जिंदगी सुबह होती है रात होती है हर दिन यूँ ही खुली किताब होती है: डॉ. शंकर सुवन सिंह

जिंदगी सुबह होती है रात होती है हर दिन यूँ ही खुली किताब होती है: डॉ. शंकर सुवन सिंह

सुबह होती है रात होती है|

हर दिन यूँ ही खुली किताब होती है|

किताब के हर पन्ने पे,वही अध्याय होता है|

हर अध्याय में,वही दैनिक दिनचर्या होती है|

सुबह होती है,रात होती है|

हर दिन यूँ ही खुली किताब होती है|

वक़्त न जाने किस मोड़ पे,किताब की जगह कॉपी दे दे|

सारे कर्मों का लेखा जोखा भरना पड़े|

और वो हिसाब दे दे|

सुबह होती है रात होती है|

हर दिन यूँ ही खुली किताब होती है|

मुर्दाओं की बस्ती में,जिंदगी तरसती है|

यहां हर एक चीज,जीवन से सस्ती है|

सुबह होती है,रात होती है|

हर दिन यूँ ही खुली किताब होती है ||

लेखक/कवि

डॉ. शंकर सुवन सिंह

वरिष्ठ स्तम्भकार,विचारक एवं कवि

असिस्टेंट प्रोफेसर

शुएट्स,नैनी,प्रयागराज(उत्तर प्रदेश)