कर्मचारी के ड्यूटी से इतर किए गए अपराध पर सरकार से अभियोजन की स्वीकृति जरूरी नहीं : हाईकोर्ट

कर्मचारी के ड्यूटी से इतर किए गए अपराध पर सरकार से अभियोजन की स्वीकृति जरूरी नहीं : हाईकोर्ट
प्रयागराज, 18 जून। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि लोक सेवक को आपराधिक षड्यंत्र, दुराचार, कदाचार, अनुचित लाभ लेने जैसे अपराध का अभियोग चलाने की सरकार से अनुमति जरूरी नही है। बिना अनुमति लिए मुकदमा चल सकता है। 
 
कोर्ट ने कहा कि ड्यूटी से इतर किए गए अपराध की सरकार से अभियोजन की स्वीकृति लेना जरूरी नहीं है। फैसले में कोर्ट ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 का संरक्षण, लोक सेवक को पद दायित्व निभाने के दौरान हुए अपराधों तक ही प्राप्त है।
 
यदि सरकार ने अभियोग चलाने की मंजूरी दे दी है तो ऐसे आदेश के खिलाफ अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट में याचिका पोषणीय नहीं है। आरोपी को विचारण न्यायलय में अपनी आपत्ति दाखिल करने का अधिकार है। इस अधिकार का इस्तेमाल कोर्ट के आरोप पर संज्ञान लेते समय या आरोप निर्मित करते समय किया जा सकता है। यहां तक कि अपील पर भी यह आपत्ति की जा सकती है। कोर्ट को सरकार की अभियोजन चलाने की अनुमति की वैधता पर निर्णय लेने का अधिकार है। कोर्ट साक्ष्य के आधार पर देखेगी कि अपराध का सम्बंध कर्तव्य पालन से जुड़ा है या नहीं।
 
यह फैसला न्यायमूर्ति एस पी केशरवानी तथा न्यायमूर्ति आर एन तिलहरी की खंडपीठ ने बेसिक शिक्षा विभाग आगरा के वित्त एवं लेखाधिकारी कन्हैया लाल सारस्वत की याचिका पर दिया है।
 
मालूम हो कि एक सहायक अध्यापक के विरूद्ध शिकायत की जांच बैठायी गयी और उसे निलम्बित कर दिया गया। तीन माह बाद भी विभागीय जांच पूरी नहीं हुई तो उस टीचर ने बीएसए को निलम्बन भत्ते का भुगतान 75 फीसदी करने की अर्जी दी।
 
याची ने आदेश दिलाने के लिए घूस मांगा। अध्यापक ने पचास हजार घूस लेते विजिलेंस टीम से रंगे हाथ पकड़वा दिया। विजिलेंस टीम ने अभियोजन चलाने की सरकार से अनुमति मांगी। जिसे अस्वीकार करते हुए सरकार ने सीबीसीआईडी को जांच सौंपी। सीबीसीआईडी ने चार्जशीट दाखिल की और कोर्ट ने संज्ञान भी ले लिया। इसके बाद सरकार से अभियोजन की अनुमति भी मिल गयी। इस आदेश को चुनौती दी गयी थी।
 
कोर्ट ने याचिका पोषणीय न मानते हुए खारिज कर दी और कहा कि याची सरकार की अभियोजन की अनुमति आदेश पर विचारण न्यायालय में आपत्ति कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि पद दायित्व निभाने के दौरान हुए अपराध मे  संरक्षण प्राप्त है कि सरकारी अनुमति से ही अभियोजन चलाया जाय। ड्यूटी से इतर अपराध किया जाता है तो अभियोजन की अनुमति लेना जरूरी नहीं है।