मथुरा : लट्ठमार होली के समय श्रीजी और नंदबाबा मंदिर रहता है बंद
ध्वजा आने पर ही श्रीकृष्ण धारण करते हैं बांसुरी-छड़ी तो राधारानी धारण करती है चन्द्रिका
मथुरा, 08 मार्च । लट्ठमार होली का जब भी जिक्र होता है तो प्रेम का अनुराग कही जाने वाली बरसाना लठामार रंगीली होली याद आने लगती है। साढ़े पांच हजार वर्ष पूर्व बालगोपाल श्रीकृष्ण नंदगांव से अपने ग्वालों के साथ प्रतीकात्मक ध्वजा लेकर होली खेलने बरसाना पहुंचे थे। जबसे लेकर यह परंपरा आज तक चली आ रही है। इस परंपरा के चलते नंदबाबा मंदिर के पट बंद रहते हैं और कान्हा को बांसुरी और छड़ी धारण नहीं कराते हैं। इसका उद्देश्य है कि नंदगोपाल बरसाना होली खेलने गए हैं।
नंदगांव मंदिर के गोस्वामी बताते हैं कि जब तक बरसाना से ध्वजा वापस मंदिर में नहीं आ जाती, तब तक कृष्ण को न तो शयन कराया जाता है न भोग लगाया जाता है। ध्वजा आने के बाद ही श्रीकृष्ण को छड़ी और बांसुरी लगाई जाती है।
गौरतलब हो कि वर्तमान से साढ़े पांच हजार वर्ष पहले नंदगांव से बरसाना होली खेलने के लिए श्रीकृष्ण अपने ग्वालों के साथ कच्चे मार्ग से आते थे। उसी परंपरा के अनुरूप आज भी उनकी प्रतीकात्मक ध्वजा (डांढ़ा) भी होली खेलने कच्चे रास्ते से बरसाना पहुंचते है। ये ध्वजा वसंत पंचमी के दिन ही मंदिर में रोपी जाती है।
मान्यता है कि इसी ध्वज रूपी डांढ़े के साथ नंदगांव के हुरियारे होली खेलने बरसाना आते हैं। आज भी कान्हा के होली खेलने की गवाही उनका नंदबाबा मंदिर देता है। दोपहर 02 बजे से रात 08 बजे तक मंदिर के पट बंद रहते हैं, भाव यह है कि नंदलाल अपने सखाओं के साथ होली खेलने बरसाना गये हैं। जब तक नंदबाबा मंदिर की ध्वजा बरसाना से लौट नहीं आती तब तक कृष्ण को बंशी व छड़ी धारण नहीं कराई जाती। यहां तक कि भोग भी नहीं लगता। ठीक ऐसे ही जब बरसाना के लोग फगुआ मांगने के रूप में होली खेलने नंदगांव आते हैं, तो राधारानी मंदिर के भी पट बंद रहते हैं। जब तक ध्वजा वापस मंदिर में नहीं आ जाती। इस ध्वजा के नेतृत्व में ही दोनों गांव के मुखिया होली का शुभारंभ करते हैं।
बरसाना की लठामार होली से पहले कृष्ण का प्रतीक नंदगांव का ध्वजा लाडली जी मंदिर में पहुंचता है और बृषभान दुलारी को होली खेलने के लिए रंगीली गली बुलाते हैं। ऐसे ही नंदगांव में भी जब बरसाना के हुरियारे होली खेलने जाते हैं, तो कान्हा व उनकी भाभियों को होली खेलने रंगीली गली चौक पर बुलाते हैं।
बरसाना मंदिर के गोस्वामी रामभरोसे ने बताया कि बरसाना की लठामार होली के दिन राधारानी चन्द्रिका धारण नहीं करती। इसकी यह मान्यता है कि किशोरी जी श्रीकृष्ण के साथ होली खेलने गई है। ठीक उसी प्रकार नन्दगांव की होली के दिन जब तक शयन आरती व भोग नही लगता तब तक ध्वज रुपी डाढ़ा होली खेलकर वापस न आ जाए।
नंदबाबा मंदिर के गोस्वामी छैलबिहारी ने बताया कि बरसाना की लठामार होली खेलने आज भी नंदलाल हमारे साथ पैदल जाते हैं। जिस ध्वजा को लेकर हम होली खेलने जाते हैं वो नंदलाल का ही प्रतीक होता है। उस दिन नंदलाल को बंशी व छड़ी धारण नहीं कराई जाती। मान्यता है कि श्रीकृष्ण स्वयं होली खेलने गए हैं। जब तक बरसाना से ध्वजा वापस मंदिर में नहीं आ जाती, तब तक कृष्ण को न तो शयन कराया जाता है न भोग लगाया जाता है।