शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने किया धर्म न्यायालय का गठन

शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने किया धर्म न्यायालय का गठन

शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने किया धर्म न्यायालय का गठन

—सरकारों से माॅग,धार्मिक मामलों के लिए अलग धर्म न्यायालय स्थापित हो

महाकुंभ नगर,26 जनवरी (हि.स.)। ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती ने रविवार को प्रयागराज महाकुंभ में धर्म न्यायालय का गठन किया। अपने शिविर में आयोजित परमधर्म संसद में धर्म न्यायालय की आवश्यकता विषयक चर्चा में भाग लेते हुए शंकराचार्य ने धर्म न्यायालय के गठन के लिए परमधर्मादेश जारी किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि कोई समय था जब हमारे देश में न राज्य था, न राजा। न दण्ड था न दाण्डिक न्यायाधीश। धर्म सबके जीवन में था जिससे सारे समाज की परस्पर रक्षा हो जाती थी। समय बदला तो दुष्ट बलवानों ने निर्बलों को सताना शुरू किया। ऐसे में न्यायालयों की आवश्यकता पड़ी, राजा की आश्यकता हुई। इससे जनता को तात्कालिक रूप से लाभ हुआ पर धीरे-धीरे उसमें भी संवेदनशीलता की कमी आने लगी और आज वह न्याय कम और प्रोसीजर ज्यादा हो गया है। ऐसा हम नहीं उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश ने ही कहा है।



शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि समय-समय पर अलग-अलग सन्दर्भों में विधि विशेषज्ञों ने बताया है कि संविधान की धारा 14 धारा 25 के ऊपर अधिमान नहीं पानी चाहिए। अदालतों को यह तय नहीं करना चाहिए कि धर्म के आवश्यक तत्व क्या हैं? । यह भी कि न्यायालयों को धार्मिक अभ्यासों व परम्पराओं में तब तक कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जब तक कि वह किसी बुराई अथवा शोषण प्रक्रिया को बढ़ावा न दे रही हों। संविधान की धारा 26 बी के अनुसार धार्मिक क्रियाओं के सम्पादन के अधिकार में अदालतों को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। साथ ही धर्म सम्बन्धित लाखों मुकदमे देश की न्यायालयों में लम्बे समय से लम्बित चल रहे हैं। उन्होंने घोषित किया कि भारतीय न्यायालयों के भार को कम करने, उन्हें आवश्यकता पर धार्मिक विशेषज्ञता उपलब्ध कराने और धार्मिक मामलों को धार्मिक गहराई के साथ निर्णीत कराने के उद्देश्य से व्यक्तिगत स्तर पर एक धार्मिक न्यायालय का गठन किया जाता है और भारत के उच्चतम न्यायालय से भी अनुरोध किया जाता है कि परिवार न्यायालय की तरह एक धर्म न्यायालय भी आरम्भ करें, जहाँ धार्मिक मामलों का निपटारा हो सके। धर्म संसद में विषय स्थापना साध्वी पूर्णाम्बा ने किया। विषय विशेषज्ञ के रूप में डॉ अनिल शुक्ल, एस के द्विवेदी, रमेश उपाध्याय ने चर्चा में भाग लिया। इस दौरान स्वामी श्रीमज्ज्योतिर्मयानन्द के साथ सन्त गोपालदास भी उपस्थित रहे।