महाकुम्भ : दूसरे अमृत स्नान के लिये अखाड़ों में बढ़ी हलचल, रात भर जागेंगे साधु-संन्यासी

महाकुम्भ : दूसरे अमृत स्नान के लिये अखाड़ों में बढ़ी हलचल, रात भर जागेंगे साधु-संन्यासी

महाकुम्भ : दूसरे अमृत स्नान के लिये अखाड़ों में बढ़ी हलचल, रात भर जागेंगे साधु-संन्यासी

महाकुम्भ नगर, 28 जनवरी (हि.स.)। तीर्थों की तीर्थ प्रयागराज के संगम तट से लगभग तीन किलोमीटर दूर कल-कल करती गंगा की धारा को पार करते ही शुरू होता है अखाड़ों का साम्राज्य। राजर्षि आभा, रहस्य, शक्ति के बीच गंगा-यमुना सरस्वती की त्रिवेणी का ऐसा जीवंत क्षेत्र, जहां रेत के एक कण मात्र के स्पर्श से भाग्योदय की मान्यता है। मौनी अमावस्या के दिन होने वाले दूसरे अमृत स्नान से पूर्व संध्या का वैभव अपने पूर्ण रूप में आ चुका है।

अखाड़ों के बाहर हलचल तेज हो गई है। अखाड़ों के भव्य द्वारों से गाड़ियां लगातार अंदर और बाहर आ और जा रही हैं। ऐसा लगता है कि सभी के पास समय का अभाव है। यहां मंगलवार की पूरी रात नागा संन्यासी नहीं सोएंगे। श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के सचिव महंत यमुना पुरी ने कहा कि, अमृत स्नान की तैयारियां चल रही हैं। अखाड़े में अमृत स्नान को लेकर उत्साह है। हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत करते हुए, वो अमृत स्नान के लिए आवश्यक दिशा निर्देश देना नहीं भूल रहे थे। अखाड़े में चारों ओर गहमागहमी का माहौल है। अमृत स्नान की तैयारी में छोटी से छोटी तैयारी पर महंत यमुना पुरी जी नजर बनाए हुए हैं।

श्री शंभू पंचायती अटल अखाड़ा में बैनर छपकर आ चुके हैं, उस पर हल्दी का टीका कर रहे महंत ने अपनी तैयारियों का जिक्र किया। बोले-अमृत स्नान के लिए हम बहुत लालायित हैं। हर किसी को उनकी जिम्मेदारी सौंप दी गई है। घोड़े तैयार किए जा रहे हैं। योग्यता के अनुरूप नागाओं को अलग-अलग जिम्मेदारी दी गई है। इसी अखाड़े से सटे हुए दशनाम नागा संन्यासी श्री पंचायती अखाडा निर्वाणी का प्रवेश द्वार भीड़ से भरा है। यहां रात में धर्मध्वजा के लिए एक मंत्रोचार के बाद पवित्र धागों से बांध दी गई है।

नागाओं के शरीर के लिए अतिरिक्त राख तैयार

नागाओं ने अपने शरीर पर भस्म का लेपन शुरू कर दिया है। अतिरक्त राख तैयार की जा रही है। 24 घंटे जलती आग और यज्ञ शाला की पवित्र भस्म शिखा, जटा, मस्तक व शरीर के हर अंग को सुरक्षा कवच में बदल देगी। यही विश्वास भी उनका है। अखाड़ों की यह तैयारियां आगे भी चल रही हैं। तापोनिधि पंचायती श्री आनंद अखाड़ा से लेकर 13 अखाड़े अपनी पूर्ण शक्ति के साथ मंगलवार सुबह जब धर्मपथ पर आगे बढ़ेंगे तो यही चमकाई जा रही चांदी की पालकियां उनका आसन होंगी।

रथ और घोड़े तैयार हो चुके हैं

साज-सज्जा के बाद दिव्य रूप ले चुके घोड़ों को देखकर मंत्रमुग्धता आएगी। निर्मोही अखाड़े का प्रथम दृश्य ही मन मस्तिष्क में बनी उस छवि का भाव अचानक बदल देता है। संतों का घेरा है और सामने भगवान शिव का प्रिय अस्त्र त्रिशूल है, जिसे शक्ति, सृष्टि और विनाश का प्रतीक माना जाता है।

महाकुंभ क्षेत्र में सभी अखाड़ों में एक जैसा दृश्य है। संतों में लालसा है, मां गंगे से मिलने की, उन्हें आत्मसात करने की। इस लालसा में वर्षों बीते हैं तो अब उसे वह पूरा करना चाहते हैं। पूरी दुनिया महाकुंभ को देखना चाहती है और अखाड़ों का रहस्य, नागा संन्यासियों के पौरुष का इससे बेहतर समय और क्या होगा।

प्रमुख अखाड़े कौन-कौन से हैं?

