.लेकिन सजा सिर्फ हिन्दुओं को मिले, यह बर्दाश्त करना ठीक नहीं : महामण्डलेश्वर केशवदास
.लेकिन सजा सिर्फ हिन्दुओं को मिले, यह बर्दाश्त करना ठीक नहीं : महामण्डलेश्वर केशवदास
समाज के सपोर्ट के बगैर घुसपैठ रोकना मुश्किल : महामण्डलेश्वर केशवदास
महाकुम्भनगर, 26 जनवरी (हि.स.)। स्वामी श्री केशवदास जी महाराज प्रयाग महाकुम्भ में पूर्वोत्तर भारत से आये इकलौते महामण्डलेश्वर हैं। महाराज जी सिर्फ हिन्दू मंदिरों पर सरकार की कुदृष्टि, युवाओं के चारित्रिक व नैतिक पतन को लेकर चिंतित दिखाई देते हैं। धर्म, समाज, अध्यात्म और समसामयिक विषयों और प्रश्नों पर महाराज जी के बेबाकी से अपने विचार तो रखते ही हैं, वहीं इन समस्याओं और प्रश्नों के समाधान भी सुझाते हैं। महाराज जी से हिन्दुस्थान समाचार के लिये राजेश तिवारी ने लम्बी बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत का प्रमुख अंश-
प्रश्न : आप किस परम्परा से आते हैं?
उत्तर : हम देवरहा बाबा की परम्परा से हैं। हमारा उद्देश्य सनातन और राष्ट्र को मजबूत करना है।
प्रश्न : जीवन में वास्तविक आनन्द क्या है?
उत्तर : जीवन की सार्थकता के लिए 'एकनिष्ठ' प्रेम होना चाहिए। परमात्मा को पाना ही वास्तविक आनन्द है। देवी की कृपा हठ से नहीं, द्रवित करके प्राप्त की जा सकती है। साधना का मतलब ही है 'साधो'। साधना से ज्यादा महत्वपूर्ण आपका चिंतन मायने रखता है।
प्रश्न : क्या आपको लगता है कि संत समाज और संतों के प्रति श्रद्धा कम हुई है?
उत्तर : बिल्कुल नहीं, साधु-संतों के प्रति समाज की अटूट श्रद्धा है। सत्य, सत्य ही रहता है। विदेशी मीडिया जानबूझकर प्रचारित करती है कि संतों के प्रति श्रद्धा कम हुई है। इसका प्रमाण यह 'महाकुम्भ' है। संतों के दर्शन के लिए दुनिया भर से करोड़ों सनातनी प्रयागराज पहुंचे हैं। सनातन के प्रति समाज की श्रद्धा घटी नहीं है, पहले से ज्यादा बढ़ी है।
प्रश्न : आप मानते हैं समाज का चारित्रिक एवं नैतिक पतन हुआ है?
उत्तर : कुछ हद तक यह सच्चाई है। समय के साथ थोड़ा बहुत उतार-चढ़ाव स्वाभाविक है। चरित्र व नैतिकता में जो गिरावट आयी है उसके कारण माता-पिता हैं। वर्तमान में समाज का चरित्र धन प्रधान हो गया है। पहले योग्यता, चरित्र, ईमानदारी की प्रमुखता थी। आज हम संस्कारी घरों की बजाय अपने बच्चों के लिये अमीर और धनाढ्य घरों में रिश्तें ढूंढते हैं। अब यह अभिभावकों को तय करना है कि बच्चे को पैसे वाला बनाना है या संस्कारी। बच्चे को सुखी रखना है, या धनवान। सुखी व धनवान एक साथ होना संभव नहीं है। माता-पिता बच्चे को जो संस्कार देते हैं, वो उसी से महान् बनते हैं। विवाह संबध और रसोई, ये दो चीज सुधर जाएं तो हम सुधर जायेंगे, समाज सुधर जायेगा, सारी चीजें सही हो जायेंगी।
प्रश्न : सनातन बोर्ड की मांग हो रही है, आप इससे कितना सहमत हैं?
