ईश की अद्वितीय कृति : प्रकृति :डॉ. रीना रवि मालपानी

ईश की अद्वितीय कृति : प्रकृति :डॉ. रीना रवि मालपानी

निहारो भोर का उजियारा और सूर्य की लालिमा।

प्रफुल्लित हो उठेगी सहर्ष ही अंतरात्मा।।

सुनहरी धूप और साँझ की अनुपम घटा।

अंबर में फैली चहु ओर बादलों की अनुपम छटा।।

फूलों ने फैलायी हर ओर मनमोहक सुगंध।

प्रकृति का अनुपम सौन्दर्य है सबके लिए उपलब्ध।।

वर्षा देती प्रकृति को यौवन का आवरण।

एकांत में अनुभव करे प्रकृति के संग कुछ सुखद क्षण।।

इंद्रधनुष की छायी नभ में अनुपम बाहर।

प्रकृति है मानव को ईश का अमूल्य उपहार।।

नदियाँ करती कल-कल का सुमधुर गीत।

कितना आकर्षक है यह कुदरत का संगीत।।

प्रकृति है ईश्वर की अनूठी कलाकृति।

अद्वितीय रचनात्मकता से बनी हर आकृति।।

सजीव एवं निर्जीव को समान रूप से समाहित करती प्रकृति।

विकास की अंधी दौड़ में मानव न दे इसको विकृति।।

झीलों-झरनों से गिरता हुआ जल।

कितना है मनोरम जो करता मन को निर्मल।।

पद्यपुराण में वर्णित है नदी किनारों पर लगाए वृक्ष।

उतना ही मजबूत होगा आपका स्वर्ग में आनंद का पक्ष।।

आसमां को जीवंत बनाती पंक्षियों की स्वच्छंद उड़ान।

डॉ. रीना कहती प्रकृति की निःशुल्क अद्भुत धरोहर का करें सदैव सम्मान।।