महाकुम्भ में शक्ति, भक्ति और संकल्प का समागम: स्वामी चिदानन्द सरस्वती

महाकुम्भ में शक्ति, भक्ति और संकल्प का समागम: स्वामी चिदानन्द सरस्वती

महाकुम्भ में शक्ति, भक्ति और संकल्प का समागम: स्वामी चिदानन्द सरस्वती

महाकुम्भ नगर, 01 फरवरी(हि.स.)। महाकुम्भ में प्रसिद्ध कथावाचक चित्रलेखा का आगमन हुआ। चित्रलेखा ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती व साध्वी भगवती सरस्वती से भेंटकर आशीर्वाद लिया।

इस अवसर पर नारी शक्ति के सशक्त नेतृत्व पर महत्वपूर्ण चर्चा की गई, जिसमें शक्ति, भक्ति और संकल्प की धरती महाकुम्भ में नारी सशक्तिकरण को लेकर विचारविमर्श किया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि महाकुम्भ का पूरे विश्व में एक विशिष्ट स्थान है, यहां पर जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे शक्ति, भक्ति और संकल्प का समागम है। भक्ति और शक्ति का ऐसा अद्भुत समन्यव हुआ जो समाज के समग्र उत्थान और उन्नति का मार्ग प्रशस्त करेगा। यह नारी शक्ति के सशक्त नेतृत्व का आगाज है।

नारी को अपनी क्षमता और सामर्थ्य को जानने के लिए शिक्षा के साथ स्वयं पर विश्वास करने की अत्यंत आवश्यकता है। जब विदुषी नारियों का नेतृत्व और मार्गदर्शन समाज को प्राप्त होता है तो विकास का मार्ग प्रशस्त होता है।

उन्होंने नारी शक्ति के सशक्त नेतृत्व के लिए एक रोडमैप तैयार करने की आवश्यकता पर जोर देते हुये कहा कि नारियों को हर क्षेत्र में समान अवसर मिलना चाहिए ताकि वे अपनी प्रतिभा और क्षमता का सर्वोत्तम उपयोग कर सकें।

उन्होंने कहा कि महाकुम्भ प्रयागराज की धरती से नारी सशक्तिकरण और शक्ति के संकल्प को लेकर एक नई शुरुआत करनी होगी ताकि आने वाले समय में समाज और राष्ट्र के लिए सकारात्मक बदलाव की दिशा तय की जा सके। यह बदलाव समाज के प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक नए युग की शुरुआत के रूप में उभर कर आयेगा।

चित्रलेखा ने कहा कि वर्तमान समय में नारी को अपनी शक्ति और सामर्थ्य का अहसास होना बहुत जरूरी है। नारियां परिवार, समाज और राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हमें उनकी अदृश्य शक्ति को पहचानकर उसे समाज के सामने लाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि समाज के हर स्तर पर नारी शक्ति को न केवल सम्मान मिलना चाहिए, बल्कि उन्हें नेतृत्व देने के लिए समाज को अपनी सोच में बदलाव लाना होगा।

डाॅ साध्वी भगवती सरस्वती ने कहा कि शक्ति, भक्ति और संकल्प की यह धरती हमें यह संदेश देती है कि केवल शारीरिक शक्ति ही नहीं, बल्कि मानसिक और आत्मिक शक्ति का भी सम्मान करना होगा। जब नारी आत्मविश्वास के साथ अपने कार्यक्षेत्र में कदम रखती है, तो वह समाज को प्रगति के रास्ते पर ले जाती है। महाकुम्भ न केवल हमें भक्ति की शक्ति का एहसास कराता है, बल्कि नारियों के अंदर व्याप्त दिव्य शक्ति का भी एहसास कराता है जो समाज के हर क्षेत्र में परिवर्तन ला सकती है।

साध्वी ने कहा कि महाकुम्भ में जहां एक ओर भक्ति की गूंज सुनाई देती है, वहीं दूसरी ओर शक्ति और संकल्प के विभिन्न स्वरूपों के भी दर्शन हो रहे हैं। महाकुम्भ न केवल धर्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह मानवता के उत्थान के लिए एक बड़ा संदेश देता है। यदि हम शक्ति और भक्ति का समन्वय करते हैं, तो हम आत्मिक और सामाजिक दोनों ही स्तरों पर सफलता प्राप्त कर सकते हैं। समाज में बदलाव लाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को विशेष रूप से नारियों को अपनी शक्ति और सामर्थ्य को पहचानने की जरूरत है।

महाकुम्भ जीवन में विलक्षण परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित करता है। जब हम अपने भीतर की शक्ति को पहचानेंगे और उसे सकारात्मक दिशा में लगाएंगे तो हम अपने समाज और राष्ट्र के लिए बेहतर भविष्य की नींव रख पाएंगे।