उत्तर : सनातन बोर्ड नहीं, प्रश्न यह है कि सनातन की परम्पराओं को सुरक्षित रखना है। भारतीय संविधान में यह कहीं नहीं है कि आप मात्र हिन्दुओं की सम्पत्तियों पर कब्जा करेंगे, अन्य पंथ और संप्रदाय की सम्पत्तियों को खुला छोड़ेंगे। चर्च व मस्जिदें किसी प्रकार के टैक्स नहीं देते। वह किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं हैं। इनकी कमेटी में प्रशासन व कलेक्टर का हस्तक्षेप नहीं। तो फिर हमारे मंदिरों एवं धार्मिक केन्द्रों पर क्यों? ये इसलिए हो रहा है, क्योंकि हिन्दू सहनशील है। जब हिन्दू समाज जागृत होगा, तब सनातन बोर्ड की कोई जरूरत नहीं होगी। सनातन बोर्ड क्रिया की प्रतिक्रिया है।
प्रश्न : आपके विचार में सरकारी अधिग्रहण से मंदिर मुक्त होने चाहिए?
उत्तर : देश के सभी मंदिर सरकार के कंट्रोल से तत्काल मुक्त होने चाहिए। राज्यों में प्रमुख मंदिर सरकार के कंट्रोल में हैं। इस स्थिति के लिए केन्द्र सरकार जिम्मेदार नहीं है। सभी राज्य सरकारों को मंदिरों को मुक्त करना चाहिए। यह भेदभाव बंद होना चाहिए। आज भी चर्च व मस्जिदें स्वच्छन्द और स्वतंत्र हैं। सिर्फ मंदिरों पर सरकार की कुदृष्टि, यह ठीक नहीं है। कोई नमाज रोड पर पढ़े उसका विरोध होना ही चाहिए। लाउड स्पीकर कोई तेज बजाए, उसका भी विरोध होना चाहिए। लेकिन सजा सिर्फ हिन्दुओं को मिले, यह दोहरा व्यवहार ठीक नहीं है।
प्रश्न : हिन्दू समाज ही धर्मान्तरित होता है, इसकी आप क्या वजह मानते हैं?
उत्तर : गुलाम भारत ही नहीं, बल्कि आजाद भारत में भी हमारी शिक्षा पद्धति, हमारे परिवेश एवं हमारी सोच को षडयंत्र पूर्वक बदला गया। सनातन पद्धति का मजाक उड़ाया गया। हमारे मठ-मंदिरों व गुरूकुल की शिक्षा को कमतर समझा गया, जबकि ईसाई मिशनरियों के विद्यालय सम्पूर्ण भारत में खोले गए। हमारी जो पहचान थी वेद-वेदांत, उपनिषद, पुराण, धोती, चंदन, जनेऊ, शिखा उसके प्रति अश्रद्धा पैदा की गई, अंग्रेजीयत को बढ़ावा दिया गया। हमें गलत संस्कारों की ओर धकेलने की कुचेष्टा की गई। हमें अध्यात्म, संस्कृति व परम्पराओं से कांटने के षड्यंत्र हुए। उसका दुष्परिणाम यह हुआ कि हमारे धर्म एवं हिन्दू होने के प्रति हमारी श्रद्धा कम हुई और हमारे अंदर हीनभावना भर गई। वास्तव में, हमारे मंदिरों, गुरूकुल व गोशालाओं को ऐसे महासमुद्र के रूप में परिणित होना चाहिए, जहां सभी धाराएं आकर मिलें। मंदिर मात्र पूजा के केन्द्र बनकर रह गए, वहां की अन्य गतिविधियां बिल्कुल समाप्त कर दी गईं। हमारे संयुक्त परिवारों को तोड़ने का षड्यंत्र रचा गया है। जिससे समाज में एकल (न्यूक्लियर फैमिली) परिवार बढ़े। एकल परिवारों के बढ़ते चलन के कारण समाज और परिवार में सहिष्णुता घटी है। हमें हमारी परम्पराओं का पालन न कर पाएं, इसके लिए अड़चनें पैदा की गई। परिणामस्वरूप, हिन्दू समाज शीघ्र धर्मान्तरित होता है। इसके लिए आवश्यक है कि प्राचीन व्यवस्थाओं को पुनः लागू किया जाय। हम भूल गए कि हम दुर्गा, काली, श्रीराम व श्रीकृष्ण के वंशज हैं। जरूरत पड़ी तो हमारे देवी-देवताओं ने शस्त्र उठाया। जरूरत पड़ने पर हमें भी शस्त्र उठाना चाहिए।
प्रश्न : पूर्वोत्तर में घुसपैठ की वजह और इसका समाधान क्या है?
