जीवनसाथी के साथ लम्बे समय तक यौन सम्बंध बनाने की अनुमति न देना मानसिक क्रूरता

हाईकोर्ट ने इसे पति-पत्नी के बीच विवाद विच्छेद का आधार माना

जीवनसाथी के साथ लम्बे समय तक यौन सम्बंध बनाने की अनुमति न देना मानसिक क्रूरता

प्रयागराज, 26 मई (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिना किसी आधार के जीवन साथी के साथ लम्बे समय तक यौन सम्बंध बनाने की अनुमति न देने को मानसिक क्रूरता माना है। कोर्ट ने इसे आधार मानते हुए वाराणसी के दम्पत्ति के विवाह विच्छेद की अनुमति दे दी।

यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार चतुर्थ की खंडपीठ ने वाराणसी के रविंद्र प्रताप यादव की ओर से दाखिल अपील को स्वीकार करते हुए दिया। वाराणसी पारिवारिक न्यायालय ने याची की विवाह विच्छेद की अर्जी को खारिज कर दिया था।

याची ने उसे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। याची की शादी 1979 में हुई थी। शादी के कुछ समय के बाद पत्नी का व्यवहार और आचरण बदल गया। उसने पत्नी के रूप में रहने से इंकार कर दिया था। आग्रह के बावजूद पति से दूर ही रही और आपसी सम्बध नहीं बने। जबकि, दोनों एक ही छत के नीचे रहते थे। कुछ दिन बाद पत्नी मायके चली गई। पति ने उसे घर चलने के लिए कहा तो वह मानी नहीं। 1994 में गांव में पंचायत कर 22 हजार रुपये गुजारा भत्ता देने के बाद आपसी तलाक हो गया। पत्नी ने बाद में दूसरी शादी कर ली। पति ने तलाक देने की मांग की लेकिन वह अदालत गई ही नहीं। पारिवारिक न्यायालय ने पति की तलाक अर्जी को खारिज कर दिया।