हाईकोर्ट ने पीड़िता को नारी निकेतन से मुक्त कर बच्ची समेत पति को सुपुर्द किया
हाईकोर्ट ने पीड़िता को नारी निकेतन से मुक्त कर बच्ची समेत पति को सुपुर्द किया
प्रयागराज, 07 दिसम्बर । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पीड़िता को उसके नवजात शिशु समेत नारी निकेतन से मुक्त कर पति को सुपुर्द करने का आदेश दिया और कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन किसी दशा में स्वीकार्य नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने इसी के साथ सेशन कोर्ट में जारी समूची प्रक्रिया एवं चाइल्ड वेलफेयर कमेटी जालौन द्वारा पारित आदेश तथा पाक्सो एक्ट के अन्तर्गत दर्ज मामले को रद्द कर दिया।
कोर्ट ने यौन अपराध शिशु संरक्षण अधिनियम 2012 के तहत दर्ज मामले को भी रद्द कर दिया है व व्यक्तिगत स्वतंत्रता को व्यक्ति का सबसे महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार बताया है। पीड़िता की मां द्वारा कोतवाली ऊरई जिला जालौन में भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 366, 376 एवं पाक्सो एक्ट के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। उसके बाद महिला को कानपुर स्थित नारी निकेतन भेजा गया था, जहां महिला ने एक पुत्री को जन्म दिया था।
अभियुक्त पर आरोप लगाया गया था कि उसने पीड़िता को बहला-फुसलाकर अपने साथ भगा ले गया था। याची अभियुक्त मनोज कुमार उर्फ मोनू कठेरिया ने धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत अर्जी दाखिल कर पुलिस चार्जशीट, कोर्ट की समूची कार्यवाही को चुनौती दी थी। जिस पर जस्टिस नीरज तिवारी की एकल पीठ ने संज्ञान लेते हुए पीड़िता और अभियुक्त को हाईकोर्ट के समक्ष पेश होने का आदेश दिया गया।
न्यायालय ने सतीश कुमार बनाम उत्तर प्रदेश सरकार एवं दो अन्य में पारित आदेश के आधार पर पीड़िता एवं शिशु को अभियुक्त (पति) को सुपुर्द किया और कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता किसी भी दशा में नहीं छीनी जा सकती है तथा महिला की इच्छा के बिना उसे नारी निकेतन में नहीं रखा जा सकता है। न्यायालय ने तथ्यों के आधार पर महिला को वयस्क मानते हुए, उसके पति को सुपुर्द किया और पास्को एक्ट के तहत दर्ज प्राथमिकी एवं चार्जशीट को रद्द कर दिया।