डाला छठ: दूसरे दिन व्रती महिलाओं ने किया खरना पूजन, घरों में छठ गीतों की धूम
पूजन के बाद सुहागिनों की मांग भरकर सदा सुहागन रहने का दिया आशीर्वाद
लोक आस्था के महापर्व डाला छठ के दूसरे दिन मंगलवार को व्रती महिलाओं ने परिवार के साथ पूरे आस्था और उल्लास के साथ निर्जला रह खरना पूजन किया। सुबह स्नान ध्यान के बाद व्रती महिलाओं ने छठ माता की आराधना की। इसके बाद सिंदूर लगाया।
पूरे दिन निर्जला व्रत रहने के बाद परम्परागत तरीके से महिलाओं ने संध्या समय में फिर स्नान कर छठी मइया की पूजा श्रद्धापूर्वक किया। फिर मिट्टी के चूल्हे में लकड़ी जलाकर बने रसियाव, खीर, शुद्ध घी लगी रोटी, केला का भोग चढ़ाया। इस भोग को स्वयं खरना कर लोगों में प्रसाद वितरित किया। शाम को व्रती महिलाओं ने परिवार और रिश्तेदारी की सुहागिनों की मांग भरकर उन्हें आशीर्वाद दिया। इसी के साथ शाम से ही 36 घंटे का निर्जला कठिन व्रत भी शुरू हो गया।
चंदौली धनश्यामपुर की सुमन तिवारी, राधिका पाठक, कंचनलता सिंह ने बताया कि पिछले सात-आठ वर्षों से छठ माता का व्रत रख रही हैं। माता रानी की कृपा से परिवार में सुख शान्ति है। व्रती महिलाओं ने बताया कि विश्वास है खरना पूजा के बाद ही घर में छठी मइया का आगमन हो जाता है। उन्होंने बताया कि भगवान सूर्यदेव और छठ मैया की पूजा में जो भी कामना (मन्नत) निर्मल हृदय से मांगा जाता है। वो कामना छठ मैया की कृपा से पूरी हो जाती है। सुमन बताती है कि छठ पूजा में कोसी भरने की परम्परा है। जिन्हें सन्तान नहीं होती या किसी बीमारी से पीड़ित है। सूर्यषष्ठी की संध्या में (व्रत के तीसरे दिन) कोसी भरी जाती है। 36 घंटे के निर्जला व्रत में महिलाएं सायंकाल तालाब, नदी या घर में अस्ताचलगामी सूर्य और छठी मइया का पूजा कर अर्घ्य देने के बाद घर लौटने पर आंगन में या छत पर कोसी भरी जाती है। इसके लिए सात गन्ने से मंडप बनाया जाता है। इसमें बने कोसी के चारों ओर अर्घ्य की सामग्री से भरी सूप, डगरा, डलिया, मिट्टी के ढक्कन व तांबे के पात्र को रखकर दीया जलाते हैं। उन्होंने बताया कि जिनकी कामना पूरी हो जाती है। वे भी कोसी भराई कर माता के प्रति आस्था जताती हैं।
गौरतलब हो कि भविष्य पुराण में एक कथा है कि सतपुरा में एक दम्पति ने कात्यायन ऋषि की पूजा कर पुत्र प्राप्ति का उपाय पूछा। ऋषि ने सूर्योपासना कर कोसी भरने की मन्नतें मांगने की सलाह दी। उपासना के बाद दम्पति को कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी को भवार्ण ऋषि के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। तब से व्रत छठी मइया के नाम से विख्यात हुआ। द्वापर में इन्द्रप्रस्थ में महारानी द्रोपदी ने छठ व्रत रखते हुए कोसी भरा था। त्रेता युग में रावण पर विजय हेतु अगस्त ऋषि के कहने पर भगवान श्रीराम ने सूर्योपासना करते सीता के साथ कोसी भरा था।