हमारे पूर्वजों ने सामाजिक व्यवस्थाओं से समाज को समरस बनाने का कार्य किया : अनिल
हमारे पूर्वजों ने सामाजिक व्यवस्थाओं से समाज को समरस बनाने का कार्य किया : अनिल
--पुरखों के दिए समरसता सूत्र को पुनः आत्मसात करना होगा : अनिल--“सामाजिक समरसता : भारतीय परिप्रेक्ष्य“ पर शंख का संवाद कार्यक्रम
प्रयागराज, 23 दिसम्बर (हि.स.)। आज कुछ राजनीतिक दल जातीय विद्वेष फैलाकर राजनैतिक लाभ उठाने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे आदर्श विमर्श से हम दूर होते जा रहे हैं। विदेशी शक्तियां भी भारतीय समाज को तोड़ने के लिए ऐसी संस्थाओं को पोषित कर रही हैं और सोशल मीडिया के युग में इन विघटनकारी ताकतों को बढ़ावा मिल रहा है। भारतीय समाज में समरसता सदैव से विद्यमान रही है, और हमारे पूर्वजों ने सामाजिक व्यवस्थाओं के माध्यम से समाज को समरस बनाने का कार्य किया है। उक्त विचार बतौर मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र प्रचारक अनिल ने शंख संस्था द्वारा सिविल लाइंस स्थित इलाहाबाद मेडिकल एसोसिएशन के सभागार में “सामाजिक समरसताः भारतीय परिप्रेक्ष्य“ विषय पर गोष्ठी एवं संवाद कार्यक्रम में व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि समरसता केवल भाषण का विषय नहीं है, बल्कि इसे जीवन में उतारने की आवश्यकता है। भारत को एकात्मकता के सूत्र में बांधे रखने के लिए हमारे पूर्वजों द्वारा बनाई गई व्यवस्थाओं को पुनः आत्मसात करना होगा।
वरिष्ठ प्रचारक ने आगे कहा कि भारत वही देश है, जहां विश्व के सबसे बड़े आयोजन कुम्भ में सभी हिन्दू बिना किसी जातीय भेदभाव के एक साथ रहते हैं और प्रयागराज के संगम में स्नान करते हैं। यदि किसी को भारत का सच्चा दर्शन करना हो, तो कुम्भ अवश्य देखना चाहिए। समरसता की शुरुआत हमें अपने परिवार से करनी होगी, तभी समाज में समरसता स्थापित हो सकेगी।
विशिष्ट वक्ता सामाजिक चिंतक अभिनव चक ने कहा कि शंख द्वारा ऐसे विषयों को उठाने का निरंतर प्रयास सराहनीय है। आज केवल समरसता पर चिंतन करने की नहीं, बल्कि प्रभावी प्रयास करने की आवश्यकता है। भारतीय परम्परा में समरस समाज की संकल्पना अनादिकाल से विद्यमान रही है, जिसे आज पुनः आत्मसात करने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य स्थाई अधिवक्ता विजय शंकर मिश्र ने कहा कि कुछ राजनीतिक दलों की प्रवृत्ति समाज को विभाजित करने की है और वे सोशल मीडिया का उपयोग कर समाज को बांटने का प्रयास कर रहे हैं। हमें इन विभाजनकारी ताकतों को रोकना होगा, तभी समरस भारतीय समाज की संकल्पना पुनः साकार हो सकेगी।
विशिष्ट अतिथि एवं कार्यक्रम की संयोजिका डॉ. कीर्तिका अग्रवाल ने सभी को शुभकामनाएं दीं और संक्षेप में विषय को प्रस्तुत किया। उन्होंने भारतीय मूल्यों पर आधारित बेहतर समाज की स्थापना की बात कही। कार्यक्रम में भारतीय समाज को एकात्मकता के सूत्र में पिरोकर समरस बनाने पर सार्थक चर्चा-परिचर्चा की गई। डॉ. मृत्युंजय राव परमार, सहायक आचार्य इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने कहा कि भारतीय दर्शन सदैव समरसता का पक्षधर रहा है। भारत ने सम्पूर्ण विश्व को समरसता का पाठ पढ़ाया है और आज हमें अपने ही देश में इस पर चर्चा करनी पड़ रही है। भारतीय संस्कृति को पुनः आत्मसात करने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम का संचालन विश्वास नारायण तिवारी ने किया। अंत में, कार्यक्रम के संरक्षक डॉ. संतोष सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम में शंख संस्थान के अध्यक्ष आलोक परमार, सदस्य डॉ कुंवर शेखर एवं अभिनव मिश्र भी उपस्थित रहे।