नागा साधुओं के प्रमुख तौर पर 13 अखाड़ों को मान्यता प्राप्त है, जिसमें 7 शैव, 3 वैष्णव और 3 उदासीन अखाड़े हैं। ये सभी अखाड़े एक जैसे ही दिखते हैं पर इनकी पूजा विधि, परंपराएं और इष्टदेव अलग-अलग हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में...

जूना अखाड़ा

इस अखाड़े को शैव संप्रदाय का सबसे बड़ा अखाड़ा माना जाता है, इस अखाड़े में सबसे ज्यादा देशी और विदेशी महामंडलेश्वर हैं। इसके इष्टदेव दत्तात्रेय भगवान हैं। इस अखाड़े को एक और नाम भैरव कहा जाता है।

अटल अखाड़ा

इस अखाड़े की स्थापना 569 ईस्वी में हुई थी। इसकी मुख्य पीठ पाटन में है। साथ ही इस अखाड़े में केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों को ही दीक्षा मिलती है। इस अखाड़े की इष्टदेव भगवान गणेश हैं।

महानिर्वाणी अखाड़ा

इस अखाड़े की स्थापना 681 ईस्वी में हुई। हालांकि इसके जगह को लेकर विवाद है कुछ लोगों का कहना है कि यह अखाड़ा वैद्यनाथ धाम में बना जबकि कुछ का मानना है हरिद्वार के नीलधारी में इसकी उत्पत्ति हुई। उज्जैन के महाकालेश्वर की पूजा का जिम्मा यही अखाड़ा संभालता है। इस अखाड़े की इष्टदेव कपिल मुनि है।

आवाहन अखाड़ा

इस अखाड़े की स्थापना 646 में की गई और 1603 में इसे पुनर्संयोजित किया गया। इस अखाड़े का केंद्र काशी है। इसके इष्टदेव दत्तात्रेय और गणेश जी है। इस अखाड़े में महिला साध्वियों को शामिल नहीं किया जाता।

निरंजनी अखाड़ा

यह अखाड़ा 826 में बना, कहा जाता है कि सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे इसी अखाड़े में हैं। इसे गुजरात के मांडवी में स्थापित किया गया था। इस अखाड़े के इष्ट देव कार्तिकेय हैं।

पंचाग्नि अखाड़ा

इसकी स्थापना 1136 में हुई। इसका भी प्रमुख केंद्र काशी है। इस अखाड़े में चारों पीठों के शंकराचार्य सदस्य हैं। साथ ही इस अखाड़े में सिर्फ ब्राह्मणों को ही दीक्षा दी जाती है। इस अखाड़े की इष्टदेव माता गायत्री और अग्नि हैं।

आनंद अखाड़ा

यह एक शैव अखाड़ा है, जिसकी स्थापना 855 में एमपी के बरार में हुई थी। इस अखाड़े की खास बात है कि यहां आज तक एक भी महामंडलेश्वर नहीं बना। इस अखाड़े में आचार्य का पद ही प्रमुख माना जाता है। इसका भी अभी केंद्र काशी है। इसके इष्टदेव सूर्य देव हैं।

निर्मोही अखाड़ा

इस अखाड़े की स्थापना 1720 में स्वामी रामानंद ने की थी। वैष्णव संप्रदाय के तीनों अणि अखाड़ों में से सबसे ज्यादा अखाड़े इसी में हैं। जिनकी कुल संख्या 9 है। इनके इष्टदेव श्रीराम और श्रीश्याम (श्रीकृष्ण) हैं।

बड़ा उदासीन अखाड़ा

इसके संस्थापक चंद्राचार्य उदासीन जी हैं। इनमें सांप्रदायिक भेद हैं। इसके उद्देश्य लोगों की सेवा करना है। इसके 4 महंत होते हैं जो कभी रिटायर नहीं होते। इसके इष्टदेव चंद्रदेव हैं।

निर्मल अखाड़ा

इसकी स्थापना 1784 में हुई, श्री गुरुग्रंथ साहिब इनकी ईष्ट पुस्तक है और इष्ट देव गुरु नानक देव हैं।

नया उदासीन अखाड़ा

नया उदासीन अखाड़ा 1902 में प्रयागराज में बना, इसके इष्टदेव चंद्रदेव हैं।