योगी सरकार में टीकाकरण को मिली रफ्तार तो खत्म हुआ जापानी इंसेफलाइटिस का खौफ

योगी सरकार में टीकाकरण को मिली रफ्तार तो खत्म हुआ जापानी इंसेफलाइटिस का खौफ

योगी सरकार में टीकाकरण को मिली रफ्तार तो खत्म हुआ जापानी इंसेफलाइटिस का खौफ

लखनऊ, 10 सितंबर । कभी पूर्वांचल में बच्चों के लिए काल बन चुका जापानी इंसेफलाइटिस (जेई) आज पूरी तरफ से खात्मे की कगार पर है। इसका क्रेडिट उस रणनीति को जाता है, जो 2017 में प्रदेश की सत्ता संभालने के बाद सीएम योगी ने लागू की। पूर्वांचल को जेई के प्रकोप से बचाने के लिए सीएम योगी ने फूल प्रूफ रणनीति पर काम किया। सीएम योगी के मार्गदर्शन में पूरे दृढ़ संकल्प के साथ जेई के खिलाफ रणनीति बनाई गई और इसे अंतरविभागीय समन्वय के साथ क्रियान्वित किया गया। स्वास्थ्य विभाग की हर गतिविधि की निगरानी की गई। विभाग को शत-प्रतिशत टीकाकरण के निर्देश दिए गए। दस्तक अभियान के जरिये लोगों को जेई टीकाकरण के प्रति जागरूक किया गया। यही नहीं, पिछले तीन वर्षों में पूर्वांचल समेत पूरे प्रदेश में शिशुओं को जेई-1 और जेई-2 के करीब 2 करोड़ टीके की डोज दी गयी। इसका नतीजा यह रहा कि आज पूर्वांचल जेई से मुक्त हो चुका है। पहले इस बीमारी के कारण परिवारों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता था, लेकिन आज लोगों में न ही बीमारी का कोई खौफ है और न ही इसके इलाज पर होने वाले खर्च का।

जेई टीकाकरण के प्रति जागरूक करने के लिए 1.70 आशा बहनों को किया गया प्रशिक्षित

चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सचिव डॉ. पिंकी जोवल ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश की कमान संभालते ही संचारी रोग जापानी इंसेफलाइटिस (जेई) के खात्मे के लिए शत-प्रतिशत टीकाकरण के निर्देश दिये। साथ ही लोगों को जेई टीकाकरण के प्रति जागरूक करने के लिए आशा बहनों को प्रशिक्षित कर घर-घर (डोर टू डोर) कैंपेन के निर्देश दिये। सचिव ने बताया कि सीएम योगी के निर्देश पर 1.70 लाख से अधिक आशा बहनों को प्रशिक्षण दिया गया। वहीं दस्तक अभियान के तहत एक वर्ष में तीन बार डोर टू डोर कैंपेन के जरिये जेई के कारण, उपाय, उपचार का महत्व एवं टीकाकरण के प्रति लोगों को जागरूक किया गया, ताकि लोग टीकाकरण के लिए आगे आएं। आशा बहनों ने करीब 4 करोड़ घरों में दस्तक अभियान के तहत व्यक्तिगत संवाद किया। सीएम योगी के प्रयासों को नतीजा रहा कि जेई के टीकाकरण से पीछे हटने वाले लोग आगे आए। वर्ष 2023-24 में योगी सरकार ने जेई- 1 के लिए 34,64,174 टीकाकरण का लक्ष्य रखा, जिसके सापेक्ष 33,85,506 टीके लगाये गये। इसी तरह वर्ष 2022-21 में जेई- 1 के लिए 34,59,417 टीकाकरण का लक्ष्य रखा, जिसके सापेक्ष 33,78,189 टीके लगाये गये, जबकि वर्ष 2021-22 में 34,43,938 टीकाकरण के लक्ष्य के सापेक्ष 28,40,827 टीके की डोज लगायी गयी। इस वर्ष कोरोना महमारी की वजह से टीकाकरण कुछ धीमा रहा।

मृत्यु दर में 99 प्रतिशत तक दर्ज की गयी गिरावट

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के जीएम डॉ. मनोज शुक्ला ने बताया कि वर्ष 2023-24 में योगी सरकार ने जेई- 2 के लिए 32,63,507 टीकाकरण का लक्ष्य रखा, जिसके सापेक्ष 31,02,741 टीके लगाये गये। इसी तरह वर्ष 2022-21 में जेई- 2 के लिए 32,59,026 टीकाकरण का लक्ष्य रखा, जिसके सापेक्ष 30,67,275 टीके लगाये गये जबकि वर्ष 2021-22 में 32,45,949 टीकाकरण के लक्ष्य के सापेक्ष 23,82,369 टीके की डोज लगायी गयी। इस वर्ष कोरोना महमारी की वजह से टीकाकरण कुछ धीमा रहा। उन्होंने बताया कि सीएम योगी के प्रयासों का ही नतीजा है कि वर्ष 2023 में दिमागी बुखार से होने वाली मृत्यु दर महज 1.23 प्रतिशत ही दर्ज की गयी है जबकि वर्ष 2017 में मृत्यु दर 13.87 प्रतिशत थी। विशेषज्ञों की मानें तो योगी सरकार ने दिमागी बुखार से होने वाली मृत्यु दर में रिकॉर्ड 99 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज की है। इसी का असर है कि सात वर्षों में एईएस और जेई की मृत्यु दर में 12.64 प्रतिशत की गिरावट की दर्ज की गई है।

टीकाकरण के कारण जेई से मृत्यु पर लगी लगाम

गोरखपुर के मुख्य चिकित्साधिकारी डाॅ. आशुतोष कुमार दुबे ने बताया कि जापानीज इंसेफेलाइटिस से बचाव के लिए नियमित टीकाकरण कार्यक्रम के तहत जेई टीकाकरण कराया जा रहा है। पिछले छह सात वर्षों में नियमित टीकाकरण कार्यक्रम के दौरान इस टीके को लगाने के लिए कई विशेष अभियान भी चलाए गए। इसका असर यह रहा कि जापानीज इंसेफेलाइटिस के मामले साल दर साल कम हुए। सबसे खास बात यह रही कि इस बीमारी से होने वाली मृत्यु शून्य तक पहुंच गई है। पिछले वर्ष इससे कोई मृत्यु नहीं हुई। इस वर्ष भी स्थिति नियंत्रण में है।

छूट गया है तो पंद्रह वर्ष तक लग सकता है टीका

जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ. नंदलाल कुशवाहा ने बताया कि जापानीज इंसेफेलाइटिस से बचाव का टीका बच्चों को दो बार लगाया जाता है। पहली बार टीकाकरण नौ से बारह माह की उम्र में होता है। वहीं दूसरी बार टीकाकरण सोलह से चौबीस माह की उम्र में होता है। अगर किसी का शिशु इस टीके से वंचित रह गया है तो उसे पंद्रह वर्ष की उम्र से पहले कभी भी यह टीका लगाया जा सकता है।