उत्तर : घुसपैठ तभी होती है जब कोई-न-कोई आंतरिक सपोर्ट (समर्थन) करता है। यह बताने की जरूरत नहीं है कि किस तरह के लोग उन्हें सपोर्ट करते हैं। पूर्वोत्तर में भारी संख्या में हो रही घुसपैठ से जनसंख्या का अनुपात तेजी से बदल रहा है। राजनीति भी प्रभावित हो रही है। असम के मुख्यमंत्री हेमंत विस्वा घुसपैठ रोकने के लिए काफी प्रयास कर रहे हैं। किन्तु जब तक समाज का सपोर्ट नहीं मिलेगा, तब तक घुसपैठ रोकना संभव नहीं है। हिन्दू समाज संगठित व शक्तिशाली हो, प्रशासन सख्त हो और हम तय करें कि किसी अनजाने व्यक्ति को घर के आस-पास रूकने नहीं देंगे। सामाजिक जागरूकता, एकजुटता व संगठन की शक्ति ही इसे (घुसपैठ) रोक सकती है। मात्र सरकार के भरोसे यह लड़ाई नहीं जीती जा सकती।
प्रश्न : जनसंख्या असंतुलन की वजह और इसका समाधान क्या है?
उत्तर : वोट बैंक की राजनीति, स्वार्थपरकता, भ्रष्टाचार, मतावलम्बियों को अत्यधिक छूट देना, यह सब जनसंख्या असंतुलन के कारण हैं। इसकी वजह से देश में अस्थिरता बढ़ी है। मुसलमान चार-चार विवाह करें, चालीस बच्चा पैदा करें, यह कैसे चलेगा। देश का संविधान सब पर एक समान लागू हो। इसे रोकने के लिए 'समान नागरिक संहिता' को तत्काल लागू करना चाहिए।
प्रश्न : संयुक्त परिवारों के विखण्डन को किस रूप में देखते हैं?
उत्तर : हिन्दू समाज को 'अष्ठ पुत्र सौभाग्यवती भवः' यही आशीर्वाद है, और यही होना ही चाहिए। भारतीय संस्कृति के लिए संयुक्त परिवार का बिखरना ठीक नहीं है। मनुष्य स्वार्थ केन्द्रित हो रहा है। छोटा परिवार बिल्कुल नहीं चाहिए। बड़ा परिवार होना चाहिए। चार से पांच बच्चे होने चाहिए। 'हम दो हमारे एक' से सारे रिश्ते समाप्त हो रहे हैं। परिवार के टूटने से एक-दूसरे के बीच प्रेम कम हो रहा है।
प्रश्न : गौ माता को लेकर मुसलमानों को क्या संदेश देंगे?
उत्तर : मुस्लिम गौ माता को लेकर अपनी सोच बदलें। जब सबकी गौ 'माता' हैं तो उसका आहार क्यों बनाते हो। गाय का अपमान क्यों करते हो? हिन्दू संत इन पंथावलम्बियों की वजह से सनातन बोर्ड की मांग कर रहा है। यह क्रिया नहीं प्रतिक्रिया है। सनात्तन बोर्ड की मांग वक्फ बोर्ड के कारण हुई है।
प्रश्न : पूर्वोत्तर भारत के लिए महाकुम्भ को किस रूप में देखते हैं?
उत्तर : पूर्वोत्तर क्षेत्र धार्मिक, आध्यात्मिक व सांस्कृतिक रूप से बहुत समृद्ध क्षेत्र है। उसकी जो विरासत व परम्परा है, वो विश्व के सम्मुख अभी आ नहीं पायी है। यह प्रथम अवसर है कि सांस्कृतिक धरातल के साथ आध्यात्मिक व कर्मकांडी पद्धतियों का यहां प्रचार होगा। महाकुम्भ में पहली बार मां कामख्या की प्रतिकृति (रेप्लिका) स्थापित हुई है। भक्तों को प्रसाद के रूप में वही जल मिलेगा, जो मां कामख्या के दर्शन करने पर मिलता है।
प्रश्न : पूर्वोत्तर की विरासत व संस्कृति को लोग कैसे जानें?
