मृतक आश्रित कोटे में शिक्षकों की अनुकम्पा नियुक्ति का शासनादेश रद्द

मृतक आश्रित कोटे में शिक्षकों की अनुकम्पा नियुक्ति का शासनादेश रद्द

मृतक आश्रित कोटे में शिक्षकों की अनुकम्पा नियुक्ति का शासनादेश रद्द

--शिक्षकों के रूप में नियुक्ति सर्वश्रेष्ठ प्रतिभागियों से केवल खुली एवं पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से ही किया जा सकता है--तत्काल प्रभाव से टीचर पद पर अनुकम्पा नियुक्ति के शासनादेशों को अमल में लाने पर रोक

प्रयागराज, 18 अप्रैल (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सहायक अध्यापक के पद पर अनुकम्पा नियुक्ति से सम्बंधित प्रदेश सरकार के शासनादेशों को स्वतः संज्ञान लेते हुए रद्द कर दिया है। कहा है कि यह शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (आरटीई अधिनियम) के प्रावधानों का उल्लंघन है और संवैधानिक अधिकारों के विरुद्ध है। न्यायालय ने वर्ष 2000 और 2013 के शासनादेशों के आधार पर सहायक अध्यापकों के रूप में अनुकंपा नियुक्ति का दावा करने वालों द्वारा दायर रिट याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने यह निर्णय दिया।

न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकल पीठ ने शैलेन्द्र कुमार की याचिका पर आदेश पारित करते हुए कहा, “शिक्षकों के रूप में नियुक्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं में से भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के संवैधानिक आदेश के अनुसार सार्वजनिक भर्ती की खुली और पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से ही किया जा सकता है। प्रतिस्पर्धी योग्यता के आधार पर टीचरों का चयन यह सुनिश्चित करता है कि सबसे योग्य उम्मीदवारों को शिक्षक के रूप में नियुक्त किया जाए, और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए बच्चों के अधिकारों को सफलतापूर्वक महसूस किया जाए।“ कोर्ट ने कहा कि जहां तक सरकार के आदेश अनुकम्पा के आधार पर शिक्षकों के पदों पर नियुक्ति से सम्बंधित हैं, वे डाइंग इन हार्नेस रूल्स, 1999 के नियम 5 के कानून के विपरीत हैं।

हाईकोर्ट के समक्ष विचारणीय मुद्दा था कि क्या याचिकाकर्ता को शासनादेशों के आधार पर अनुकम्पा नियुक्ति शिक्षक के रूप में नियुक्त करने के लिए परमादेश की मांग संविधान और कानून को लागू करेगी या उसके विपरीत होगी ? तथा यह कि शासनादेश भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 16 तथा अनुच्छेद 21 ए के तहत बच्चों को दिए गए शिक्षा के मौलिक अधिकार और बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 द्वारा प्रदत्त अधिकारों के अनुरूप हैं? क्या सरकारी आदेश उत्तर प्रदेश सेवाकाल में मृत सरकारी सेवकों के आश्रितों की भर्ती (पांचवां संशोधन) नियमावली, 1999 के नियम 5 के अनुरूप हैं?

हाईकोर्ट ने कहा कि “सरकारी आदेश 04 सितम्बर 2000 और 15 फरवरी 2013 जहां तक वे अनुकम्पा के आधार पर शिक्षकों के पदों पर नियुक्ति से सम्बंधित हैं, वे भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21-ए के विपरीत हैं। ये दोनों शासनादेश जहां तक वे अनुकम्पा के आधार पर शिक्षकों के पदों पर नियुक्ति से सम्बंधित हैं, वे शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा 3 का उल्लंघन करते हैं जो बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान करती है।”

फैसले में कहा गया कि इसके विपरीत, अनुकम्पा के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया बंद है और इसमें कुछ चुनिंदा लोगों को प्रवेश की अनुमति है तथा ऐसी प्रक्रिया में आम जनता की भागीदारी नहीं होती। इसके परिणामस्वरूप खुले बाजार से सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को नियुक्ति के लिए आवेदन करने से रोक दिया गया है। न्यायालय ने आगे कहा कि शिक्षक के रूप में नियुक्ति के लिए पात्रता केवल पद धारण करने या खुले चयन में भाग लेने के लिए न्यूनतम प्रारंभिक योग्यता निर्धारित करती है और यह अपने आप में योग्यता निर्धारित नहीं करती है।

कोर्ट ने कहा कि वास्तव में योग्यता निर्धारित करने की प्रक्रिया का प्रारंभिक बिंदु योग्यता है। भर्ती की संवैधानिक प्रक्रिया शिक्षकों के रूप में नियुक्ति के लिए सभी योग्य उम्मीदवारों में से सबसे अधिक योग्य का चयन करने के लिए सबसे विश्वसनीय तरीका है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि, “यदि संविधान के अनुच्छेद 21 ए के तहत बच्चों के मौलिक अधिकार को साकार करना है, तथा शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत बच्चों के अधिकारों को लागू करने के लिए राज्य के दायित्वों का ईमानदारी से निर्वहन करना है, तो दोषपूर्ण नियुक्ति प्रक्रियाओं के कारण शिक्षकों की गुणवत्ता में गिरावट और इसके परिणामस्वरूप शिक्षण के मानक में गिरावट बर्दाश्त नहीं की जा सकती।

न्यायालय ने कहा कि जो पद डाइंग इन हार्नेस रूल्स, 1999 के नियम 5 के अंतर्गत अनुकम्पा नियुक्ति के लिए मान्य नहीं हैं, उन्हें संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के अंतर्गत परिकल्पित सार्वजनिक भर्ती प्रक्रियाओं द्वारा ही भरा जा सकता है। इसलिए न्यायालय ने उक्त दोनों शासनादेशों को रद्द कर दिया, क्योंकि वे अनुकम्पा के आधार पर शिक्षकों के पदों पर नियुक्ति का प्रावधान करते हैं। कोर्ट ने याचिका को निस्तारित कर दिया।