'द कश्मीर फाईल्स' ने सच को उजागर किया
मृत्युंजय दीक्षित
कोरोना महामारी का दौर हल्का हो जाने के बाद भारतीय फिल्म उद्योग जगत में भी हलचल दिखने लगी है। विगत दो वर्षो से कोई भी फिल्म थिएटर में रिलीज नहीं हो पा रही थी, अब सिनेमा जगत की रौनक लौट रही है। फिल्में बड़े पर्दे पर रिलीज़ हो रही हैं, दर्शक भी सिनेमाघरों में वापस आने लगे हैं।
11 मार्च को देशभर के कुछ ही सिनेमाघरों में रिलीज हुई “द कश्मीर फाईल्स” अब बहुत बड़ी फिल्म बन चुकी है। विश्वव्यापी प्रशंसा के साथ फिल्म ने कमाई का नया रिकॉर्ड भी बना लिया है। यह फिल्म कश्मीर में हिंदुओं पर हुए भीषणतम अत्याचारों की मार्मिक कहानी है। फिल्म ने एक ऐसा सच उजागर कर दिया है जिसे आज तक पूरी ताकत के साथ छुपाया जाता रहा है लेकिन कहा जाता है कि सत्य को बहुत दिनों तक छुपाया नहीं जा सकता। सत्य एक न दिन बाहर आ ही जाता है। इस फिल्म ने काम कर दिखाया है।
विवेक अग्निहोत्री की इस फिल्म देखने के लिये पूरा देश सिनेमाघरों में उमड़ पड़ा है। फिल्म ने अपनी लागत से 20 गुना कमाई करने वाली फिल्म 'जय संतोषी मां' का रिकार्ड तोड़ दिया है। लेकिन वह फिल्म भी सिर्फ नौ दिनों में कमाई के 10 गुना कारोबार तक नहीं पहुंच पाई, यह फिल्म अब बहुत तेजी से लोकप्रियता का शिखर छू रही है। इस फिल्म ने दूसरी आने वाली फिल्मों पर भी दबाव बना दिया है। 'द कश्मीर फाईल्स' ने सिनेमा जगत के लिये एक लकीर खींच दी है। मीडिया की जो सेकुलर जमात इन हृदयविदारक घटनाओं पर मौन थी, उसे अब इस फिल्म और कश्मीर की घटनाओं की कहानी पर घंटों चर्चा करनी पड़ रही है।
अब मीडिया कश्मीरी पंडितों के साथ घटी घटनाओं का सच खोज रहा है और उसे दिखाने का साहस भी जुटा पाया है। नहीं तो अभीतक यही धारणा थी कि कश्मीर में कुछ हुआ ही नहीं और सभी कश्मीरी पंडित अपनी स्वेच्छा से पलायन कर गये। लेकिन अब सच उजागर हो चुका है। फिल्म के दृश्यों को देखकर आंखों में आंसू भी आ रहे हैं और सवाल भी कि आखिर उस समय जो अत्याचार हो रहे थे, उस समय की सरकारों ने कार्रवाई क्यों नहीं की? आज 'द कश्मीर फाईल्स' का विरोध वही लोग विरोध कर रहे हैं जो लोग अबतक वहां के सच को छुपाते रहे हैं और अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकते रहे हैं।
आज इस फिल्म को देशव्यापी जनसमर्थन मिल रहा है। फिल्म के माध्यम से राष्ट्रवाद की एक नयी बयार चल पड़ी है। बहुत से लोग पूरा का पूरा सिनेमाघर ही बुक कराकर लोगों को दिखाने के लिए ले जा रहे हैं। लोग पूरे परिवार के साथ यह फिल्म देख रहे हैं और पंडितों के कश्मीर से दर्दनाक पलायन के कारण को समझ रहे हैं। युवा, महिलाएं, बुजुर्ग समाज के हर वर्ग के लोग यह फिल्म देखने के लिए समय निकाल रहे हैं और दूसरे लोगों को प्रेरित कर रहे हैं। एक प्रकार से यह फिल्म जनमानस की फिल्म बन गयी है, जिसे फिल्म इतिहास के पन्नों में हमेशा याद रखा जायेगा। फिल्म की लोकप्रियता ने सभी रिकार्ड तोड़ दिये हैं। कई राज्यों ने जनता को सच दिखाने के लिए फिल्म को को टैक्स फ्री कर दिया है।