उत्तर : महाकुम्भ क्षेत्र के बजरंग दास मार्ग, सेक्टर-7 में प्राग्ज्योतिष क्षेत्र शिविर में 'प्रज्ञा फाउंडेशन' की ओर से पूरे पूर्वोत्तर भारत की विरासत, परम्परा व संस्कृति से जुड़ी प्रदर्शनी लगायी गई है। जिसे महाकुम्भ में आए श्रद्धालु अवलोकन कर पूर्वोत्तर भारत की अनमोल विरासत को अपने हृदय में संजों सकेंगे। पूर्वोत्तर भारत के नामघर से जुड़े कुछ कर्मकांडी संत भी महाकुम्भ में पधारे हैं। असम में श्रीमद्भागवत सात दिनों तक अहर्निश (रात-दिन) चलता है। उन्हीं संतों के नेतृत्व में महाकुम्भ की पवित्र धरती पर अखण्ड श्रीमद्भागवत कथा का सस्वर पाठ हो रहा है।
शिविर में पूर्वोत्तर से जुड़े सांस्कृतिक कार्यक्रम में भी होंगे। असम और पूर्वोत्तर भात की संस्कृति की जो बहुलता और विराटता है, वह सांस्कृतिक कार्यक्रमों में परिलक्षित होगी। मणिपुरी रास, अप्सरा नृत्य, सत्रीय नृत्य, माटी अखाड़ा समेत अन्य कार्यक्रम होंगे।
प्रश्न : क्या महाकुम्भ में पूर्वोत्तर के संत पहली बार अमृत स्नान करेंगे?
उत्तर : महाकुम्भ के ज्ञात में इतिहास में पूर्वोत्तर भारत के साधु-संत, धर्मगुरू पहली बार अमृत स्नान में शामिल हो रहे हैं। यह अद्भुत संयोग है कि पूर्वोत्तर भारत के सभी जनजातियों से जुड़े 125 संतों को बुलाया गया है। इन संतों में वैष्णव, शैव, शाक्य, बौद्ध, जैन समेत भारतीय धर्मधारा की जितने भी धाराएं हैं, उससे संबंधित संत आए हुए हैं। महाकुम्भ में असम, अरुणाचल, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम से संत आए हैं। इन संतों में अमृत स्नान को लेकर काफी उत्साह है। कुम्भ के इतिहास में पहली बार होगा कि इन राज्यों के विभिन्न जनजातियों से जुड़े धर्माचार्य एवं साधु-संत संगम में डुबकी लगायेंगे।
प्रश्न : महाकुम्भ से आप युवाओं को क्या संदेश देंगे?
उत्तर : युवा योग्य गुरू का चयन स्वयं करे। जीवन को ठीक रखने के लिए साधना शुरू करें। व्यवहार सुनिश्चित करें। हनुमान चालीसा, राम मंत्र, कृष्ण मंत्र, शिव मंत्र का जप करें, जिसमें आस्था हो उसका ध्यान करें। आंख बन्द कर ध्यान करें, श्वास पर ध्यान केन्द्रित करें। कुछ भी पद्धति अपना लें, जिससे अपने आप को जान सकें। मेरे जन्म का उद्धेश्य क्या है, यह भी चिंतन करें। युवाओं को 24 घंटे में से कम से कम 45 मिनट का समय ईश्वर को देना चाहिए। अगर हमने युवाओं को जीवन मूल्य तय नहीं कराये तो वह किसी भी रास्ते पर भटक सकते हैं।
प्रश्न : महाकुम्भ को लेकर देश व दुनिया को क्या संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर : महाकुम्भ हमें बताता है कि भारतीय संस्कृति विराट और अद्भुत है। हम सब एक हैं। इसी एकता के साथ रहने से विश्व का मंगल हो सकता है। विभिन्न धर्म धाराओं के संत आकर यहां साधना करते हैं। सनातन के भाव को लेकर चलेंगे तो पूरा विश्व शांति की ओर बढ़ेगा।