'गदर-2' मूवी रिव्यू : दर्शकों को फीका नजर आया अनिल शर्मा का यह मसालेदार व्यंजन

'गदर-2' मूवी रिव्यू : दर्शकों को फीका नजर आया अनिल शर्मा का यह मसालेदार व्यंजन

'गदर-2' मूवी रिव्यू : दर्शकों को फीका नजर आया अनिल शर्मा का यह मसालेदार व्यंजन

जब हम कोई भी व्यंजन बनाने में माहिर होते हैं, तो उस व्यंजन की रेसिपी हमें जुबानी याद होती है, लेकिन इस बात की गारंटी कोई नहीं दे सकता कि हर बार व्यंजन पहले जैसे स्वाद की ही बनेगा। ऐसा ही कुछ हुआ है सनी देओल की बहुचर्चित ‘गदर-2’ के साथ। उसी पुराने मसाले के साथ बनाई गई ‘गदर-2’ पहले जैसा स्वाद चखने के लिए दर्शकों को सिनेमाघरों तक खींचती है, लेकिन दर्शकों को यह मसालेदार व्यंजन फीका नजर आया है। ‘गदर-2’ दर्शकों को बड़े परदे के साथ सीटों से बांधे रखने में विफल रहती है।



रिलीज होने से पहले भारतीय सेना के अधिकारियों के लिए ‘गदर-2’ का विशेष प्रीमियर रखा गया था। हम कल से सोशल मीडिया पर ये खबर सुन रहे होंगे कि इस फिल्म को देखते समय कई अधिकारियों की आंखों में आंसू आ गए। आज सिनेमाघरों में ‘गदर-2’ देखने के बाद हम सोच रहे होंगे कि इस खबर पर कैसे यकीन किया जाए, क्योंकि इस फिल्म में सिर्फ भारतीयों का ही नहीं, बल्कि पूरे रक्षा संस्थानों की कार्य प्रणाली का मजाक उड़ाया गया है। कम से कम फिल्म देखने के बाद मुझे इस बात का शिद्दत से अहसास हुआ।



जब गदर 2001 में आई थी, तब हम 1999 के कारगिल युद्ध से उबर रहे थे, इसलिए दर्शकों के मन में एक अलग जज्बा और उत्साह था। चूंकि 2023 में ऐसी कोई स्थिति नहीं है, इसलिए 1971 के भारत-पाक युद्ध के संदर्भ में प्रस्तुत ‘गदर-2’ पहले भाग की लोकप्रियता को भुनाने और निर्देशक के बेटे को लॉन्च करने की एक बेताब कोशिश लगती है।



फिल्म की कुल कहानी यह है कि तारा सिंह और सकीना का बड़ा हो चुका बेटा चरणजीत उर्फ जीते पाकिस्तान में फंस गया है और तारा सिंह उसे बचाने के लिए अपने धाकड़ अंदाज में फिर से पाकिस्तान की ओर बढ़ता है। अनिल शर्मा ने पहले ही अलग ट्विस्ट दिखाकर मूल कथानक की गंभीरता को खत्म कर दिया है। इंटरवल के बाद की फिल्म बेहद हास्यास्पद बन पड़ी है। पाकिस्तान का कट्टर रवैया, उसकी सेना का चित्रण, सेना के मुख्य अधिकारी का चित्रण, इसके अलावा भारतीय सेना का चित्रण, युद्ध के दृश्य, इन सभी चीजों को फिल्म में बहुत गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है। भले ही यह एक मसाला फिल्म हो, लेकिन कहानी और पटकथा के मामले में यह दूसरा भाग पहले भाग के आसपास भी नहीं घूमता।



सिनेमैटोग्राफी, वीएफएक्स, डायलॉग्स बहुत अच्छे से नहीं बन पाए हैं। अभिनय के मामले में भी सनी देओल को छोड़कर किसी और का काम यादगार नहीं है। फिल्म के डायरेक्टर अनिल शर्मा की बेटे उत्कर्ष शर्मा को इंडस्ट्री में दोबारा लॉन्च करने की कोशिश बुरी तरह विफल रही है। अमीषा पटेल की खूबसूरती दिखाने की गुस्ताखी हजम नहीं होती, साथ ही फिल्म में उनके पास रोने के अलावा कुछ नहीं है। यहां तक कि पाकिस्तानी सेना में एक अधिकारी की भूमिका निभाने वाले मनीष वाधवा का दांत निकालना और लगातार भारत के नाम पर पत्थर फेंकना एक सीमा के बाद असहनीय था। उत्कर्ष शर्मा और सिमरत कौर की प्रेम कहानी थोड़ी दिलचस्प लगती है।



इंटरवल के बाद फिल्म में सनी देओल के कुछ दमदार डायलॉग्स और कुछ अमेज़िंग एक्शन सीन्स के अलावा कुछ खास नहीं है। इस उम्र में भी ये एक्शन करते हुए सनी देओल को देखते रहना कितना संतुष्टिदायक लगता है। वही पुराने मसाले, कुछ एक्शन सीन और दोबारा बनाए गए और आसानी से भुलाए जा सकने वाले कुछ गानों के अलावा ‘गदर-2’ में कुछ भी नया नहीं है। जो लोग सिर्फ पुरानी यादों के लिए इस फिल्म को बड़े पर्दे पर देखना चाहते हैं, तो वे इसे एक बार जरूर देख सकते हैं।