सेकुलर गैंग फिल्म को बिना देखे तिलमिला गया है। जब एक फिल्म देखकर यह गैंग तिलमिला गया है तो उससे यह साफ हो जाता है कि कश्मीर में पंडितों के साथ जो अत्याचार हुए थे, उसे इन दलों और तत्वों का समर्थन व सहयोग भी हासिल था। 'द कश्मीर फाइल्स' को देखे बिना ही जब शिवसेना जैसे दलों के नेता भी फिल्म के खिलाफ बयान देते हैं तो उन लोगों पर गहरा शक हो जाता है। शिवसेना जैसे दल जो कभी हिंदू हित की बातें करते थे और सदन के अंदर व बाहर धारा- 370 को हटाने की मांग करते थे, वही लोग आज कह रहे हैं कि इस फिल्म से नफरत की आग बढ़ रही है। यह दल अपने वोट व सरकार बचाकर रखने के लिए नीचता पर उतर आये हैं।
यह सेकुलर गैंग एक के बाद एक जो बयान दे रहा है उससे यह भी साबित हो गया है कि यह गैंग हिंदू सनातन संस्कृति से कितनी नफरत करता है। एक कांग्रेसी सांसद ने कहा कि अगर 'कश्मीर फाईल्स' बन सकती है तो गुजरात फाईल्स क्यों नहीं बन सकती। उप्र के समाजवादी नेता अखिलेश यादव ने कहा कि लखीमपुर फाईल्स भी बननी चाहिए। वहीं, कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार के लिए जिम्मेदार फारूख अब्दुल्ला ने कहा कि अब समय आ गया है कि देश के सभी मुसलमान एकजुट हो जायें। आज हिजाब से लेकर 'द कश्मीर फाईल्स' तक और फिर गुजरात-कर्नाटक में गीता पढ़ाने से लेकर हर विषय पर अपनी विकृत मानसिकता का परिचय देकर समाज में खुद जहर घोल रहे हैं।
यह वही लोग हैं जिन्होंने जनवरी 1990 में चुप्पी साध ली थी और आज विरोध कर रहे हैं और आरोप लगा रहे हैं कि इस फिल्म के कारण समाज में नफरत फैल रही है। जबकि यह फिल्म सच्चाई का एक आईना है जो अभी भी पूरा नहीं दिखाया गया है। जब पूरा का पूरा सच सामने आ जायेगा तब सेकुलर गैंग का क्या होगा? आज इस फिल्म के माध्यम से देश में एक नयी जन जागृति पैदा हो रही है और देश का जनमानस कश्मीरी पंडितों के साथ अत्याचार करने वालों को फांसी की सजा देने की मांग तक कर रहा है।
फिल्म के निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री का कहना है कि 'द कश्मीर फाईल्स' संवदेनशीलता, मानवाधिकार और नरसंहार के खिलाफ अलग-अलग विचारधारा के लोगों को एक मंच पर लाने में सफल रही है। फिल्म का वही लोग विरोध कर रहे हैं जो केवल आधा सच जानते हैं। वही लोग विवाद की भी जड़ हैं। आज 32 सालों के बाद फिल्म के माध्यम से नरसंहार का सच सामने आया है। यह फिल्म बनने से पहले हर घटना पर पूरी तरह से शोध किया गया है। पीड़ित पक्षों से मिलकर कहानी बनायी गयी जो पूरी तरह से सत्य घटनाओं पर आधारित है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)