प्रयागराज: लोकसेवा में सीबीआई ने दस्तावेजों की पड़ताल की, चयनित अभ्यर्थियों से घंटों हुई पूछताछ
लोकसेवा में सीबीआई ने दस्तावेजों की पड़ताल की, चयनित अभ्यर्थियों से घंटों हुई पूछताछ
प्रयागराज,07 जुलाई । सीबीआई ने उप्र लोकसेवा आयोग प्रयागराज की 2012 से 2016 तक की भर्ती परीक्षाओं की जांच दो दिन से अचानक तेज कर दी है। गोविंदपुर सिंचाई विभाग कॉलोनी स्थित सीबीआई के कैंप कार्यालय पर शनिवार को अपर निजी सचिव (एपीएस)-2010 के दर्जनभर चयनित अभ्यर्थी तलब किए गए। अलग-अलग कार्यालयों में कार्यरत चयनित अभ्यर्थियों से घंटों पूछताछ हुई। सीबीआई की चार सदस्यीय दूसरी टीम देर शाम तक आयोग में डटी रही। वहां एपीएस-2010 के अलावा आरओ-एआरओ-2013, लोवर-2013 व उत्तर प्रदेश प्रांतीय न्यायिक सेवा-2014, मेडिकल अफसर परीक्षा-2014 की भर्तियों में हुई गड़बड़ी को पकड़ने के लिए दस्तावेजों की छानबीन की गई।
प्रदेश की योगी सरकार ने 20 जुलाई 2017 को उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग की 2012 से 2016 तक की समस्त भर्ती परीक्षाओं व परिणामों की जांच सीबीआई से कराने की घोषणा किया था। इसको लेकर केंद्र सरकार ने 21 नवम्बर 2017 को अधिसूचना जारी कर दी थी। सीबीआई को 598 के लगभग भर्ती परीक्षाओं व परिणामों की जांच करनी है। इसमें करीब 40 हजार चयनित प्रभावित हो रहे हैं। सीबीआई ने पांच मई 2018 को पीसीएस 2015 में अज्ञात एफआईआर दर्ज करवाया। फरवरी 2019 में एपीएस-2010 भर्ती में पीई दर्ज कराई गई। इसके बाद जुलाई 2020 में आरओ-एआरओ-2013, लोवर-2013 व उत्तर प्रदेश प्रांतीय न्यायिक सेवा-2014, मेडिकल अफसर परीक्षा-2014 में पीई दर्ज किया।
सीबीआई जांच की पैरवी करने वाले प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष अवनीश पांडेय ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका भी दाखिल कर रखी है। इधर, छह अगस्त को एपीएस-2010 भर्ती में धांधली के आरोप में सीबीआई ने दिल्ली में तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक आइएएस प्रभुनाथ के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, साजिश के तहत ठगी और फर्जीवाड़ा की धाराओं में एफआइआर दर्ज करके जांच तेज कर दिया है।
कम्पयूटर में दर्ज ब्योरा की पड़ताल
सीबीआई टीम ने लोकसेवा आयोग में एपीएस-2010, उत्तर प्रदेश प्रांतीय न्यायिक सेवा-2014, मेडिकल अफसर परीक्षा-2014 आदि भर्तियों को लेकर कम्प्यूटर में दर्ज ब्योरा की पड़ताल की है। इसके अलावा अभ्यर्थियों की कापियां निकलवाकर नम्बरों का मिलान किया गया। प्रमाण पत्रों व मार्कशीट की जांच की गई।
सीबीआई जांच के बीच दी गई नियुक्ति
उप्र लोकसेवा आयोग प्रयागराज ने भर्ती में गड़बड़ी की शिकायत होने के बावजूद पहले अपर निजी सचिव (एपीएस)-2010 का परिणाम जारी कर दिया। इसके बाद सीबीआई जांच के बीच चयनितों को नियुक्ति देने की प्रक्रिया भी पूरी कर दी। इससे 222 चयनित यूपी सचिवालय में कार्यरत हैं, जबकि 28 चयनितों की नियुक्ति इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा रोक लगाने के कारण रुकी है। अगर कोर्ट न रोकती तो इन्हें भी नियुक्ति मिल गई होती।
लोकसेवा आयोग ने एपीएस 2010 के तहत 250 पदों की भर्ती निकाली थी। भर्ती की जांच कर रही सीबीआई को काफी खामियां मिली थी। इसके बावजूद चयनितों को नियुक्ति देने की प्रक्रिया नवम्बर 2019 में शुरू कर दी गई। नियुक्ति देने का क्रम 2020 तक चलता रहा। इस पर सीबीआई जांच की मांग करने वाले प्रतियोगी आयोग के खिलाफ लामबंद हो गए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित सीबीआई के वरिष्ठ अधिकारियों से शिकायत करके नियुक्ति निरस्त करने की मांग की गई।
आयोग के पूर्व अध्यक्ष पर जांच प्रभावित करने का आरोप
सीबीआई जांच की मांग करने वाले प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष अवनीश कुमार पांडेय ने लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष व मौजूदा समय कार्यरत एक अधिकारी पर सीबीआई जांच प्रभावित करने का आरोप लगाया है। कहा कि एपीएस 2010 भर्ती में सीबीआई द्वारा एफआईआर दर्ज करने के बावजूद आरोपित अधिकारियों व कर्मचारियों को बचाने का प्रयास किया गया। जरूरी दस्तावेज न देने से सीबीआई जांच प्रभावित हुई। कहा कि सीबीआई ने दिसम्बर 2020 में शासन से आयोग के तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक व आयोग से आयोग के अधिकारियों कर्मचारियों के विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति देने का अनुरोध किया था, लेकिन आयोग के पूर्व अध्यक्ष व अधिकारी ने आयोग के कर्मियों को बचाने के लिए अभियोजन स्वीकृति देने से इन्कार कर दिया। अभियोजन स्वीकृति न देने का आधार यह लिया गया कि इस भर्ती के संबंध में उच्चतम न्यायालय में एक एसएलपी विचाराधीन जिस कारण से अभियोजन स्वीकृति देना संभव नहीं है।
आयोग ने यही उत्तर तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक के मामले में भी शासन को भेजा, लेकिन शासन ने आयोग के इस आधार को निराधार पाते हुए परीक्षा नियंत्रक के विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति सीबीआई को भेज दी। इसके बाद सीबीआई ने मामले में मुकदमा दर्ज किया है। अभियोजन को स्वीकृति देने से इंकार करने का परिणाम है कि घोटाला करने वाले आयोग कर्मियों के चिह्नित होने के बावजूद सीबीआई को अज्ञात में एफआइआर दर्ज करनी पड़ी है। इसके अतिरिक्त मुकदमा दर्ज करने में सात माह का अनावश्यक विलम्ब भी हुआ है।