मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बड़ी राहत
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बड़ी राहत
प्रयागराज, 22 फरवरी । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का विरोध करने वाली ताकतें, जो देश प्रदेश का विकास होते नहीं देखना चाहती, राज्य को इसकी जांच करनी चाहिए। हालांकि कोर्ट ने इस सम्बंध में कोई निर्देश जारी करने से परहेज़ किया और यह काम राज्य पर छोड़ दिया है।
कोर्ट ने यह टिप्पणी अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल की इस आशय की आशंका उठाए जाने पर की। जिसमें उन्होंने कहा था कि याची जिसका 14 केसों का आपराधिक इतिहास है, वह 2007 से गोरखपुर जिला अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक केस लड़ रहा है। जिसमें काफी धन खर्च हुआ है। उसके पीछे सरकार व प्रदेश के विकास विरोधी ताकतें हैं।
कोर्ट ने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ केस में विवेचना के बाद दाखिल फाइनल रिपोर्ट पर याची की आपत्ति ट्रायल कोर्ट द्वारा निरस्त करने को सही माना और कहा जिस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से फैसला अंतिम हो चुका, उस पर ट्रायल कोर्ट पुनर्विचार नहीं कर सकती।
कोर्ट ने योगी आदित्यनाथ के मामले में दाखिल पुनरीक्षण याचिका को न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग मानते हुए एक लाख रूपए हर्जाने सहित खारिज कर दी है और याची को चार हफ्ते में हर्जाना आर्मी वेलफेयर फंड में जमा करने का निर्देश दिया है। कोर्ट के इस फैसले से योगी आदित्यनाथ को बड़ी राहत मिली है।
यह फैसला न्यायमूर्ति डी के सिंह ने गोरखपुर के कथित सोसल वर्कर परवेज परवाज़ की आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर दिया है। कोर्ट ने कहा कि आरोपी के लोक सेवक होने के नाते शासन से उनके खिलाफ अभियोग चलाने की मांगी गई अनुमति पर इंकार कर दिया गया। जिसकी वैधता पर हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में सवाल उठे,जहां आदेश पर हस्तक्षेप नहीं किया गया। निष्पक्ष विवेचना पर उठे सवालों को हाईकोर्ट ने सही नहीं माना और विवेचना अन्य एजेंसी को सौंपने की मांग अस्वीकार कर याचिका खारिज कर दी। ऐसे में ट्रायल कोर्ट को प्रोटेस्ट अर्जी पर इन्हीं मुद्दों को फिर से सुनने का अधिकार नहीं है।
ट्रायल कोर्ट ने प्रोटेस्ट अर्जी खारिज करने में कोई कानूनी प्रक्रियागत गलती नहीं की है। अर्जी खारिज करने की वैधता की चुनौती याचिका कोर्ट ने खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा पुनरीक्षण याचिका पर आदेश के पूर्व याची की कानूनी संघर्ष यात्रा को देखना जरूरी है।
कोर्ट ने कहा याची अक्टूबर 2007 में योगी आदित्यनाथ तत्कालीन सांसद गोरखपुर के खिलाफ हाईकोर्ट आया कि हुए अपराध की प्राथमिकी दर्ज की जाय। कोर्ट ने कहा अधीनस्थ अदालत में धारा 156(3) में एफ आई आर दर्ज करने की अर्जी दे। सी जे एम ने अर्जी खारिज कर दी। याची ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने सी जे एम का आदेश रद करते हुए प्राथमिकी दर्ज कर विवेचना का निर्देश दिया। 2 नवम्बर 2008 को गोरखपुर के कैंट थाने में प्राथमिकी दर्ज हुई। योगी सहित पांच लोग आरोपित किए गए। योगी इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए किंतु राहत नहीं मिली। इसके बाद याची ने सही विवेचना के लिए अन्य एजेंसी को जांच सौंपने की मांग में हाईकोर्ट में याचिका दायर की। आरोप लगाया कि योगी के भाषण की डी वी डी व कंपैक्ट डिस्क की फोरेंसिक जांच सही नहीं कराई गई। जो उसने कोर्ट में पेश की थी। उसकी जांच न कराकर फर्जी डी वी डी व कंपैक्ट डिस्क जांच के लिए लैब भेजा गया। इसी दौरान शासन ने योगी के खिलाफ अभियोग चलाने की अनुमति देने से इंकार कर दिया। सी बी सी आई डी ने फाइनल रिपोर्ट पेश की।
अंततः कोर्ट ने जांच प्रक्रिया सही मानी और याचिका खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने भी हस्तक्षेप नहीं किया। इसके बाद प्रोटेस्ट अर्जी में अभियोग चलाने से इंकार आदेश पर सवाल खड़े किए गए। विशेष अदालत ने अर्जी खारिज कर दी। कहा अभियोग चलाने के राज्य शासन के इंकार के मुद्दे पर वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सुनवाई नहीं कर सकती। जिसे चुनौती दी गई थी।
अपर महाधिवक्ता ने याची की संलिप्तता पर सवाल खड़े किए। कहा उस पर गम्भीर अपराध के केस हैं। सोसल वर्कर नहीं कह सकते। कुछ ताकतें हैं जो मुख्यमंत्री योगी और प्रदेश का उनके द्वारा किया जा रहा विकास नहीं देखना चाहती। याची को ऐसी ताकतों का संरक्षण है। ताकतें प्रदेश की प्रगति को डिरेल करना चाहती हैं। याची ऐसी ताकतों का मुखौटा है। जिस पर कोर्ट ने राज्य पर इसकी जांच छोड़ते हुए विशेष अदालत के आदेश पर हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया।