वसंत पंचमी: आस्था के रंगों की पंचमी

(वसंत पंचमी/26 जनवरी विशेष) आस्था के रंगों की पंचमी

वसंत पंचमी: आस्था के रंगों की पंचमी

देशभर में माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी धूमधाम से वसंत पंचमी के रूप में मनाई जाती है। दरअसल माना जाता है कि यह दिन वसंत ऋतु के आगमन का सूचक है। वैदिक पंचांग के अनुसार इस साल ‘वसंत पंचमी’ 26 जनवरी को मनाई जाएगी। मान्यता है कि इस दिन शरद ऋतु की विदाई होती है और वसंत ऋतु के आगमन के साथ समस्त प्राणियों में नवजीवन एवं नवचेतना का संचार होता है। वातावरण में चहुं ओर मादकता का संचार होने लगता है तथा प्रकृति के सौन्दर्य में निखार आने लगता है।

शरद ऋतु में वृक्षों के पुराने पत्ते सूखकर झड़ जाते हैं लेकिन वसंत की शुरुआत के साथ ही पेड़-पौधों पर नई कोंपले फूटने लगती हैं। आमों में बौर आ जाते हैं। चारों ओर रंग-बिरंगे फूल खिल जाते हैं और फूलों की सुगंध से चहुं ओर धरती का वातावरण महकने लगता है। खेतों में गेहूं की सुनहरी बालें, स्वर्ण जैसे दमकते सरसों के पीले फूलों से भरे खेत, पेड़ों की डालियों पर फुदकती कोयल की कुहू-कुहू, फूलों पर भौंरों का गुंजन और रंग-बिरंगी तितलियों की भाग-दौड़, वृक्षों की हरियाली वातावरण में मादकता का ऐसा संचार करते हैं कि उदास से उदास मन भी प्रफुल्लित हो उठता है। वसंत पंचमी के ही दिन होली का उत्सव भी आरंभ हो जाता है और इस दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है।

वसंत पंचमी का महत्व कुछ अन्य कारणों से भी है। साहित्य और संगीत प्रेमियों के लिए तो वसंत पंचमी का विशेष महत्व है क्योंकि यह ज्ञान और वाणी की देवी सरस्वती की पूजा का पवित्र पर्व माना गया है। बच्चों को इसी दिन से बोलना या लिखना सिखाना शुभ माना गया है। संगीतकार इस दिन अपने वाद्य यंत्रों की पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन विद्या और बुद्धि की देवी मां सरस्वती अपने हाथों में वीणा, पुस्तक व माला लिए अवतरित हुई थी। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में इस दिन लोग विद्या, बुद्धि और वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा-आराधना करके अपने जीवन से अज्ञानता के अंधकार को दूर करने की कामना करते हैं। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने वसंत पंचमी के दिन ही प्रथम बार देवी सरस्वती की आराधना की थी और कहा था कि अब से प्रतिवर्ष वसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा होगी तथा इस दिन को मां सरस्वती के आराधना पर्व के रूप में मनाया जाएगा।



प्राचीन मान्यता है कि इसी दिन कामदेव और रति ने पहली बार मानव हृदय में प्रेम की भावना का संचार कर उन्हें चेतना प्रदान की थी ताकि वे सौन्दर्य और प्रेम की भावनाओं को गहराई से समझ सकें। इस दिन रति पूजा का भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि कामदेव ने वसंत ऋतु में ही पुष्प बाण चलाकर समाधिस्थ भगवान शिव का तप भंग करने का अपराध किया था, जिससे क्रोधित होकर उन्होंने अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से कामदेव को भस्म कर दिया था। बाद में कामदेव की पत्नी रति की प्रार्थना और विलाप से द्रवित होकर भगवान शिव ने रति को आशीर्वाद दिया कि उसे श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में अपना पति पुनः प्राप्त होगा।



कहा जाता है कि वसंत पंचमी के दिन का स्वास्थ्य वर्षभर के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। अतः इस पर्व को स्वास्थ्यवर्द्धक एवं पापनाशक भी माना गया है। वसंत पंचमी को गंगा का अवतरण दिवस भी माना जाता है। वसंत पंचमी को ‘श्री पंचमी’ भी कहा गया है। माना जाता है कि इसी दिन गंगा मैया प्रजापति ब्रह्मा के कमंडल से निकलकर भगीरथ के पुरखों को मोक्ष प्रदान करने और समूची धरती को शस्य श्यामला बनाने के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं। इसलिए धार्मिक दृष्टि से वसंत पंचमी के दिन गंगा स्नान करने का बहुत महत्व माना गया है।