रद्द किए जाने की जानकारी नहीं थी। इस पर खंडपीठ ने कहा कि याची का यह कहना यह साबित करता है कि उसने कोई रिसर्च नहीं किया और ना ही याचिका दाखिल करने से पूर्व कोई जांच की। जबकि वह खुद को एक समाचार पत्र का संपादक और सामाजिक कार्यकर्ता बताता है। कोर्ट ने कहा कि एक बार यह साबित हो गया कि याचिका उस आदेश के खिलाफ दाखिल की गई है जिसे हाईकोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है तो एकल पीठ द्वारा हर्जाना लगाए जाने का आदेश सही है।