ज्ञानवापी परिसर में सर्वे के अन्तिम दिन शिवलिंग मिलने पर कयासबाजी का दौर

दावा किया जा रहा है कि ज्ञानवापी ही असली विश्वनाथ मंदिर है

ज्ञानवापी परिसर में सर्वे के अन्तिम दिन शिवलिंग मिलने पर कयासबाजी का दौर

वाराणसी, 16 मई । ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में एडवोकेट कमिश्नर की मौजूदगी में सर्वे के तीसरे दिन सोमवार को शिवलिंग और अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्य मिलने पर शहर में चर्चाओं का बाजार गर्म है। वादी पक्ष के पैरोकार डॉ सोहनलाल आर्य के दावे के बाद सोशल मीडिया में उनके बयान और इससे इतर भी मस्जिद को लेकर दावा किया जा रहा है कि ज्ञानवापी ही असली विश्वनाथ मंदिर है। इसके लिए लोग मंदिर के पुराने फोटो को वायरल कर अपने तर्क को वजनदार बनाने का प्रयास कर रहे हैं।

वादी पक्ष के पैरोकार डॉ. आर्य ने तीसरे दिन सर्वे के समाप्त होने पर मीडिया कर्मियों से बातचीत में दावा किया कि जिन खोजा तिन पाइयां...तो समझिए, जो कुछ खोजा जा रहा था, उससे कहीं अधिक मिला। उन्होंने बताया कि 'नंदी जिसका इंतजार कर रहे थे वह बाबा मिल गए।' उन्होंने मीडिया की ओर विजय चिह्न बनाते हुए शिवलिंग मिलने का इशारा किया तो लोगों ने उनकी बातों को गंभीरता से लिया। इसके बाद सोशल मीडिया में लोग दावा करने लगे कि असली मंदिर यहीं है।

वादी पक्ष के प्रमुख विश्व वैदिक सनातन संघ के प्रमुख जितेन्द्र सिंह बिसेन ने प्रेसवार्ता कर बताया कि अदालत से नियुक्त एडवोकेट कमिश्नर की कमीशन की कार्यवाही में लगभग बारह फीट का शिवलिंग मिला है। अब हम 50 साल इंतजार नहीं कर सकते। वहां बाबा विश्वनाथ का भव्य मंदिर बन कर रहेगा। बिसेन ने कहा कि आदि विश्वेश्वर शिवलिंग पर जल्द से जल्द भव्य मंदिर निर्माण शुरू कराना है। उन्होंने दावा किया कि ज्ञानवापी परिसर में भव्य मंदिर बनेगा।

सर्वे के दौरान शिवलिंग मिलने पर अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेन्द्रानंद ने कहा कि प्रत्यंक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता है। उन्होंने बयान जारी कर कहा कि स्वयंभू बाबा विश्वनाथ हैं। स्वयंभू ज्योर्तिलिंग है। सैकड़ों वर्षों के इस आपात परिस्थिति में ढके होने के बाद पुनः काशी और विश्व के हिन्दू समाज के सामने प्रकट हो गए तो बाबा के प्रकट होने का हर्ष प्रत्येक संत ही नहीं प्रत्येक सनातन व्यक्ति के अंदर है। स्वामी जितेन्द्रानंद ने कहा कि यदि हमारा देश लोकतांत्रिक समाज है तो बहुमत का शासन ही कानून बनाता है। तमाम कानून जैसे अनुच्छेद 370 हटायी जा सकती है, किसान कानून जो किसानों के हित में था उसको भी वापस लिया जा सकता है। तो स्पेशल प्रोविजन एक्ट 1991 को वापस लेकर काशी विश्वनाथ के मुक्ति का रास्ता क्यों नहीं साफ हो सकता है। उन्होंने मांग किया कि गैर हिन्दू का वहां जाना वर्जित किया जाय। बाबा का शिवलिंग कहां तक है यह तो बेसमेंट टूटने के बाद ही पता चलेगा। तब तक के लिए किसी भी गैर हिन्दू का वहां जाना रोक देना चाहिए ।



फेसबुक वॉल पर एक यूजर डॉ. नन्दकिशोर पांडेय ने लिखा है कि कानूनी गुत्थियां साफ होने के बावजूद मंदिर-मस्जिद का मसला आज तक फंसा कर रखा गया है। मुसलमान काशी विश्वनाथ का मुकदमा हार गये हैं। अपने कथन को मजबूती देने के लिए नंदकिशोर पांडेय ने लिखा है कि 11 अगस्त, 1936 को दीन मुहम्मद, मुहम्मद हुसैन और मुहम्मद जकारिया ने स्टेट इन काउन्सिल में प्रतिवाद संख्या-62 दाखिल किया और दावा किया कि सम्पूर्ण परिसर वक्फ की सम्पत्ति है। लम्बी गवाहियों एवं ऐतिहासिक प्रमाणों एवं शास्त्रों के आधार पर यह दावा गलत पाया गया और 24 अगस्त 1937 को वाद खारिज कर दिया गया। इसके खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील संख्या 466 दायर की गई लेकिन 1942 में उच्च न्यायालय ने इस अपील को भी खारिज कर दिया था। ज्ञानवापी मस्जिद, मस्जिद नहीं मंदिर है। काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया था। मुगल सम्राट औरंगजेब ने 9 अप्रैल 1669, को बनारस के "काशी विश्वनाथ मंदिर" तोड़ने का आदेश जारी किया था। जिसका पालन कर अगस्त 1669 को काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया था। उस आदेश की कॉपी आज भी एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में सुरक्षित रखी हुई है।